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खिवनी खुर्द में वन विभाग की कार्रवाई में आदवासियों के टूटे हुए घर Photograph: (Ground Report)
मध्य प्रदेश के देवास जिले के खिवनी खुर्द गांव में 23 जून को एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल 29 आदिवासी परिवारों को बेघर कर दिया, बल्कि पूरे प्रदेश में आदिवासी अधिकारों के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। वन विभाग ने खिवनी अभयारण्य क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के नाम पर अभयारण्य के कक्ष क्रमांक आर.एफ 215, 209 और 203 में 51 कच्चे मकानों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया है।
खिवनी खुर्द में रहने वाले 45 वर्षीय रमेश बारेगा का पूरा जीवन यहीं बीता हैं। रमेश कहते हैं कि, “बिना ठोस नोटिस के हमारे घर तोड़ दिए गए। बारिश में बच्चे और बुजुर्ग कहां जाएं।” रमेश का परिवार पीढ़ियों से इस गांव में रह रहा है जहां से वो अचानक बेघर हो गए हैं।
यह कार्रवाई तब की गई जब बारिश का मौसम शुरू हो चुका था। आदिवासी समुदाय से आने वाले इन ग्रामीणों का आरोप है कि यह कार्रवाई बिना पर्याप्त सूचना और पुनर्वास व्यवस्था के की गई। इसने उन्हें खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया।
32 वर्षीय ममता बामनिया ने ग्राउंड रिपोर्ट को अपनी समस्या बताते हुए कहा,
मेरे बच्चों की किताबें मलबे में दब गईं। हम बारिश में सड़क पर बैठे हैं।
सभी प्रभावित परिवारों ने दावा किया कि उनके पास वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत जमीन के दस्तावेज हैं। हालांकि वन विभाग का कहना है कि एक महीने पहले नोटिस दिए गए थे और 14 जून को बेदखली का आदेश जारी किया गया था।
विभाग के अनुसार इन परिवारों ने वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए और 2022, 2023 और 2024 में भी परिवारों को स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देशित किया गया था।
एसडीओ विकास माहोरे ने बताया,
29 परिवारों के कुल 51 लोग प्रभावित हैं। इन 51 में से 49 प्रभावित लोगों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY–G) के तहत पक्के मकान पहले से ही स्वीकृत हैं। ये मकान खिवनी खुर्द के राजस्व ग्राम में बने हैं। बचे हुए 2 लोग अपने परिवार के बने आवास में रह रहे हैं।
एसडीओ की बात पर स्थानीय निवासी कैलाश सोलंकी (38) ने सवाल उठाया,
अगर हमारे लिए मकान स्वीकृत थे, तो हमें बेघर क्यों किया गया? हमें उन मकानों तक पहुंच क्यों नहीं दी गई?
5000 आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन
इस घटना ने आदिवासी समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा किया। 27 जून को जनजाति विकास मंच ने खातेगांव में डाक बंगला मैदान से कलेक्ट्रेट तक एक बड़ी रैली निकाली। इसमें देवास, हरदा, सीहोर, खंडवा, खरगोन, धार और बैतूल जिलों के लगभग 5000 आदिवासी शामिल हुए।
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रैली में "जल, जंगल, जमीन हमारा है" और "वन विभाग की तानाशाही नहीं चलेगी" जैसे नारे गूंजे। आदिवासियों के विरोध-प्रदर्शन को जयस और कांग्रेस ने भी समर्थन दिया। प्रदर्शनकारियों ने वन विभाग की कार्रवाई को वन अधिकार अधिनियम 2006 और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया।
स्थानीय निवासी राधा डावर (55) ने कहा,
हमारे बच्चे भूखे हैं, बारिश में भीग रहे हैं। सरकार ने हमारा घर-बार सब छीन लिया। अब सरकार सिर्फ छह माह की अस्थाई व्यवस्था कर रही है, छह माह बाद हमारा क्या होगा? हमें स्थाई समाधान चाहिए, न कि अस्थाई।
आदिवासियों की मांगे
आदिवासियों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में उन्होंने सबसे पहले इस कार्रवाई में शामिल दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। साथ ही प्रभावित परिवारों के लिए स्थाई आवास, टिन शेड और उचित मुआवजे की व्यवस्था की गुहार लगाई है।
आदिवासी समुदाय ने इस पूरी कार्रवाई की वैधानिकता की निष्पक्ष जांच की भी मांग की है। उनका कहना है कि इस जांच से यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह कार्रवाई कानूनी थी या नहीं। इसके अलावा, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए खिवनी से पटरानी तक सड़क और पुल के निर्माण की मांग भी रखी गई है। आदिवासियों की सबसे महत्वपूर्ण मांग यह है कि वन भूमि पर खेती करने वाले वनवासियों को हटाने की कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाई जाए।
घटनाक्रम ने बढ़ाई राजनितिक हलचल
खिवनी खुर्द गांव के लोगों पर वन विभाग की इस कार्रवाई का यह मामला तूल पकड़ने लगा। यह देखते हुए राज्य सरकार की ओर से रविवार को आदिवासी मामलों के मंत्री विजय शाह प्रभावित परिवारों से मिलने और उनकी मांगे सुनने पहुंचे।
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मंत्री विजय शाह को कीचड़ भरे रास्तों पर कई किलोमीटर पैदल चलकर और ट्रैक्टर-ट्रॉली की मदद से गांव पहुंचकर प्रभावित परिवारों से मुलाकात करनी पड़ी। स्थानीय निवासी मुझाल्दा (42) ने बताया,
मंत्री जी आए, हमारी बात सुनी, लेकिन हमें स्थाई घर चाहिए। आश्वासन से पेट नहीं भरता है।
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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इस मामले पर तत्काल संज्ञान लिया। उन्होंने कहा, "खिवनी अभयारण्य में वन विभाग की कार्रवाई का मामला संज्ञान में आया है। प्रशासन को कल्याणकारी योजनाओं और संवेदनशीलता के साथ व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए गए हैं।"
मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत देने की व्यवस्था की गई। इसमें 6 महीने की खाद्य सामग्री, तिरपाल और प्रति परिवार 20,000 रुपए की सहायता राशि शामिल है। साथ ही पका हुआ भोजन भी उपलब्ध कराया जा रहा है। परंतु प्रभावित परिवार इस राहत राशि को अपर्याप्त मानते हैं।
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देवास कलेक्टर ऋतुराज सिंह ने बताया,
सीहोर डीएफओ मगन सिंह डाबर को हटा दिया गया और उनकी जगह पर अर्चना पटेल को नियुक्त किया गया। जबकि प्रभावित परिवारों को तत्काल राहत सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है।
यह मुद्दा अब राजनीतिक रूप से भी गर्म हो गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रविवार (29 जून) को सुबह सीहोर कलेक्ट्रेट ऑफिस का घेराव करने पहुंचे आदिवासियों से मुलाकात की। इसके बाद केंद्रीय कृषि मंत्री खुद क्षेत्र के आदिवासी प्रतिनिधियों को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के भोपाल निवास पहुंचे।
आज भोपाल में मुख्यमंत्री निवास पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री @DrMohanYadav51 जी से खिवनी अभयारण्य के लिए वन विभाग की कार्रवाई से प्रभावित जनजातीय समुदाय के नागरिकों के साथ भेंट की और समस्या से अवगत कराया।
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) June 29, 2025
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार… pic.twitter.com/gbXxII30ex
इस प्रतिनिधिमंडल में खातेगांव और इछावर क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग शामिल थे। साथ में बुधनी विधायक रमाकांत भार्गव भी मौजूद रहे। सीएम ने आदिवासी प्रतिनिधियों की बातें सुनीं और कार्रवाई के निर्देश दिए।
इस घटना के मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने देवास जिले के कलेक्टर, एसपी, सीहोर जिले के एसपी, कलेक्टर और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस भी जारी किया है।
आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्य अन्य अधिकारीयों के साथ 1 जुलाई 2025 को ग्राम खिवनी खुर्द का दौरा करेंगे और मामले की जांच करेंगे।
विपक्षी दल कांग्रेस ने इस पूरी गतिविधि को आदिवासी विरोधी नीति का हिस्सा बताया है। जबकि आदिवासी संगठन जयस के संयोजक हीरालाल अलावा ने इस कार्रवाई को सरकार द्वारा भेजी गई किसी प्राकृतिक आपदा की तबाही करार दिया है।
संरक्षण बनाम अधिकार
खिवनी वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना 1955 में मध्य भारत वन्य पशु, पक्षी संरक्षण विधान 1952 के तहत हुई थी। इसका विस्तार 1982 और 2006 में किया गया। सीहोर और देवास जिलों के अधिकारों का विनिश्चय क्रमशः 1997 और 1998 में हो चुका है। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत 13 दिसंबर 2005 से पहले बसे वनवासियों को पट्टे दिए गए थे।
2016-2017 में 96 हितग्राहियों को 10 लाख रुपए प्रति परिवार (कुल 9.6 करोड़ रुपए) मुआवजा देकर विस्थापित किया गया था। वन विभाग का दावा है कि प्रभावित परिवारों को 2022, 2023 और 2024 में स्वेच्छा से अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देशित किया गया था।
आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस घटना ने वनवासियों के अधिकारों और वन संरक्षण नीतियों के बीच टकराव को फिर से उजागर किया है।
बरगी बांध विस्थापित संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा ने कहा, "खिवनी खुर्द में हुई कार्रवाई वन अधिकार अधिनियम 2006 और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो जीवन और आजीविका के मूल अधिकारों की रक्षा करता है।"
सिन्हा आगे कहते हैं, "आदिवासी समुदायों का जंगल संरक्षण में योगदान वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है, फिर भी संरक्षण के नाम पर उन्हें बेदखल करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।"
आदिवासी नेता रामदेव काकोड़िया ने इस तरह की कार्रवाइयों को "आदिवासियों के लिए मृत्यु का आदेश" करार दिया। काकोड़िया ने कहा, "यह बड़े पैमाने पर जमीन की चोरी है और एक मानवीय संकट को जन्म देगा। यह जंगलों को बचाने में मदद नहीं करेगा, क्योंकि आदिवासी पीढ़ियों से इनकी रक्षा करते आए हैं।"
खिवनी खुर्द में वन विभाग की कार्रवाई ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों और प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं। तत्काल राहत के रूप में खाद्य सामग्री, तिरपाल और 20 हजार रुपए की सहायता राशि दी गई है। परंतु स्थाई पुनर्वास और वन अधिकार अधिनियम के तहत पट्टों का आवंटन अभी बाकी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्रवाई न केवल आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि जंगल संरक्षण के लिए भी हानिकारक हो सकती है। सरकार को चाहिए कि वह आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे और भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों को रोके।
खिवनी खुर्द की यह कहानी पूरे देश में आदिवासियों के संघर्ष की एक झलक है। यह दिखाता है कि विकास और संरक्षण के नाम पर मूल निवासियों के अधिकारों का हनन कैसे हो रहा है और इस समस्या का समाधान एक जटिल लेकिन तात्कालिक आवश्यकता है।
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