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ऋषि मोगिया जिन्हें उम्र पूरी न होने की वजह से नौंवी कक्षा में प्रवेश नहीं मिला। Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)
मध्यप्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत बनाए गए नए नियमों ने प्रदेश के हजारों छात्र-छात्राओं के भविष्य को अंधकार में धकेल दिया है। शैक्षणिक सत्र 2024-25 से लागू किए गए इन नियमों के अनुसार, यदि किसी छात्र की उम्र 1 अप्रैल को 13 वर्ष पूर्ण नहीं होती है, तो उसे नौवीं कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
यह नियम विशेष रूप से उन छात्रों के लिए संकट बना है जो नियमित अध्ययन कर रहे हैं और जिनकी जन्मतिथि 2011 के अंतिम महीनों या 2012 की है। इन बच्चों ने आठवीं कक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की है, लेकिन उम्र के कारण वे नौवीं कक्षा में प्रवेश पाने से वंचित हो रहे हैं।
राजगढ़ के ऋषि की दुखद कहानी
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राजगढ़ निवासी 14 वर्षीय ऋषि मोगिया का मामला इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। 2024 में उसने सीएम राइज माध्यमिक विद्यालय से आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन दाखिले के वक्त 13 वर्ष की उम्र पूरी न होने के कारण उसे नौंवी कक्षा में प्रवेश नहीं मिला।
ऋषि के पिता मोहन मजदूरी करते हैं और मां डालू बाई खजूर की पत्ती से झाड़ू बनाकर हाट-बाजार में बेचती हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार को मजबूरी में 4,000 रुपये देकर ऋषि को एक निजी विद्यालय में दोबारा आठवीं कक्षा में दाखिला दिलाना पड़ा।
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डालू बाई की आंखों में आंसू आ जाते हैं जब वह बताती हैं,
"हम अपना काम छोड़कर कई बार स्कूल गए, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। पुराने स्कूल में भी वापस बैठाने की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया।"
वर्ष 2024 में मिली अस्थायी राहत
2024 में अभिभावकों की व्यापक शिकायतों के बाद शिक्षा मंडल ने अस्थायी तौर पर नियमों में शिथिलता प्रदान की और 13 वर्ष में 2 से 5 माह कम उम्र वाले बच्चों को रियायत दी। लेकिन यह राहत केवल एक वर्ष के लिए थी। 2025 में फिर से यही समस्या सामने आई है।
शासकीय सांदीपनि स्कूल के प्राचार्य गोपाल विजयवर्गीय बताते हैं,
"पिछले वर्ष लगभग 20 छात्र हमारे पास आए थे जिनकी उम्र 13 वर्ष से कम थी। मंडल के नियम के कारण हमारे हाथ बंधे थे। जो बच्चे शिथिलता की खबर सुनकर दोबारा आए, उनका प्रवेश हुआ, लेकिन कई बच्चे वापस ही नहीं आए।"
नई समस्याएं और चिंताएं
राजगढ़ के आयुष वर्मा का मामला 2025 में भी जारी संकट को दर्शाता है। अप्रैल 2012 में जन्मे आयुष ने भी आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है, लेकिन कुछ दिन की कमी के कारण उसे भी प्रवेश नहीं मिल पा रहा।
आयुष की मां श्यामा बाई चिंतित हैं,
"यदि बच्चा एक साल का गैप देगा तो पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा। हो सकता है गलत संगत भी पकड़ ले। हम इस साल भी नियमों में रियायत का इंतजार कर रहे हैं।"
एक स्कूल प्राचार्य (नाम गुप्त रखने की शर्त पर) कहते हैं, "बच्चे ने नियमित पढ़ाई करके आठवीं उत्तीर्ण की है, लेकिन नए नियम के कारण प्रवेश नहीं मिल रहा। 2024 से पहले ऐसा कोई नियम नहीं था।"
तकनीकी समस्याएं भी बाधक
उम्र की समस्या के अलावा, आपार आईडी में भी तकनीकी दिक्कतें आ रही हैं। जिन बच्चों की समग्र आईडी और आधार के नाम में थोड़ा भी अंतर है, उनकी आपार आईडी नहीं बन पा रही और एनरोलमेंट नहीं हो पा रहा।
समस्या की जड़ में छुपी सच्चाई
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ग्राउंड रिपोर्ट की पड़ताल में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। ऋषि मोगिया के प्राथमिक विद्यालय के स्कॉलर रजिस्टर के अनुसार, उसे 31 जुलाई 2017 में नियम विरुद्ध तरीके से सीधे दूसरी कक्षा में प्रवेश दिया गया था, जब उसकी उम्र केवल 5 वर्ष 8 माह थी।
इस गलती को छुपाने के लिए स्कॉलर रजिस्टर में ऋषि को पहली कक्षा में प्रवेश बताते हुए 2017 में ही पास भी दिखा दिया गया। वर्तमान प्राथमिक स्कूल प्रभारी श्रृष्टि पांडे स्वीकार करती हैं, "यह एडमिशन नियम विरुद्ध है। मैं इस बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराऊंगी।"
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और इसके प्रभाव
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बच्चों की पहली कक्षा में प्रवेश की उम्र 6 वर्ष निर्धारित की गई है। पहले भी नियम था कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जाएगा, लेकिन सरकारी प्राथमिक स्कूलों में इन नियमों को नजरअंदाज कर दिया गया।
अब जब मंडल ने सख्ती से इन नियमों को लागू किया है, तो उसका नुकसान उन बच्चों को भुगतना पड़ रहा है जो किसी गलत नीति के शिकार हुए हैं।
हमने मंडल के चेयरमैन और एग्जाम कंट्रोलर से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। उन्होंने केवल पोर्टल पर अपलोड प्रवेश नीति का अवलोकन करने को कहकर पल्ला झाड़ लिया।
यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि नीति निर्माण में दूरदर्शिता की कमी है। यदि मंडल को नौवीं कक्षा में प्रवेश के नियम बदलने ही थे, तो इन्हें चरणबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए था। पहले से नियमित अध्ययन कर रहे छात्रों के हितों को ध्यान में रखकर कुछ महीनों की रियायत की व्यवस्था होनी चाहिए थी।
ऋषि जैसे सैकड़ों छात्रों का भविष्य इन नियमों के जाल में फंसा है। भले ही ऋषि को अब सांदीपनि स्कूल में प्रवेश मिल गया हो, लेकिन उसके परिवार को एक वर्ष की देरी की कीमत चुकानी पड़ी है। यह कीमत न तो ऋषि की गलती थी, न उसके माता-पिता की, बल्कि एक दोषपूर्ण नीति निर्माण का परिणाम है।
शिक्षा नीति का उद्देश्य बच्चों के भविष्य को संवारना है, न कि उसे अंधकार में धकेलना। आवश्यकता है एक संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण की, जो बच्चों के शैक्षणिक हितों को सर्वोपरि रखे।
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