...
Skip to content

हूलाॅक गिब्बन: भारत की एकमात्र वानर प्रजाति पर संकट के बादल

हूलाॅक गिब्बन: भारत की एकमात्र वानर प्रजाति पर संकट के बादल
हूलाॅक गिब्बन: भारत की एकमात्र वानर प्रजाति पर संकट के बादल

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

हूलोंगापार गिब्बन अभ्यारण्य में केन्द्र सरकार ने तेल एवं गैस के शोधन के लिए खुदाई की मंजूरी दे दी है। ये अभ्यारण्य असम के जोरहाट जिले में आता है। इस अभ्यारण्य में पाई जाने वाली कुछ प्रजातियां दुर्लभ हैं, तो कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं। सरकार के मंजूरी के पहले भी आम जनता में जानवरों की सुरक्षा को लेकर खूब बातचीत देखी गई थी।

लोगों ने जोरहाट में सरकार के इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन भी किए। इन प्रदर्शनों में कई स्थानीय कलाकार भी शामिल हुए। पर्यावरण और जैवविविधता की दृष्टि से यह जगह अपना एक खास महत्व रखती है। इसे संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया गया था।

कितना खास है अभ्यारण्य?

इस अभ्यारण्य में पश्चिमी हूलाॅक गिब्बन पाए जाते हैं। इन्हें सभी वानरों में सबसे छोटे और समझदार वानर के तौर पर जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर इस अभ्यारण्य का नाम भी है। ये प्रजाति भारत की एकमात्र वानर प्रजाति है। हूलाॅक गिब्बन भारत के अलावा बांग्लादेश और म्यांमार में भी पाए जाते हैं। गिब्बन जंगल में पेड़ों की चोटियों पर रहते हैं। ये कैनोपी गैप के लिए संवेदनशील माने जाते हैं। इनके अलावा यहां बंगाल स्लो लोरिस और हनिकपि भी पाए जाते हैं। साथ ही इस ईको सेंसिटिव जोन में हाथी, 219 पक्षियों की प्रजातियां, 200 से अधिक तितलियों की प्रजातियां, जंगली सुअर, दुर्लभ कीड़े, सरीसृप के अन्य जीव भी पाए जाते हैं। 

क्यों करना चाहते हैं खुदाई?

असम के कई क्षेत्रों में तेल और गैसीय ईधन होने का अनुमान है। जिसके चलते ऊर्जा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए खुदाई और जांच की मांग की गई थी। यह काम एक निजी कंपनी करने वाली है। इसके लिए पहले चरण की मंजूरी अगस्त-सितंबर 2024 में दी जा चुकी थी। फिर लोगों के विरोध के चलते स्थगन भी हुआ था। फिर साल 2024 के आखिर में नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्डलाइफ कमिटी की 81वीं मीटिंग में इसे शोधन को मंजूरी दे दी गई।

इस प्रोजेक्ट को एक निजी कंपनी ने प्रस्तावित किया था। जो शोधन 4.4998 हेक्टेयर में फैला होगा. जिसमें एक 1.44 हेक्टेयर का कुंआ, 3.0598 हेक्टेयर की सड़क शामिल होगी। ये प्रोजेक्ट साइट सेंचुरी से 13 किमी दूर है। जहां हूलाॅक समेत छह लुप्तप्राय प्रजातियां निवास करती हैं।

वर्तमान स्थिति क्या है ? 

ये सेंचुरी 1887 में से ही दो असमान हिस्सों में बंटी हुई है। इसके बीच से सिंगल रेलवे लाइन गुजरती है। जिस कारण से यह क्षेत्र पहले ही प्रभावित था। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट में पहले ही कहा गया है “ये बात साफ है कि वर्तमान का 1.65 किमी लम्बा रूट सेंचरी के बीच से होकर गुजरता है जो वृक्षीय जानवरों के लिए सुरक्षा संबंधी संकट खड़ा करता है। इसलिए भविष्य में लाइन दोहरीकरण (अगर हुआ) कैनोपी गेप की समस्या को और बढ़ा देगा जो किसी सुरक्षा उपायों को नाकार बना देगा।

पहले भी सामने आए हैं कई विवादित मामले 

इससे पहले भी काजीरंगा नेशनल पार्क एवं टाइगर रिजर्व में एक विवाद सामना आया था। जिसमें असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की सरकार फाइव स्टार होटल को खोलने पर तुली हुई थी। उसी स्थान पर जंगली हाथियों का आवागमन होता था।

साल 2020 में बघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक तेल कुंए में आग लगी थी। जिससे आस- पास के वन्य एवं जैव संपदा की बड़े स्तर पर हानि हुई थी।

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूटट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में पहले ही चिंता जाहिर की जा चुकी थी। इसके अलावा ईस्ट मोजो में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वन महानिरीक्षक के वन संरक्षण प्रभाग ने कहा है कि मानते हैं कि पैट्रोलियम की खोज के लिए खुदाई जरूरी है। और यदि भंडार मिल जाता है तो ये कमर्सियल खुदाई भी हो सकती है। हालांकि निरीक्षण समिति ने जोन के भीतर किसी भी तरीके की खोज या खुदाई के खिलाफ सिफारिश की है। भले ही भंडार क्यों न मिल जाए।

ऐसे कई केस हैं जिनकी वजह से वन्यजीवों पर सुरक्षा का खतरा बना रहता है। और फिर तेल, गैस शोधन के प्रोजेक्ट तो वैसे भी निजी हाथों में है। जहां पैसा सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए भारत सरकार ने ईको सेंसिटिव जोन और संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के लिए नियमावली बनाई थी। जिससे वन्यजीवों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।

भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें। 

यह भी पढ़ें 

असम में रेलवे ट्रैक से प्रभावित हो रही भारत की इकलौती एप प्रजाति, हुलॉक गिब्बन

मछलियों में फार्मेल्डिहाइड, कोर्ट ने असम सरकार को क्या आदेश दिए?

NGT ने असम में वन भूमि के डायवर्जन की जांच के लिए गठित की कमेटी

पातालकोट: भारिया जनजाति के पारंपरिक घरों की जगह ले रहे हैं जनमन आवास

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी 

Author

  • Manvendra Yadav, an IIMC Dhenkanal alumnus with a Post Graduate Diploma in English Journalism, brings stories from Bundelkhand to life. His deep connection to the region fuels his passion for amplifying untold regional narratives.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins