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थ्रेशर से निकलती मूंग
मध्य प्रदेश में इस बार मूंग किसानों की परेशानियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। मूंग किसान एक के बाद एक नई परेशानियों से घिरते जा रहे हैं। पहले अनियमित मौसम की मार ने किसानों की उपज-लागत क्षमता को प्रभावित किया। फिर सरकार की मूंग न खरीदी के फैसले ने उन्हें सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर किया। अब सरकार के समर्थन मूल्य (MSP) पर मूंग खरीदी के फैसले बाद भी उनकी परेशानियां कम होती नजर नहीं आ रही है।
राज्य में मूंग की समर्थन मूल्य पर खरीदी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। मध्य प्रदेश वेयरहाउस ऑनर्स एसोसिएशन ने खरीदी नीति में संशोधन करने की मांग की है। एसोसिएशन ने सरकार को चेतवानी दी है। यदि उनका 2 से 3 वर्षों से लंबित किराए का भुगतान शीघ्र नहीं किया गया तो वह प्रदेश व्यापी आंदोलन शुरू करेंगे। साथ ही प्रदेश भर में मूंग की खरीदी का बहिष्कार करेंगे।
हालांकि गुरूवार (10 जुलाई) को एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल ने भोपाल के वल्लभ भवन में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और प्रमुख सचिव, अनुराग जैन के नाम मार्कफेड प्रबंध संचालक अजित सिंह को अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपा है। इससे पहले 7 जुलाई को एसोसिशन के नेतृत्व में रायसेन, नर्मदापुरम (होशांगाबाद) और सीहोर में करीब 150 वेयरहाउस संचालकों ने मूंग खरीदी का बहिष्कार कर दिया है। वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रमुख सचिव अनुराग जैन ने उनकी समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया है।
मूंग खरीदी का हाल और बहिष्कार का प्रभाव
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मध्य प्रदेश के 36 जिलों में किसानों द्वारा मूंग का उत्पादन किया जाता हैं। मध्य प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक 2024-25 में जायद मूंग का क्षेत्रफल 14.35 लाख हेक्टेयर है और उत्पादन 20.23 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है। नर्मदापुर में 2.50 लाख हेक्टेयर, रायसेन में 1.50 लाख हेक्टेयर और सीहोर में 1 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित है। केंद्र सरकार ने इस बार मूंग का समर्थन मूल्य 8,768 रू. निर्धारित किया है। सरकार से 3.51 लाख मीट्रिक टन मूंग खरीदी का लक्ष्य रखा है और 30 जून तक 2.94 लाख किसानों ने पंजीयन कराया है। मूंग की खरीदी 7 जुलाई से शुरू हो चुकी है, जोकि 6 अगस्त तक चलेगी।
हालांकि, खरीदी प्रक्रिया में कई तरह की समस्याएं सामने आ रही है। जैसे कई जगहों पर खरीदी शुरू नहीं हो पाई तो कई जिलों में खरीदी केंद्र बहुत दूर बनाए गए है। सरकार ने प्रति हेक्टेयर 8 क्विटंल की खरीदी सीमा तय की है, जबकि उत्पादन 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ है। इस वजह से अधिकतर किसान शेष फसल को मंडियों में कम दामों पर बेचनी पड़ रही है।
वहीं मोहन यादव सरकार द्वारा नेशनल कमोडिटीज मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (NCML) कंपनी को मूंग खरीदी का जिम्मा देने का फैसला भी विवादों में है। इस कंपनी पर पहले भी अमानक फसल खरीदकर घोटाले करने के आरोप है।
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नर्मदापुरम के किसान रामेश्वर वर्मा कहते हैं,
"मैंने 5.5 हेक्टेयर खेत में 90 क्विंटल मूंग हुई। परंतु एमएसपी पर केवल 44 क्विंटल ही बिकेगी। शेष फसल को 6500 से 7600 रु. प्रति क्विंटल के हिसाब बेचना पड़ेगा। इससे करीब 1 लाख का नुकसान होगा।''
इसके अलावा छोटे किसानों की मुश्किलें पंजीकरण सर्वर ठप होने और गिरदावरी की समस्या ने बढ़ाई हैं। वहीं राज्य के किसान नेताओं का कहना हैं कि सरकार को इस समस्या का जल्द से जल्द हल निकालना चाहिए। नहीं तो किसानों को कम दामों पर ही मंडियों में अपनी उपज बेचनी पड़ेगी।
