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दूसरी बार पर्यावरण मंत्री बने भूपेंद्र यादव के सामने क्या हैं चुनौतियां?

अलवर से चुने गए सांसद भूपेंद्र यादव (Bhupendra Yadav) को एक बार फिर से मोदी सरकार में देश के पर्यावरण और वनों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। आईये समझते हैं उनके सामने कौनसी चुनौतियां होंगी।

By Chandrapratap Tiwari
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bhupendra yadav

Source: X(@moefcc)

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सोमवार को मोदी 3.0 के कैबिनेट का गठन हो चुका है। कई मंत्रालयों की तरह पर्यावरण और वन मंत्रालय (Environment Ministry) में भी इस बार कोई फेरबदल नहीं किया गया है। अलवर से चुने गए सांसद भूपेंद्र यादव (Bhupendra Yadav) को एक बार फिर से मोदी सरकार में देश के पर्यावरण और वनों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके साथ ही गोंडा से सांसद कीर्ति वर्धन सिंह को MoEFCC का राज्य मंत्री बनाया गया है। आइये जानते हैं, पर्यावरण मंत्री के तौर कैसा रहा है भूपेंद्र यादव का कार्यकाल, और आने वाले कार्यकाल में क्या रहेंगी उनके सामने चुनौतियां। 

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बिग कैट्स को लेकर बढ़ीं उपलब्धियां 

भूपेंद्र यादव का पिछ्ला कार्यकाल कई मायनों में अहम रहा है। इस दरमियान भारत में बिग कैट को लेकर कई प्रयास हुए हैं। एक ओर प्रोजेक्ट चीता कुछ शुरआती अड़चनों के बाद अब सफल माना जा रहा है। वहीं भारत में तेंदुओं और बाघों की संख्या में भी सकारात्मक वृद्धि हुई है। हालिया आंकड़ों के मुताबिक आज भारत कम से कम 3167 बाघ हैं, वहीं भारत दुनिया भर के 75 फीसदी बाघों का बसेरा बन चुका है। भारत में अब तेंदुओं की संख्या भी 13,874 हो गई है। इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए, भारत अब इंटरनेशनल बिग कैट अलाएंस (IBCA) का सूत्रधार बन चुका है, और कंबोडिया को भारत के बाघ भेजने की तैयारी में है। 

रामसर स्थल बढ़े, लेकिन बुनियादी चिंताएं जस की तस 

भूपेंद्र यादव के कार्यकाल में भारत में रामसर स्थलों की संख्या 82 पहुंच गई है। रामसर स्थलों के मद्देनजर भारत, मेक्सिको और यू.के. के बाद तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। इसमें उल्लेखनीय तथ्य यह है कि, इन 82 में से 40 रामसर स्थल भारत को पिछले 3 सालों के दौरान मिले हैं। लेकिन ये विषय का सिर्फ एक पहलू है, इसका दूसरा पहलू चिंताजनक है। एशिया की सबसे बड़ी गोखुर झील और रामसर साइट, कांवर झील का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। केरल का रामसर स्थल अष्टमुडी झील मइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण झेलने को विवश है। वहीं इंदौर के सिरपुर लेक के समीप बढ़ता निर्माण कार्य और नियमों की अनदेखी आद्रभूमि संरक्षण की अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं। 

पर्यावरण और वन कानूनों में बड़े बदलाव 

भूपेंद्र यादव के पिछले कार्यकाल में पर्यावरण और वन कानूनों में बड़े संशोधन भी हुए, और इन संशोधनों से शंकाएं भी बढ़ी हैं। मसलन वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के सशोधन विधेयक में कई बड़े बदलाव किये गए। इस संशोधन में वन्य जीवों की अनुसूचियां 6 से घटाकर 4 कर दी गईं। इसके अलावा धारा 43 के अनुसार 'धार्मिक या किसी उद्देश्य से' हाथियों के इस्तेमाल की इजाजत दे दी गई। एक ओर जहां आए दिन मानव-हाथी संघर्ष की खबरें आती हैं वहां 'धार्मिक या किसी उद्देश्य से' जैसी अस्पष्ट भाषा आशंकित करती है। इसके अलावा इस अधिनियम में जुर्माने की राशि तो बढ़ा दी गई लेकिन मानव-वन्य जीव संघर्ष, और ईको सेंसिटिव जोन जैसे अहम विषयों पर ध्यान नहीं दिया गया। 

