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ग्राउंड रिपोर्ट इंपैक्ट: वन मित्र पोर्टल पर सुनवाई का रास्‍ता हुआ साफ

7 अप्रैल को जारी पत्र (क्रमांक/93/प्र.स.जा.का.वि./2025) में विभाग ने हाइब्रिड माॅडल की घोषणा की है। इसके अनुसार अब दावों की सुनवाई ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से होगी। 

By Sanavver Shafi
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Photograph: (Ground Report)

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ग्राउंड रिपोर्ट ने पिछले महीने मध्य प्रदेश वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत दावों की ऑनलाइन प्रक्रिया में मौजूद खामियों की पड़ताल की है। 29 मार्च को प्रकाशित ''आदिवासी बनाम जनजातीय विभाग: ऑफलाइन नहीं ऑनलाइन ही होगी सुनवाई'' खबर और वन मित्र पोर्टल की खामियों पर लगातार रिपोर्टिंग का असर दिखा है। मप्र जनजातीय विभाग ने ऑनलाइन सुनवाई की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। 7 अप्रैल को जारी पत्र (क्रमांक/93/प्र.स.जा.का.वि./2025) में विभाग ने हाइब्रिड माॅडल की घोषणा की है। इसके अनुसार अब दावों की सुनवाई ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से होगी। 

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क्या है पूरा मामला

मप्र के 11 आदिवासी संगठनों के प्रति‍निधियों ने केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय (MOTA) के एफआरए डीविजन को 13 फरवरी को शिकायत की थी। इस शिकायत पर संज्ञान लेते हुए MOTA ने मप्र जनजातीय विभाग को 24 फरवरी को पत्र लिखा।

इस पत्र में  MOTA ने राज्‍य में वन मित्र एप और पोर्टल के कारण वन अधिकार अधिनियम के प्रभ‍ावी क्रियान्‍वयन में बाधा उत्‍पन्‍न हो रही हैं। इस वजह से व्‍यक्तिगत वन अधिकार दावों की बड़े पैमाने पर अस्‍वीकृति हो रही हैं आदि बिंदुओं पर इस पत्र में प्रकाश डाला गया हैं। वही MOTA ने राज्‍य सरकार को इन बिंदुओं के आधार पर जांच करने और एक सप्‍ताह में रिपोर्ट प्रस्‍तुत करने के विस्तृत आदेश भी दिए थे।

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दरअसल मध्य प्रदेश में वन अधिकार कानून साल 2008 से लागू है। अगर इस कानून के मद्देनजर व्यक्तिगत दावों के आंकड़ों को देखा जाए तो 2008 से जनवरी 2019 तक कुल 5,79,411 व्यक्तिगत दावे (आईएफआर) प्राप्त हुए थे। इनमें से 3,54,787 यानि 61.2 फीसदी दावों को निरस्त कर दिया गया है, और सिर्फ 2,24,624 दावों को ही मंजूरी मिली हैं। 

वहीं राज्‍य में वन मित्र पोर्टल के लागू होने के बाद से (2019 से लेकर जनवरी 2025 तक) कुल 6,27,513 दावे प्राप्त हुए हैं। इनमें से 5,85,326 दावें व्यक्तिगत और 42,187 दावे सामुदायिक थे। गौरतलब है कि इनमे से 2,66,901 व्यक्तिगत दावें और 27,976 सामुदायिक दावों को मिलाकर कुल 2,94,585 को मंजूरी मिली है। परंतु 3,22,407 यानि 51 प्रतिशत दावों को अब तक खारिज किया जा चुका था। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि वन मित्र पोर्टल और मोबाइल एप के आने से दावों की अस्‍वीकृति दर 61.2 प्रतिशत से घटकर 51 प्रतिशत रह गई है। लेकिन यह तथ्य अभी भी बरकरार था कि प्रदेश में आधे से अधिक दावे खारिज हो रहे हैं।

हालांकि राज्य सरकार ने सैटेलाइट इमेजरी के लिए एफआरए एलटस बनाया था। लेकिन आदिवासी संगठनों का आरोप है कि इस एटलस में काफी त्रुटियां देखने को मिलती हैं। मसलन इसके नक़्शे समय पर अपडेट नहीं होते हैं और जिन्हें दावे नहीं मिले हैं उनके दावे भी इस एटलस में दर्शाए जाते हैं। 

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मध्य प्रदेश में वन मित्र पोर्टल आदिवासियों की सहूलियत की मंशा के साथ शुरू किया गया था। लेकिन अब इसी की वजह से आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा था। इसके निराकरण के लिए प्रक्रिया को आसान बनाना, डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना और ओडिशा की तरह हाइब्रिड मॉडल की पहल एक विकल्प माना जा रहा था जिसके बारे में ग्राउंड रिपोर्ट ने विस्तार से कवरेज की थी।  

ग्राउंड रिपोर्ट की 29 मार्च की खबर में सतना जिले के आदिवासियों की परेशानियां सामने रखी गईं थीं। हमारी रिपोर्ट में आंकड़े भी पेश किए गए थे जिनके मुताबिक 2019 से जनवरी 2025 तक 627513 दावों में से 51 प्रतिशत खारिज हुए हैं। इन दावों का ख़ारिज होना तकनीकी खामियों और डिजिटल पहुंच की कमी को दर्शाता है। 

अब राज्‍य में ऐसे होगी वनाधिकार दावों की सुनवाई

वन अधिकार दावों को अब वनमित्र पोर्टल पर ऑनलाइन दर्ज किया जा सकता है। तकनीकी कारणों से ऑनलाइन दावा दर्ज न कर पाने वाले दावेदारों के लिए ऑफलाइन दावे भी स्वीकार किए जाएंगे। वहीं अब वन अधिकार समिति द्वारा दावों की सुनवाई हाइब्रिड मोड (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से) में होगी। 

दावेदार वनमित्र पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ऑफलाइन आवेदन करने वालों के दावों को भी पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। ग्राम पंचायत के सचिव/रोजगार सहायक द्वारा दावों को ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। वहीं ऑफलाइन दावों को भी एकत्र कर पोर्टल पर दर्ज किया जाएगा।

प्रदेश के शिवप्रसाद जैसे लोग, जिनके पास स्‍मार्टफोन तो था, लेकिन पोर्टल चलाने की समझ नहीं थी। वहीं दूसरी ओर परसमानिया पठार के 16 गांवाें के आदिवासी, जिनके ऑफलाइन दावे ठुकरा दिए गए थे। विभाग का नया आदेश आने के बाद अब प्रदेश के शिवप्रसाद जैसे आदिवासी समुदाय के व्यक्तियों अब तसल्ली है कि उन्हें उनकी जमीन का हक मिलेगा। 

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