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बाघों के लिए देश में कान्हा टाइगर रिजर्व सबसे उपयुक्त, पेंच दूसरे नंबर पर

इस अध्ययन में उन आठ प्रमुख बाघ अभयारण्यों को चिह्नित किया गया है जहां शाकाहारी जीवों का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 50 से अधिक है। भारत के शीर्ष आठ बाघ आवास स्थलों में मध्य प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व शामिल हैं, जिनमें बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी सम्मिलित है। 

By Chandrapratap Tiwari
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इस व्यापक अध्ययन में बाघों के प्राकृतिक आवास और उनके भोजन की उपलब्धता से संबंधित विविध मानदंडों का गहन विश्लेषण किया गया है। Photo (Ground Report)

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भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून द्वारा हाल ही में किए गए एक महत्वपूर्ण शोध ने देश भर में बाघों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त आवास स्थलों की पहचान की है। इस शोध के अनुसार कान्हा टाइगर रिजर्व देश में बाधों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। 

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इस अध्ययन में उन आठ प्रमुख बाघ अभयारण्यों को चिह्नित किया गया है जहां शाकाहारी जीवों का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 50 से अधिक है। जबकि इस सूची के अनुसार पेंच टाइगर रिजर्व देश का दूसरा सबसे उपयुक्त स्थान है। विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि भारत के शीर्ष आठ बाघ आवास स्थलों में मध्य प्रदेश के तीन टाइगर रिजर्व शामिल हैं, जिनमें बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी सम्मिलित है। 

बाघ को मैदानी पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेतक प्रजाति माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी मैदानी क्षेत्र में बाघों की जनसंख्या स्वस्थ और स्थिर है, तो यह उस पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य श्रृंखला के संतुलित होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस व्यापक अध्ययन में बाघों के प्राकृतिक आवास और उनके भोजन की उपलब्धता से संबंधित विविध मानदंडों का गहन विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में मुख्यतः अनगुलेट अर्थात खुर वाले शाकाहारी जीवों पर केंद्रित अनुसंधान प्रस्तुत किया गया है।

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पेंच में चीतल बाघों की प्राथमिक शिकार प्रजाति के रूप में स्थापित है। Photo (Ground Report)
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कान्हा में सबसे ज़्यादा शिकार उपलब्ध

कान्हा टाइगर रिजर्व में चीतल, सांभर, गौर और जंगली सूअर जैसी प्रजातियों की प्रचुरता देखी गई है। यह अभयारण्य 69.86 जीव प्रति वर्ग किलोमीटर के शिकार घनत्व और 8,602.15 किलोग्राम प्रति वर्ग किलोमीटर के असाधारण बायोमास घनत्व के साथ अद्वितीय जैव विविधता प्रदर्शित करता है। कान्हा में कुल बायोमास 12.6 मिलियन किलोग्राम से अधिक है, जो इसे राष्ट्रव्यापी स्तर पर सर्वाधिक उपयुक्त बाघ निवास के रूप में स्थापित करता है।

डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट के अनुसार, कान्हा टाइगर रिजर्व में 1,02,485 शाकाहारी जीवों की प्रभावशाली आबादी निवास करती है, जो भारत के समस्त प्रमुख बाघ अभयारण्यों में सर्वाधिक है। इस रिजर्व के सरही, कान्हा, मुक्की और किसली रेंज में इन जीवों का घनत्व सर्वोच्च स्तर पर पाया गया है।

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संख्यात्मक आधार पर विश्लेषण करने पर पेंच टाइगर रिजर्व में मध्य भारत में सर्वाधिक खुर वाले जानवर पाए जाते हैं। चीतल, सांभर, गौर, नीलगाय और जंगली सुअर जैसी विविध प्रजातियां यहां प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। पेंच में चीतल बाघों की प्राथमिक शिकार प्रजाति के रूप में स्थापित है। इस अभयारण्य के कर्माझिरी और गुमतारा श्रेणियों में चीतल का घनत्व सर्वाधिक है, जबकि कुरई में सांभर का घनत्व अधिकतम है, उसके पश्चात कर्माझिरी का स्थान आता है। गौर की आबादी कुरई और गुमतारा श्रेणियों में सर्वाधिक है, जबकि गुमतारा, खवासा और कुरई रेंज में नीलगाय की बहुलता देखी जाती है। कर्माझिरी, गुमतारा और कुरई रेंज में जंगली सुअर की आबादी सर्वाधिक प्रचुर मात्रा में पाई गई है।

