गृहमंत्री अमित शाह ने 22 अप्रैल 2022 को वनग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने की घोषणा की थी। लेकिन तीन साल बाद भी आदिवासी गाँवों में कुछ नहीं बदला है। इन वनग्रामों में जीवन कागजी प्रक्रियाओं में कैद होकर रह गया है।
पहले प्रदेश के 27 हजार किसान मित्र और अब 9300 जनसेवा मित्रों को प्रदेश सरकार ने दिखाया बाहर का रास्ता। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन दोनों संगठनों से बहाली के वादे किए थे।
नया खामदा, सुपलई और सकाई गांव के परिवारों को सतपुड़ा के जंगल से विस्थापन के बदले पथरीली और कब्ज़े वाली ज़मीन दी गई है जहां उनके लिए खेती करना संभव नहीं है।
बुंदेलखंड में मिट्टी, पत्थर और पसीने से पांच कुएं गढ़ चुके दीपचंद-गौराबाई की कहानी सिर्फ पानी की नहीं, जज़्बे की है। बुढ़ापे की कमर झुकी है, पर उम्मीद अब भी सीधी खड़ी है—कुएं से नहीं, सरकार से प्यास बुझने की आस है।
बुंदेलखंड के आदिवासी बच्चों की शिक्षा पलायन के दुष्चक्र में फंस गई है। गरीबी, रोजगार की कमी और कमजोर स्कूल सिस्टम के चलते बच्चे पढ़ाई छोड़ मजदूरी को मजबूर हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यही सिलसिला जारी है।
राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित शाहबाद जंगल में प्रस्तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए 4,28,600 पेड़ों की कटाई की योजना बनाई गई है। जिससे चीता गलियारे को खतरा पैदा हो गया है।
सरकार ने आगामी खरीफ़ सीजन के लिए कपास बीज के अधिकतम रेट बढ़ा दिए हैं। इस पर चिंता जाहिर करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। वहीं किसानों का कहना है कि कपास का उत्पादन घट रहा है जबकि लागत बढ़ रही है।
मध्य प्रदेश में भूजल का संकट सामने आने लग गया है। हाल में आयी भूजल पर सरकारी रिपोर्ट के अनुसार मालवा क्षेत्र में भूजल का दोहन बढ़ गया है। इसके साथ ही इंदौर, उज्जैन जैसे शहरों में भूजल के अधिक दोहन से पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
मध्य प्रदेश सरकार टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बढ़ावा दे रही है, लेकिन खरगोन के जीनिंग व्यापारी बढ़ती लागत, सीसीआई की खरीद और मंडी टैक्स से परेशान हैं। मिलें बंद हो रही हैं, जिससे आदिवासी मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं। व्यापारियों को सब्सिडी की मांग है।
बायसिनोसिस फेफड़े से संबंधित एक पेशागत बिमारी है। यह ऐसे लोगों को होती है जो कपास से संबंधित किसी भी व्यवसाय से जुड़े हैं और कॉटन डस्ट के लगातार संपर्क में आते हैं। यह टीबी होने का कारण भी है मगर भारत में इसको लेकर कोई भी आंकड़ा या अलग नीति मौजूद नहीं है।
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