किसान नेता केदार सिंह कहते हैं,
''वेयरहाउस संचालकों का बहिष्कार मूंग उत्पादक किसानों, खासकर नर्मदापुरम, रायसेन और सीहोर के लिए बड़ा झटका है। इन जिलों में राज्य का 50 प्रतिशत से अधिक मूंग उत्पादन होता है।''
केदार ने आगे कहा, ''सरकार ने मूंग खरीदी की घोषणा देरी से की है। अब बहिष्कार ने खासकर के छोटे किसान की मुश्किलें बढ़ा दी है। वे मजबूरी में अपनी उपज मंडियों में कम दामों ( 6000-8000 रू.) पर बेच रहे हैं। किसानाें को अगली फसल बोने के लिए पैसों की आवश्यकता है।''
सीहोर, रायसेन और नर्मदापुर में बहिष्कार से खरीदी केंद्रों पर प्रक्रिया रूक सी गई है। जबलपुर के किसानों ने बताया कि खरीदी में देरी और प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण उन्हें 5500 से 6500 रूपये प्रति क्विंटल पर मूंग बेचना पड़ रहा है, क्योंकि अगली फसल की तैयारी करनी है।
फसल में सूखत, लंबित सब्सिडी और किराया की लड़ाई
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मध्य प्रदेश वेयरहाउस ऑनर्स एसोसिएशन ने मूंग खरीदी नीति में संशोधन की मांग की है। एसोसिएशन द्वारा पहले रायसेन में प्रभारी मंत्री नरेंद्र शिवजी पटेल को समस्याओं से अवगत कराया। इसके बाद एसोसिएशन ने 7 जुलाई को ही रायसेन, नर्मदापुरम और सीहोर में कलेक्टरों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने नाम अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा है। एसोसिएशन ने ठोस आश्वासन और मांगों पर कार्रवाई न होता देख रायसेन, नर्मदापुरम और सीहोर में मूंग खरीदी का बहिष्कार कर दिया है। इन जिलों में करीब 600 सरकारी और निजी गोदाम है। इनमें से करीब 150 गोदाम मप्र वेयरहाउस ऑनर्स एसोसिएशन से जुड़े हुए है। सरकार ने इन तीनों से जिलों में करीब 400 खरीदी केंद्र बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन गोदाम संचालकों के विरोध के बाद 400 में से केवल 280 खरीदी केंद्रों पर ही मूंग खरीदी की प्रक्रिया शुरू हो पाई हैं।
हालांकि सीहोर जिला कलेक्टर द्वारा 11 जुलाई को निजी गोदाम संचालकों की मांग को जायज़ मानते हुए मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक्स काॅर्पोरेशन के प्रबंध संचालक को पत्र लिखा है। इस पत्र के माध्यम से कलेक्टर ने मूंग व उड़द में होने वाली प्राकृतिक लाभ व हानि के मानक निर्धारित करने का अनुरोध किया। इस पत्र के अनुसार मप्र किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के 15 अक्टूबर 2024 के पत्र का उल्लेख कर अवगत कराया है गया है कि सोयबीन में भी 1 प्रतिशत नमी होने पर 0.7 किलोग्राम की छूट दी जाती है। इसी प्रकार मूंग व उड़द में भी देने का अनुरोध किया है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष नवनीत रघुवंशी कहते हैं,
''मूंग भंडारण में 1.5 प्रतिशत से 2 प्रतिशत सूखत (नमी हानि) होती है, जिसका नुकसान संचालकों को उठाना पड़ता है।''
रघुवंशी आगे कहते हैं, ''एसोसिएशन की मांग है कि सोयबीन की तरह मूंग में भी 1 प्रतिशत नमी हानि पर 700 ग्राम की छूट पर ही भंडारण संभव है।''
हालांकि राज्य में वेयरहाउस संचालकों का 2 से 3 साल का किराया लंबित है। यह किराया गेहूं, चना, धान, सोयबीन और मूंग की फसल के भंडारण का है। इस संबंध में एसोसिएशन पिछले दो सालों से कई बार विरोध-प्रदर्शन और ज्ञापन दे चुका है, लेकिन उनकी समस्या जस की तस बनी हुई है।
एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष राहुल धूत बताते हैं, ''दो-तीन सालों से किराया और नाबार्ड की सब्सिडी का भुगतान नहीं हुआ है। इस वजह से राज्य के अधिकतर वेयरहाउस संचालक बैंक डिफाल्डर बना गए हैं।''
धुत आगे कहते हैं, '' इस बार हमने आर-पार की लड़ाई लड़ने की ठान ली है। जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती, हम फसल खरीदी का बहिष्कार करते रहेंगे। विरोध के अगले चरण में अन्य जिलों में भी खरीदी का विरोध करेंगे।''