मगर रिजर्व का पूर्वी भाग कमज़ोर

मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय स्तर पर 'टाइगर स्टेट' का गौरवशाली दर्जा प्राप्त है। हालिया बाघ गणना के अनुसार प्रदेश में कुल 785 बाघ निवास करते हैं। यह आंकड़ा इस तथ्य का स्पष्ट संकेत देता है कि प्रदेश में बाघों के भोजन और आवास की स्थिति अपेक्षाकृत सुरक्षित है। परंतु डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट का गहन अध्ययन करने पर कुछ चिंताजनक तथ्य भी उजागर होते हैं।

कान्हा टाइगर रिजर्व के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में बाघों के शिकार जीवों की संख्या चिंताजनक रूप से न्यून पाई गई है। उदाहरणस्वरूप, रिजर्व के पूर्वी भाग में चीतल की संख्या अत्यंत कम है। बफर रेंज में गौर की उपस्थिति नगण्य स्तर पर है। कान्हा टाइगर रिजर्व के पूर्वी हिस्से में इन जीवों की आबादी पश्चिमी भाग की तुलना में काफी कम है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है कि रिजर्व के पूर्वी भाग में बेहतर प्रबंधनीय हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।

पश्चिमी मध्यप्रदेश और राजस्थान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क वन क्षेत्रों में बार्किंग डियर की पूर्ण अनुपस्थिति चिंताजनक है। पेंच अभयारण्य में भी बार्किंग डियर अत्यंत न्यून संख्या में पाए गए हैं। पेंच के कैमरा ट्रैप सर्वेक्षण में इस प्रजाति को केवल सीमित स्थानों पर ही दर्ज किया गया है। पेंच के रुखड़ और अरी रेंज में खुरवाले जानवरों की संख्या सबसे कम है। इन क्षेत्रों में शाकाहारी जानवरों की आबादी को पुनः स्थापित करने के लिए तत्काल प्रभावी प्रबंधनीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

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प्रदेश में खुर वाले जीवों की संख्या पर्याप्त है, परंतु इनकी उपस्थिति मुख्यतः संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित है। Photo (Ground Report)

केवल संरक्षित क्षेत्र तक ही सीमित उपस्थिति

मध्य प्रदेश में खुर वाले जीवों की संख्या पर्याप्त है, परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि इन जीवों की उपस्थिति मुख्यतः संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित है। यद्यपि वर्तमान समय में मध्य प्रदेश और भारत में बाघों की संख्या संतोषजनक स्तर पर है, किंतु इस स्थिति को बनाए रखने और मैदानी पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है कि खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर पर जीवों के संरक्षण हेतु निरंतर प्रयास किए जाएं।

खुर वाले शाकाहारी जीव जैसे हिरण, चीतल, बारासिंघा और विविध प्रकार के एंटीलोप बाघ के मुख्य आहार स्रोत हैं। मैदानी क्षेत्रों में इनकी पर्याप्त उपस्थिति बाघ की जनसंख्या की स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। खुर वाले जानवर हमारी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि बाघ या कोई अन्य शीर्ष शिकारी।

इस महत्वपूर्ण तथ्य को रिपोर्ट के एक विशिष्ट अवलोकन से समझा जा सकता है। मध्य प्रदेश के रातापानी टाइगर रिजर्व में मांसाहारी जीवों जैसे बाघ की संख्या तो अधिक है, परंतु उनके शिकार जीवों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। ऐसी परिस्थितियों में, जब बाघों को वन क्षेत्र में पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं होगा, तो वे मानव बस्तियों की ओर आकर्षित होंगे। वे स्थानीय लोगों के पालतू पशुओं का शिकार करके अपनी भूख शांत करने का प्रयास करेंगे, जिससे बाघ-मानव संघर्ष की स्थितियां निरंतर बढ़ती रहेंगी। इसलिए संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के लिए शिकारी और शिकार दोनों प्रजातियों का संरक्षण समान रूप से आवश्यक है।

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