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नीले रंग की साड़ी पहन पानी बचाने का आह्ववान करती हुई जल सहेलियों की रैली Photograph: (ग्राउंड रिपोर्ट)
बुंदेलखंड में जल सहेलियों की 300 किमी की जल यात्रा जारी है। यह यात्रा ओरछा से 2 फरवरी को शुरू हुई थी। इसका आखिरी पड़ाव 19 फरवरी को जटाशंकर धाम छतरपुर में हैं। यात्रा के दौरान जल सहेलियां जगह- जगह पर चौपाल लगाकर लोगों को जल संरक्षण, जलसंवर्धन और जल के पुन: उपयोग के लिए जागरूक व संवेदित कर रही हैं। साथ ही इसका उद्देश्य बुंदेलखंड में सूख रही छोटी नदियों के पुनर्जीवन के लिए लोगों से सहयोग का आह्ववान करना भी है।
पुष्पा कुशवाहा इसी जल यात्रा में शामिल होने के लिए 2 फरवरी को ओरछा पहुंचीं थीं। वे इस यात्रा में 7 दिन से रोज लगभग 50 किलोमीटर पैदल चल रही हैं। वे अपनी सहेलियों के साथ जगह- जगह पर चौपालें लगाकर स्थानीय लोगों को पानी को बचाने के तरीके समझा रही हैं।
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इस यात्रा के दौरान ही देवी और लक्ष्मी पुष्पा की नई दोस्त बन गई हैं, जो निवाड़ी जिले से हैं। तीनों अपने पंचायत क्षेत्रों में करवाए गए जल संरक्षण के प्रयासों के अनुभव लोगों के साथ साझा करते हुए आगे बढ़ती जा रही हैं।
पुष्पा साल 2018 से ही परमार्थ समाज सेवी संस्थान के साथ जुड़कर अपनी पंचायत में पानी से जुड़े कामों में हिस्सा ले रही हैं। जबकि उनकी दोनों दोस्त देवी और लक्ष्मी वर्ष 2022 में ही जल सहेली बनी हैं।
पुष्पा बताती हैं कि उनका मायका टीकमगढ़ जिले की मवई ग्राम पंचायत में हैं। वहां उन्हें पानी की कमी का सामना नहीं करना पड़ता था लेकिन शादी के बाद वे खाकरौन ग्राम पंचायत में ससुराल आयीं तो पानी की किल्लत का सामना करना पड़ा।
साल 2018 में जल सहेली के समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने पानी बचाने की बारीकियों को समझा। अब तक वे पानी बचाने के लिए 2 खेत तालाबों और एक दर्जन सोक पिटों का निर्माण स्वयं की देखरेख में करवा चुकी हैं।
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उन्हें किचिन गार्डनिंग सीखने के लिए संस्था की तरफ से सागर और ललितपुर भी भेजा गया था। अब वे लोगों को किचिन गार्डन बनाने में भी मदद करती हैं। पुष्पा बताती हैं
"पहले पंचायत में मुझे कम ही लोग पहचानते थे। लेकिन अब मेरे काम की वजह से नई पहचान मिली है, लोग सलाह भी लेने आते हैं तो अच्छा लगता है।"
अब तक जल सहेलियों के कार्यों की वजह से बुंदेलखंड के 300 गांवों में पानी की समस्या को दूर किया गया है। जल सहेलियों को पानी के संरक्षण के साथ उससे जुड़े यंत्रों की तकनीकी जानकारी दी जाती है। उन्हें पाना लेकर हेण्डपम्प को खोलना, कसना और सुधारना भी सिखाया जाता है।
जल सहेली समूह की शुरूआत परमार्थ समाज सेवी संस्थान के द्वारा साल 2005 में की गई थी। जालौन जिले की माधोगढ़ ग्राम पंचायत में महिलाओं के द्वारा पहली पानी पंचायत का आयोजन किया गया था।
जल सहेलियां जल सुरक्षा के एजेंडे को आगे बढ़ाने और जागरूक करने जैसी प्रक्रियाओं सहित जल अधिकारों और उनके सामूहिक दावे की दिशा में काम करने की ज़िम्मेदारी निभाती हैं। इस प्रकार वे समुदाय के साथ संपर्क रख, पानी को लेकर मास्टर प्लान भी तैयार करती हैं। पंचायत, सरकार और नेताओं के सम्पर्क में रहकर गांव स्तर पर जल से जुड़ी समस्याओं को उठाना उनका प्रमुख काम है।
परमार्थ के सचिव और इस माॅडल को रूप देने वाले डाॅ संजय सिंह बताते हैं
"जल सहेली कैडर की शुरुआत जालौन, हमीरपुर और ललितपुर के 96 गांवों से की गई थी। फिलहाल बुंदेलखंड के 6 जिलों में 3000 से अधिक जल सहेलियां काम कर रही हैं। इस माॅडल को अब केन्द्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ एनजीओ माॅडल के रूप में मान्यता दी गई है। आज इनके द्वारा बुंदेलखंड के कम से कम 100 गांवों को पानी से भरपूर बना दिया गया है।"
संजय आगे कहते हैं
"जलवायु परिवर्तन और पानी के लगातार हो रहे दोहन की वजह से लोगों को बुंदेलखंड से पलायन करना पड़ा है। लेकिन ग्रामीण लोग अंग्रेजी के भारी भरकम शब्द क्लाईमेट चेंज का मतलब नहीं समझ पाते। हम शरीर के बुखार को धरती के बुखार के साथ जोड़कर उन्हें जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से अवगत करवा रहे हैं।"
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परमार्थ से हाल में जुड़े स्थानीय कवि तेजभान सिंह बुंदेला अपने कुर्ते पर नदी, कुंआ और तालाब बनाकर यात्रा में चल रहे हैं। वे सिर पर कुंए के नाम का मुकुट पहनकर नारा लगाते हैं "बचाओ मुझे बचाओ।" बुंदेला का यह तरीका लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। जिसकी वजह से लोग उनसे बात करने को उत्सुक हो उठते हैं। उनके इस अंदाज़ से वे लोगों तक पानी बचाने का संदेश आसानी से पहुंचा पा रहे हैं।
यात्रा का फिलहाल में लक्ष्य है कि लगभग 10 लाख लोगों को जल बचाने के लिए प्रेरित किया जाए, साथ ही इस दौरान 1000 से अधिक नई जल सहेलियों को जोड़ा जाए। संस्थान इस यात्रा के समापन के बाद सागर, दमोह, महोबा और चित्रकूट जैसे इलाकों में भी जल संरक्षण का काम शुरू करेगा।
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