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Tribal carrying wood in Chhindwara Madhya Pradesh Photograph: (Ground Report)
मध्य प्रदेश में आदिवासियों के वन अधिकारों का हनन वन मित्र एप और पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा हैं। राज्य सरकार ने वन मित्र पोर्टल आदिवासी समुदाय की सुविधा के लिए डिजाइन किया था। अब यही उनके लिए असुविधा का कारण बन रहा है। राज्य में पोर्टल को आधार बनाकर आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित करने किया जा रहा है। ऐसे आरोप लगाते हुए मप्र के 11 आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय (MOTA) के एफआरए डीविजन को 13 फरवरी को शिकायत की।
इस शिकायत पर संज्ञान लेते हुए MOTA ने मप्र जनजातीय विभाग को 24 फरवरी को पत्र लिखा। इस पत्र में MOTA ने राज्य में वन मित्र एप और पोर्टल के कारण वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न हो रही हैं। इस वजह से व्यक्तिगत वन अधिकार दावों की बड़े पैमाने पर अस्वीकृति हो रही हैं आदि बिंदुओं पर इस पत्र में प्रकाश डाला गया हैं। वही MOTA ने राज्य सरकार को इन बिंदुओं के आधार पर जांच करने और एक सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए है।
प्रदेश में एफआरए की स्थिति
मध्य प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2019 में वन मित्र पोर्टल और मोबाइल एप लाॅन्च किया। इसका उद्देश्य एफआरए के तहत निरस्त दावों की समीक्षा और उनके निराकरण की प्रक्रिया को सरल बनाना था। लेकिन इसने आदिवासियों की मुसीबत में इजाफा किया।
सुप्रीम कोर्ट में पेश किए हलफनामें के मुताबिक प्रदेश में साल 2008 में वन अधिकार कानून लागू होने से जनवरी 2019 तक कुल 5,79,411 व्यक्तिगत दावे (आईएफआर) प्राप्त हुए, इनमें से 3,54,787 दावों को निरस्त किया, जबकि 2,24,624 दावों को मंजूरी मिली हैं। यानी 61.2 प्रतिशत दावों को खारिज कर दिया गया है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2019 से लेकर जनवरी 2025 तक वन मित्र पोर्टल के माध्यम से प्रदेश से कुल 6,27,513 दावें प्राप्त हुए, इनमें 5,85,326 दावें व्यक्तिगत और 42,187 समुदायिक दावें मिलें, जबकि 2,66,609 व्यक्तिगत दावें और 27,976 समुदायिक दावों को मिलाकर कुल 2,94,585 दावों को मंजूरी मिली, लेकिन 51 प्रतिशत दावे यानि 3,22,699 को खारिज किया जा चुका हैं और प्रदेश में 98 प्रतिशत यानि 6,17,284 दावों की निराकरण किया जा चुका हैं, जबकि 10,229 दावें पर सुनवाई होना बाकी है।
वन मित्र पोर्टल और मोबाइल की समस्या
सर्व आदिवासी समाज संगठन के हरी सिंह मरावी कहते है
''अधिकारियों द्वारा ऑफलाइन दावे स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं, केवल ऑनलाइन दावे ही मांगे जा रहे हैं। दावों के समर्थन में दावेदारों से तकनीकी साक्ष्य मांगे जाते हैं और इन के अभाव में दावे खारिज कर दिए जाते हैं।''
उनकी बात का समर्थन करते हुए रीवा जिले के डबोरा गांव के आदिवासी जगदीश यादव बताते है
"अधिकांश जिलों में पोर्टल अक्सर काम नहीं करता या ठप हो जाता है। इस वजह से दावेदार पोर्टल पर समीक्षा के लिए दावे अपलोड नहीं कर पा रहे हैं।''
वे आगे बताते है ''दावेदारों के पास अपने स्वयं की आईडी तक पहुंच नहीं है, न ही उनके पास पोर्टल पर लॉन इन करने के लिए पासवर्ड ह। इससे वे दावों के समर्थन में दायर किए गए दस्तावेजों को देखने में असमर्थ हैं। इस वजह से उनके दावे के खारिज होने की संभावना बनी रहती हैं।''
पन्ना जिले में आदिवासी प्रहलाद सिंह पत्र संख्या 23011/39/2018-एफआरए (ई-12833) का हवाला देते हुए कहते हैं
''आदिवासी समुदाय के पास अपने ऑनलाइन या ऑफलाइन (किसी भी सुविधाजनक माध्यम) दावा प्रस्तुत करने का अधिकार है। इस नियम का पालन कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।''
वे अफसोस जताते हुए आगे कहते हैं ''आदिवासी जब ऑफलाइन दावा प्रस्तुत करने की कोशिश करता है उनके हाथ खाली रहते है। जिलों के अधिकारी-कर्मचारी मप्र जनजातीय विभाग के जुलाई 2023 के आदेश का हवाला देकर वन मित्र के माध्यम से ही ऑनलाइन दावा करने का कहते हैं।''
वहीं डिंडौरी जिले के बजाग गांव की ग्राम सभा के सदस्य महेंद्र सिंह परस्ती कहते हैं ''नियम के तहत सैटेलाइट इमेजरी जैसी किसी भी टेक्नीक का यूज दावेदार के दावे के समर्थन में किया जा सकता हैं, लेकिन अधिकारियों द्वारा इनका मिसयूज कर दावों को खारिज किया जा रहा है।''
वे आगे कहते है कि '' प्रशासन को समुदायों की पूर्ण सहायता करने का निर्देश भी नियम में है, इसके बाद भी प्रशासन द्वारा आदिवासी समुदाय की किसी भी तरह की मदद नहीं की जाती है। उल्टा उन्हें एक विभाग से दूसरे विभाग के चक्कर लगाने के लिए मजबूर किया जाता है। ''
इन बिंदुओं पर होगी जांच
MOTA के आदेश के मुताबित राज्य सरकार को इन प्रमुख बिंदुओं पर जांच करनी होगी और अपनी रिपोर्ट सात दिन में प्रस्तुत करनी होगी। इन में अस्वीकृत दावों की समीक्षा के लिए अपनाई गई प्रणाली, जिसमें दावेदार को सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया गया है। जैसे कि FRA के नियम 13 के उल्लेख किया गया । वही क्या दावेदारों को उनके दावे की अस्वीकृति के कारणों की जानकारी दी गई और क्या उन्हें अपना पक्ष करने रखने का उचित अवसर दिया गया था।
वहीं वन मित्र मोबाइल एप क्या राज्य ग्राम सभाओं को अपने दावे ऑफलाइन प्रस्तुत करने की अनुमति देता है या नहीं। यदि देता है तो पिछले दो सालों में इसके माध्यम से कितने दावे प्राप्त हुए हैं।
इसके अलावा MOTA ने पत्र में लिखा है कि क्या समुदायों को वन मित्र पोर्टल और एप के उपयोग किए आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया है और क्या आदिवासी समुदाय ऑनलाइन दावे दर्ज करने में सक्षम हैं। क्या पोर्टल के माध्यम से दायर दावों की रसीद दावेदारों को दी जाती है। वहीं क्या पोर्टल के माध्यम से दावेदार/ग्राम सभा स्वयं यह देख सकते हैं कि उनके दावे किस चरण में हैं।
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