इसके अलावा भूपेंद्र यादव के कार्यकाल में बायोलॉजिकल डायवर्सिटी अधिनयम भी संशोधित हुआ। इस अधिनियम में सिर्फ विदेश से संचालित कंपनियों को जैव संसाधनों के उपयोग के पहले अनुमति के लिए बाध्य किया गया, और घरेलू कंपनियों को इसकी छूट दी गई। साथ ही इस संशोधन में NBA () की शक्तियां सीमित करते हुए, नियम न मानने वाले पक्षों के खिलाफ एफआईआर करने की शक्ति को भी हटा दिया गया। ये सभी संशोधन पर्यावरण को लेकर देश के विजन से विसंगति दर्शाते हैं। 

फॉरेस्ट कवर में सीमित बढ़ोतरी 

अगर 2021 की वन स्थिति रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो देश 24 फीसदी हिस्से में वन और वृक्ष कवर हैं। हालांकि 2019 की तुलना में भारत के ग्रीन कवर में इजाफा हुआ है, लेकिन ये 0.28 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में मैंग्रोव कवर 0.34 प्रतिशत बढ़ा है लेकिन, IUCN की हालिया रिपोर्ट में तमिलनाडु के तटों में फैले मैंग्रोव को क्रिटिकली इंडेंजर्ड की श्रेणी में रखा गया है। 

अगर इन सभी आंकड़ों को ध्यान में रखा जाए तो नजर आता है कि बीते 5 सालों में पर्यावण के दृष्टिकोण से भारत ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इसके साथ ही कई चुनौतियां हैं जो अब भी जस की तस हैं। 

क्या होंगी भूपेंद्र यादव के अगले कार्यकाल की बड़ी चुनौतियां 

प्रोजेक्ट चीता के पहले चरण की सफलता के बाद अब भारत प्रोजेक्ट चीता 2.0 शुरू करने जा रहा है। इसके लिए मंदसौर के गांधी सागर अभ्यारण्य को चिन्हित भी कर लिया गया है। लेकिन पहले चरण में चीतों की हुई मौतें, इस प्रोजेक्ट को चुनौती भरा बना देती हैं। 

इसके अलावा स्टेट ऑफ़ इंडियास इन्वायरमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 30 हजार से अधिक जल स्रोत अतिक्रमण का शिकार हैं। इसके साथ ही भारत में पर्यवरणीय अपराध भी लगातर बढ़ रहे हैं। भारत के अदालतों के सामने हर दिन 245 ऐसे मामले आते हैं जिनका संबंध पर्यवरणीय अपराधों से होता है। वहीं भारत में जड़ फैला चुका प्लास्टिक प्रदूषण, देश की मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी खराब कर रहा है। 

वहीं विश्व बैंक की रिपोर्ट 'Quality Unknown: The Invisible Water Crisis' के अनुसार भारत जैसे देशों में जल प्रदुषण जीडीपी वृद्धि दर को उसकी क्षमता से आधा कर देता है। जल प्रदूषण से भारत सरकार को प्रति वर्ष 6.7 से 7.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। साथ ही यह कृषि राजस्व में 9 फीसदी की गिरावट के साथ-साथ डाउनस्ट्रीम कृषि उपज में 16 फीसदी की कमी लाता है।

जाहिर तौर पर देश के पर्यावरण को लेकर ये चुनौतियां लंबे समय से चली आ रही हैं। इन स्थितियों में सुधार के लिए जागरुकता के साथ-साथ ठोस नीतिगत हस्तक्षेप आवश्यक हैं। अब अवलोकन का विषय होगा कि भूपेंद्र यादव अपने अगले कार्यकाल में इन चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं। 

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