राज्य का मालवा-निमाड़ क्षेत्र सोयाबीन की खेती के लिए जाना जाता हैं। इन क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल को 80 फीसदी तक नुकसान हुआ हैं। कहीं-कहीं तो पूरी तरह से फसल तबाह हो गई है।
बढ़ती पवन चक्कियां, बदलती खेती और स्थानीय समुदाय व वन विभाग के तालमेल की कमी से राज्य में शून्य हुई मध्य प्रदेश में खरमोर की संख्या, संरक्षण की बात केवल कागज़ों तक सिमटी।
अरुण पांढुर्ना में पिछले तीन सालों से प्लास्टिक को रिसाइकल कर रहे हैं। अरुण इसे प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक समस्या के समाधान के साथ ही, लोगों को रोजगार प्रदान करने के एक माध्यम के तौर पर देखते हैं।
बैतूल के आदिवासियों ने जंगल में लगने वाली आग को रोकने के लिए अपने वनोपज संग्रहण करने के तरीकों में भी बदलाव किया है और इस प्रयास का असर भी हुआ है वर्ष 2021 की तुलना में आग लगने की घटनाएं 90 फीसदी तक कम हुई हैं।
रामतिल को मंडला के स्थानीय लोग जगनी बुलाते हैं। इस अनाज का उपयोग खाद्य तेल, आहार, पेंट, और साबुन उद्योग में भी किया जाता है। लेकिन मंडला के किसान अब रामतिल की खेती छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में भी पिछले तीन दशकों में रामतिल का उत्पादन लगातार घटा है।
मध्य प्रदेश में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उन्हें खेतों में वेयरहाउस बनाने के लिए सब्सिडी दी गई लेकिन अब उत्पादन क्षमता से अधिक गोदाम बन चुके हैं और ये वेयरहाउस संचालक मुसीबत में हैं। ग्राउंड रिपोर्ट हिंदी
अक्सर पशुओं के बीमार होने पर पशुपालक इन्हे आवारा छोड़ देते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के मंडला जिले की पशु सखियां गांव के पशुओं की देखभाल करके इस समस्या का समाधान और अपने जीवन के नए मायने तलाश रही हैं।
अलीराजपुर में जंगल से आदिवासी अपने ज़रूरत की चीज़ें भी प्राप्त करते हैं और लगातार निगरानी करके यह सुनिश्चित भी करते हैं कि जंगल न कटने पाए, जंगल की रक्षा के लिए वो पहरा भी देते हैं।
मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के गंज बासौदा ब्लॉक में पत्थरों की अवैध खदानें ही यहां के लोगों के लिए रोज़गार का एकमात्र ज़रिया है। लेकिन यह काम उन्हें सिलिको ट्यूबरक्लोसिस जैसी गंभीर बीमारी की ओर धकेल रहा है।