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नेशनल पार्क बने सालों बीत गए मगर सीमाएं तय नहीं कर पाई मध्य प्रदेश सरकार

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में तहत नेशनल पार्कों की सीमाओं का एलान करना अनिवार्य है। लेकिन मध्य प्रदेश में अब तक 11 में से 1 नेशनल पार्क की सीमाओं का ही एलान नहीं किया गया है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट भी आदेश दे चुके हैं।

By Manvendra Singh Yadav
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Photograph: (Shoyab Khan/pexels.com)

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देश के 36 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल 106 नेशनल पार्क हैं। इनमें सबसे अधिक 11 नेशनल पार्क मध्य प्रदेश में हैं। मगर इनमें से 10 नेशनल पार्कों की अंतिम सीमाएं आज तक निर्धारित नहीं की गई हैं। जबकि 2018 में बने कूनो नेशनल पार्क को छोड़ दें तो बाकी 9 नेशनल पार्कों को 20 सालों से अधिक समय बीत चुका है। अभी तक केवल पेंच नेशनल पार्क ही एकमात्र है जिसकी अंतिम अधिसूचना जारी कर उसकी सीमाएं निर्धारित की गई हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) से यह जानकारी प्राप्त कर साझा की है। दुबे ने वन्य प्राणी संरक्षण मुख्यालय भोपाल में इस सूचना की मांग थी। जिसके बाद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। 

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नेशनल पार्कों के बनने की प्रक्रिया वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अतंर्गत आती है। इस अधिनियम की धारा 35(1) में साफ- साफ लिखा है कि यदि राज्य को लगता है कि किसी क्षेत्र के वन्य जीव और पर्यावरण का  संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक है। तो राज्य ऐसे क्षेत्र को राष्ट्रीय उपवन (नेशनल पार्क) घोषित कर सकते हैं। लेकिन साथ ही धारा 35(4) में यह भी लिखा गया है कि जब दावा करने की अवधि बीत चुकी हो तब राज्य सरकार को नेशनल पार्क के क्षेत्र की सीमाओं की घोषणा करनी ही होगी। जिस दिन अंतिम अधिसूचना जारी की जाएगी उसी तारीख से नेशनल पार्क का आधिकारिक अस्तित्व माना जाएगा।

नेशनल पार्कों की अंतिम अधिसूचना जारी करना एक कानूनी बाध्यता है। इसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ में किया था। वहीं उत्तर प्रदेश राज्य बनाम शिव चरण सिंह, मोहन राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य व केरल राज्य बनाम ललिता कुमारी केसों में संबंधित हाईकोर्ट भी इस बात को दोहरा चुके हैं।

 

स्थानीय समुदायों और आदिवासियों को परेशानी

आरटीआई से मिली जानकारी को लेकर ग्राउण्ड रिपोर्ट ने अजय दुबे से बात की। दुबे इस क़ानूनी बाध्यता को आसन शब्दों में समझाते हुए कहते हैं,

नेशनल पार्क तब तक स्वीकार नही होता है जब तक धारा 35(4) के तहत उसका फाइनल नोटिफिकेशन नहीं होता है। जिस तरह आपके घर की रजिस्ट्री नहीं होगी तो मालिक नहीं होगे। नेशनल पार्क को कानूनी मान्यता तभी देखने को मिलेगी।


इसके अलावा दुबे कहते हैं कि अंतिम अधिसूचना जारी होने से जन भागीदारी बढ़ेगी। नोटिफिकेशन के लिए स्थानीय ग्रामसभा की सहमति चाहिए होती है। साथ ही इससे ग्राम सभा के वन प्रबंधन के अधिकार भी पूरे होने लगेंगे।

स्थानीय लोगों का ख्याल रखते हुए मध्य प्रदेश सरकार को नेशनल पार्कों की लंबित अंतिम अधिसूचनाएं जल्द ही जारी करना चाहिए। चूंकि पहले ही इस विषय पर हाईकोर्टों के साथ सुप्रीम कोर्ट निर्देशित कर चुका है। 

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