राजस्थान के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान (Ranthambore National Park) में बड़ा वीभत्स नजारा देखने को मिला। दरअसल रणथंभौर के जोन 3 और 4 के बीच स्थित मालिक तालाब में गुरुवार की शाम 3 सांभर हिरन की लाशें तैरती हुई मिली। इनकी मृत्यु का कारण बढ़ी हुई गर्मी माना जा रहा है। अभी तक की जानकारियों के मुताबिक रणथंभौर में भीषण गर्मी के चलते एक सप्ताह में 12 से 15 सांभर अपनी जान गंवा चुके हैं। आइये जानते हैं कि भयंकर हीटवेव ने किस तरह से वन्य जीवों के जीवन को प्रभावित किया है, और समझते हैं कि वन विभाग इससे निपटने के लिए क्या उपाय करता है।
सांभर की मौत नहीं है पहला मामला
इस साल जब की तापमान अपने उरूज पर है, रणथंभौर के सांभर इसका शिकार हुए हैं। सांभर लंबी दूरी तय कर के तालाब के पास अपनी प्यास बुझाने आते हैं, और थक जाते हैं। इसके अलावा गर्मी के कारण रणथंभौर की घास भी सूखने लग गई हैं, जिसका सांभरों के आहार, और स्वास्थ पर सीधा प्रभाव पड़ा है।
इससे पहले मई के शुरूआती दिनों में तेलंगाना के नारायणपेट जिले में एक मादा तेंदुए की गर्मी से मृत्यु हो गई थी। ये तेंदुआ धान के एक खेत में मृत पाई गई थी। जहां तेंदुए की मृत्यु हुई थी उसके आसपास कोई बड़े पेड़ नहीं थे जिसकी छाया वो ले सके। बाद में वन विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इस तेंदुए की मौत अधिक गर्मी के चलते डिहाइड्रेशन से हुई थी।
अप्रैल के महीने में कर्नाटक के 4 हाथी की मृत्यु का कारण भी गर्मी ही था। इन हाथियों की मृत्यु डिहाइड्रेशन और घास की कमी से हुई थी। एक हाथी आमतौर पर अपने वजन का 10 फीसदी आहार लेता है, लेकिन बढ़ी हुई गर्मी के कारण घास और पेड़ सूखने लगे थे। जंगल में अतिरिक्त पानी की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है लेकिन, शाकाहारी जीवों के लिए आहार की आपूर्ति करना मुश्किल है।
मई महीने में ही जोधपुर के मचिया सफारी पार्क की इकलौती शेरनी अंबिका भी बढ़ी हुई गर्मी नहीं झेल पाई थी। पिछले साल कूनो में पहले जन्म लिए 4 में से 3 चीते जो कि बाड़े में सुरक्षित थे, बढे हुए तापमान को नहीं सहन कर सके थे और उनकी मृत्यु हो गई थी। ये सिर्फ कुछ उदाहरण है, जबकि भीषण गर्मी से आहात होने वाले वन्यप्राणियों की सूची लंबी और चिंताजनक है।
जानवरों को गर्मी से कैसे बचाता है वन विभाग
हीटवेव को लेकर वन विभाग कैसी तैयारियां करता है, और जानवर इस से किस तरह प्रभावित होते हैं, इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. सुदेश वाघमारे जी से बात की। सुदेश जी ने बताया इसकी तैयारियां बरसात के बाद से ही शुरू हो जाती हैं। गर्मी के अनुमान के अनुसार जंगलों में आर्टिफिशयल वाटर होल्स भी बनाए जाते है, ताकि वन्य जीवों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो।
इसके अलावा वन्य जीवों को पानी आदि के माध्यम से इलेक्ट्रोलाइट मिनरल्स भी दिए जाते हैं ताकि जीव में ऊर्जा बनी रहे, इनमे मुख्यतः सोडियम होता है। सुदेश जी ने बताया की जानवर आमतौर पर इतनी समझ रखते है कि उनके इलाके में कहां से उन्हें सोडियम मिल सकता है, इस प्रक्रिया को साल्ट लिकिंग कहते हैं।
हमने जब जानना चाहा की क्या चरम तापमान से जानवरों को पूरी तरह बचा पाना संभव है? इस पर डॉ. वाघमारे ने कहा कि जानवरों को अतिरिक्त पानी तो पहुंचाया जा सकता है, लेकिन खासतौर पर शाकाहारी जानवरों के लिए आहार उपलब्ध करा पाना बड़े जंगल में संभव नहीं है। आमतौर पर 45 डिग्री से अधिक तापमान बढ़ने पर जीव को मुश्किलें आनी शुरू हो जातीं हैं। डॉ. वाघमारे के अनुसार ये वो मौतें हैं जो नजर में आ गई हैं, जबकि ऐसी घटनाओं की असल संख्या और भी अधिक हो सकती है।
डॉ वाघमारे के अनुसार जलवायु परिवर्तन की वजह से पेश आ रही एक्सट्रीम हीट इस पूरी समस्या की मूल वजह है। बिना जलवायु परिवर्तन से निबटे इस समस्या से निजात नहीं पाई जा सकती है। ये घटनाएं हमारे लिए एक तरह का अलार्म है, कि यदि वक्त रहते नहीं संभला गया तो यही हश्र इंसानों का भी हो सकता है।
सांभर की जीभ इतनी खास होती है कि वो पेड़ की छाल को चाट कर उससे पानी ले लेता है। उसी सांभर का डिहाइड्रेशन और सनस्ट्रोक से मरना चिंताजनक है और हम सब के लिए एक चेतावनी है, जो क्लाइमेट चेंज के बड़े खतरे के रूप में नजर आ रही है।
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