यूं तो भारत का 24 फीसदी हिस्सा यानी 80.9 मिलियन हेक्टेयर वनों से घिरा हुआ है, और इनमें दो बड़े बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट भी आते हैं। जहां एक ओर भारत के पूर्वोत्तर के राज्य और मध्यप्रदेश आते हैं जहां पर्याप्त फॉरेस्ट कवर है। वहीं दूसरी ओर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य है जहां बहुत ही सीमित वनावरण है। इन सभी बड़े राज्यों का फारेस्ट कवर सात फीसदी से भी कम है। इसी फर्क को महसूस करते हुए प्रतापगढ़ के 29 वर्षीय युवा सुंदरम तिवारी ने देश भर में साइकिल से घूम कर वृक्षारोपण का अभियान चलाया है। ग्राऊंड रिपोर्ट ने भी उनसे बात की और जाना उनके अनुभवों के बारे में।
साइकल से पूरे भारत की यात्रा
सुंदरम ने बताया कि पहले वे एक एमएनसी कंपनी में नौकरी किया करते थे और इसी दौरान पर्यावरण के लिए भी काम करते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सुंदरम अपनी नौकरी छोड़ कर सिर्फ इसी दिशा में काम कर रहे हैं। पिछले दो सालों में सुंदरम ने पूरे देश की 14,000 किलोमीटर से अधिक की साइकिल से यात्रा की। इस दौरान सुंदरम ने 18,322 स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, और गांवों में 2 लाख से भी अधिक वृक्षारोपण किये हैं।
सुंदरम अपनी साईकिल से जोधपुर, दिल्ली, जयपुर जैसे बड़े शहरों से लेकर छिंदवाड़ा, पन्ना जैसे छोटे शहरों में जा कर पर्यावरण को लेकर जागरुकता फैलाते थे। इस दौरान सुंदरम ने 10 लाख से अधिक लोगों को संबोधित किया है।
स्थानीय प्रजातियों के वृक्षारोपण पर जोर
सुंदरम ने हमसे बातचीत के दौरान बताया कि वृक्षारोपण को सफल बनाने के लिए उन्होंने कुछ शर्तें तय कर रखीं थी। सुंदरम वृक्षारोपण के लिए स्कूल, कॉलेज या संस्थाओं का ही चुनाव करते थे, ताकि वृक्षों का जीवन सुरक्षित हो सके। इसके अलावा सुंदरम ध्यान रखते कि जिस संस्था में वृक्षारोपण कर रहे हैं वहां पौधों की देखभाल के लिए माली उपलब्ध है या नहीं।
उन्होंने ने यह भी प्रयास किया कि सिर्फ स्थानीय प्रजातियों का ही वृक्षारोपण किया जाए, ताकि वृक्षारोपण के साथ-साथ जैव विविधता को भी बल मिल सके। गांवों में वृक्षारोपण के लिए लोगों का रुझान तैयार करने के लिए सुंदरम फलदार वृक्षों का ही चुनाव करते हैं।
क्षेत्रीय संगठन और आम लोगों की मदद से चलाया अभियान
सुंदरम ने बताया कि अपने काम के लिए उन्होंने किसी फंडिंग की मदद नहीं ली। इस काम के लिए वो पर्यावरण के लिए काम करने वाले क्षेत्रीय संगठनों की मदद लेते थे और शहर के जनप्रतिनिधियों से मिलकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते थे। उन्होने पर्यावरण से जुड़े हुए देश के विभिन्न लोगों और संगठनों का एक ग्रुप बनाया हुआ है। इस प्रकार वो यात्रा से पहले ही अपनी योजना ग्रुप में साझा कर देते थे और उन्हें अपेक्षित मदद मिल जाती थी।
सुंदरम ने बताया कि उन्होंने जहां भी वृक्षारोपण करते थे उसके संबंध में बाकायदा एक रिकार्ड तैयार कर के रखा है। इसकी मदद से वो समय-समय पर पौधों के विकास की खबर भी लेते रहते हैं। लेकिन पंजाब की यात्रा के समय उनका फोन चोरी हो गया, और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के बाद अपडेट लेना संभव नहीं रहा।
पूर्व पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे से लेकर देश के विभिन्न राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों, और वन मंडल के अधिकारीयों ने सुंदरम के काम की सराहना की है। देश भर में साइकल से घूम कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश पहुंचाने के अपने अनुभव को लेकर सुंदरम बताते हैं कि,
पर्यावरण संरक्षण को लेकर साइकिल से पूरे देश की यात्रा करने के बाद लगता है आज भी देश में यदि आप निस्वार्थ भाव से कार्य करेंगे तो आपको लोग अपना प्यार ज़रूर देते हैं। इस दौरान मुझसे किसी ढाबा, छोटे दुकान वाले ने पैसा नहीं लिया। वे बोलते थे कि भैया बस मेरे नाम का एक पेड़ लगा देना। ऐसे लोग जिनसे मैं कभी मिला तक नहीं या शायद आगे न मिलूं, उन लोगो ने भी मुझे अपने घर में रुकाया खाना खिलाया और पूरा सम्मान और समर्थन दिया।
फिलहाल सुंदरम उत्तरप्रदेश की सई नदी की स्वच्छता को लेकर अभियान चला रहे हैं। सई नदी सुंदरम के जिले प्रतापगढ़ में भी बहती है, और लंबे समय से प्रदूषण की शिकार है। सई नदी की स्वच्छता का मामला एनजीटी के समक्ष भी गया था। सई नदी में स्वच्छता की बहाली को लेकर एनजीटी ने एक कमेटी गठित की थी। सुंदरम ने सई नदी की सफाई के लिए एक टीशर्ट हस्ताक्षर अभियान भी चलाया है। सुंदरम का कहते हैं कि उन्होंने सब काम छोड़ कर खुद को पर्यावरण के लिए समर्पित किया है। उनके इस काम में उनका गांव और परिवार भी उनका समर्थन करता है और प्रोत्साहन का कार्य करता है।
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