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बाघों के लिए देश में कान्हा टाइगर रिजर्व सबसे उपयुक्त, पेंच दूसरे नंबर पर

Budhni Water222

इस अध्ययन में उन आठ प्रमुख बाघ अभयारण्यों को चिह्नित किया गया है जहां शाकाहारी जीवों का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 50 से अधिक है। भारत के शीर्ष आठ बाघ आवास स्थलों में मध्य प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व शामिल हैं, जिनमें बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी सम्मिलित है। 

प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता कम हो रही है

Genetic Diversity of Species
ByGround Report Desk

यदि संरक्षण प्रयासों में जेनेटिक विविधता को प्राथमिकता दी जाए, तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि प्रजातियां न केवल आज जीवित रहें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सशक्त और जीवनक्षम बनी रहें।

पन्ना-रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व कॉरिडोर के 40 हेक्टेयर जंगल पर अतिक्रमण

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पन्ना टाइगर रिजर्व को रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व से जोड़ने वाला गलियारा छतरपुर जिले की बाजना रेंज के अंतर्गत आता है। इसी बाजना रेंज में 40 हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण किया जा रहा है। वन विभाग ने भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व में नियमों के विरुद्ध हो रहा निर्माण कार्य

Panna Tiger Reserve

किशनगढ़ रेंज में भारी मशीनों से सड़क निर्माण करवाया जा रहा है। कच्ची सड़क और नाली के निर्माण में मजदूरों से काम करवाने का प्रावधान है। इसी इलाके में पांच बाघों का स्थायी आवास है। मशीनों के उपयोग से क्षेत्र पिछले एक सप्ताह से अशांत है। 

बाघों के बाद शेरों का नया ठिकाना बनेगा मध्य प्रदेश

Asiatic lions thrive amid human coexistence in Gujarat: study

मध्य प्रदेश में एनीमल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत गुजरात के गिर से दो शेरों का जोड़ा लाया गया है। इसे भोपाल के वन विहार में रखा गया है। लाए गए जोड़े और उनसे ब्रीडिंग कराकर पैदा होने वाले शावकों को मध्य प्रदेश के जंगलों में छोड़ा जाएगा।

नेशनल पार्क बने सालों बीत गए मगर सीमाएं तय नहीं कर पाई मध्य प्रदेश सरकार

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में तहत नेशनल पार्कों की सीमाओं का एलान करना अनिवार्य है। लेकिन मध्य प्रदेश में अब तक 11 में से 1 नेशनल पार्क की सीमाओं का ही एलान नहीं किया गया है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट भी आदेश दे चुके हैं।

हूलाॅक गिब्बन: भारत की एकमात्र वानर प्रजाति पर संकट के बादल

भारतीय वन्यजीव संस्थान

हूलोंगापार गिब्बन अभ्यारण्य में तेल शोधन के लिए मंत्रालय द्वारा मंजूदरी दे दी गई है। यहां हूलाॅक जैसे छह लुप्तप्राय प्रजातियां निवास करती हैं। जिनको लेकर वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूय पहले ही चिंता जाहिर कर चुका है।

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