मूंग भंडारण से नुकसान नहीं जेब से देना होगा पैसा
राज्य में निजी गोदाम संचालकों द्वारा मूंग खरीदी भंडारण नीति में बदलाव के लिए लगातार विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है। निजी गोदाम संचालकों का कहना हैं कि मूंग में भंडारण के दौरान नमी अधिक होती है। जोकि समय के साथ कम होती जाती है। नमी में होने वाली कमी से मूंग का वजन भी कम आता है। इस वजह से उन्हें नुकसान होता है।
एसोसिएशन के प्रचार प्रमुख और किरन वेयरहाउस, श्यामपुर, संचालक, राहुल धूत कहते हैं,
''जायद मूंग का उपार्जन वर्षा के समय (जून-जुलाई) में किया जाता है। इस समय वातावरण में नमी ( सापेक्षिक आर्द्रता) अत्यधिक व तापमान भी कम होता है। मूंग स्कंध में भंडारण के समय नमी अधिक रहती है। सरकार द्वारा भुगतान जनवरी से अप्रैल माह के बीच किया जाता है। इस समय मौसम गर्म होता, इससे नमी में कमी आती है।''
सरकार द्वारा माल निकासी या भुगतान के समय भंडारित हर फसल की गुणवत्ता और मात्रा की जांच की जाती है। दोनों में से जिसमें भी कमी सामने आती है, उसकी भरपाई गाेदाम संचालकों से की जाती है। यह भरपाई अक्सर किराए कटौती के रूप से सामने आती है।
राहुल आगे बताते हैं,
''यदि हमने नमी (सूखत) में छूट के बिना ही मूंग का भंडारण किया, तो हमें कमाई तो कुछ नहीं होगी, उल्टा सरकार को अपनी जेब से पैसे चुकाने पड़ेंगे। ''
नुकसान का गणित
मूंग का भंडारण जून से अगस्त माह के बीच किया जाता है। इस समय तापमान कम होने से मूंग में नमी 12 से 13 प्रतिशत रहती है, जबकि मूंग स्कंध में नमी की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत होनी चाहिए।
1 बोरी में मूंग का वजन 50 किलो निर्धारित होता है। इस दौरान 12 से 13 प्रतिशत नमी मूंग में रहती है।
सरकार द्वारा मूंग भंडारण का भुगतान (माल की निकासी के समय पर) करीब 9 माह (जनवरी से अप्रैल माह के बीच) बाद किया जाता है। इस दौरान गोदाम में रखी मूंग की प्रत्येक बोरी का दोबारा वजन, गुणवत्ता आदि का मिलान किया जाता है।
जनवरी से अप्रैल माह में मिलान के समय गर्म तापमान होता है, इस वजह से प्रत्येक बोरी में 1 से 2 प्रतिशत तक नमी में कमी आती है। 1 प्रतिशत नमी में कमी आने पर 1 बोरी का वजन 700 ग्राम कम होता है, जबकि नमी में 2 प्रतिशत तक कमी होने पर प्रत्येक बोरी के वजन में 1.400 किलोग्राम घट जाता है। सरकार इसकी भरपाई गोदाम संचालकों से करती है।
सरकारी रेट (समर्थन मूल्य) 8682 रू. प्रति क्विंटल (100 किलोग्राम) है। यानि एक किलोग्राम मूंग की कीमत 86.82 रूपये है। 1 से 2 प्रतिशत नमी में कमी होने पर प्रति बोरी क्रमश: 0.7 किलोग्राम से 1.4 किलोग्राम वजन कम हो जाता है। इस हिसाब से गोदाम संचालकों से प्रत्येक बोरी क्रमश: 61 रू. व 122 रू. की भरपाई की जाती है, जबकि उन्हें प्रत्येक बोरी 4 रू. या 8 रू. प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान किया जाता है। इससे गोदाम संचालकों को मूंग भंडारण से फायदा कुछ नहीं मिलता है, बल्कि उन्हें उल्टा मूंग का भंडारण कर सरकार को वजन की कमी का डिफरेंस अमाउंट (अंतर राशि) चुकानी पड़ती है। जोकि प्रत्येक बोरी क्रमश: 57 व 118 रू. आती है।
निष्कर्ष
राज्य में मूंग खरीदी नीति में खामियां और वेयरहाउस संचालकों का बहिष्कार किसानों के लिए संकट बन गया है। संचालकों की मांगें जायज हैं, परंतु बहिष्कार का असर छोटे और मझोले किसानों पर पड़ रहा है, जो एमएसपी पर निर्भर हैं।
सरकार को तत्काल नीतिगत सुधार, पारदर्शी खरीदी प्रक्रिया और लंबित भुगतानों का निपटारा करना चाहिए। अन्यथा यह विवाद किसानों और सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि सरकार इस समस्या से कैसी निपटती है, क्या वो सालों से लंबित किराये का भुगतान कर इस समस्या से छूटकारा हासिल करती या फिर सोयाबीन की तरह मूंग के भंडारण में 1 प्रतिशत नमी हानि पर 700 ग्राम की छूट देगी?
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