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जवाई लेपर्ड सेंचुरी के आस-पास होते निर्माण कार्य पर लगते प्रश्नचिन्ह

राजस्थान के पाली जिले की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में तेंदुए रहते हैं। कुछ ट्रेवल वेबसाइट्स इनकी संख्या 60 से भी अधिक बतातीं हैं। क्षेत्र के इसी महत्व को देखते हुए राजस्थान सरकार 2018 में यहां जवाई लेपर्ड सेंचुरी (Jawai Leopard Sanctuary) भी बनाई।

By Chandrapratap Tiwari
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Tara

रूघनाथपुर की तेंदुआ तारा। Source: intsta @varawal_leopard_camp

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हाल ही में भारत सरकार ने इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस के लिए, 3 सालों के लिए 150 करोड़ का बजट स्वीकृत किया है। दुनिया भर में बिग कैट्स की सात और भारत में 5 प्रजातियां पाई जाती हैं। यूं तो इन सातों की अपनी खूबी है, लेकिन इन सब में तेंदुआ कुछ खास है। तेंदुए की एक खासियत है जो उसे बांकी के बिग कैट्स से अलग बनाती है, वो है उसका एकांत पसंद होना। लेकिन तेंदुओं के निवास के इर्द गिर्द बढ़ता मानवीय दखल तेंदुए के एकांत को बाधित कर सकता है।

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sangram singh
अभ्यारण्य और कम्युनिटी रिजर्व के लिए गांव वालों का प्रदर्शन 

भारत सरकार के हालिया आंकड़ों की मानें तो राजस्थान में तेंदुओं (Leopard) की अनुमानित संख्या 721 है। इनमें से राजस्थान (Rajsthan) के पाली जिले की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में तेंदुए रहते हैं। कुछ ट्रेवल वेबसाइट्स इनकी संख्या 60 से भी अधिक बतातीं हैं। क्षेत्र के इसी महत्व को देखते हुए राजस्थान सरकार 2018 में यहां जवाई लेपर्ड सेंचुरी (Jawai Leopard Sanctuary) भी बनाई। हालांकि इस क्षेत्र के लोगों के लिए इस अभ्यारण्य के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा, और अभ्यारण्य बनने के बाद भी इस क्षेत्र में काफी चुनौतियां शेष हैं। आइये विस्तार से समझते हैं जवाई लेपर्ड सेंचुरी के सफर और समस्याओं को। 

माइंस की संभावना के बावजूद बना अभयारण्य

वेलार गांव के निवासी संग्राम सिंह जी बताते हैं की इस क्षेत्र में माइंस खोलने का बड़ा प्रयास किया गया था। सरकार ने 10 माइंस अलॉट भी कर दीं थी। लेकिन गांव वालों ने इसका लंबा विरोध किया। कई धरने, प्रदर्शन, और ज्ञापनों के बाद राजस्थान सरकार ने यहां अलॉट हुई 10 माइंस को बंद किया और 2018 में इस क्षेत्र को लेपर्ड सेंचुरी घोषित किया। 

हालांकि क्षेत्र में अब कोई अधिकृत माइंस नहीं हैं, लेकिन खनन की गतिविधियां पूरी तरह से खत्म हो गईं हों ऐसा भी नहीं है। वो क्षेत्र जो कंजर्वेशन एरिया में नहीं आते हैं वहां अभी भी कभी कभार माइनिंग की गतिविधियां, पोकलेन मशीनें देखने को मिल जातीं हैं।

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लेपर्ड मूवमेंट एरिया में एक्टिव पोकलेन मशीन 

कंज़र्वेशन एरिया में नहीं शामिल है लेपर्ड मूवमेंट एरिया

लेपर्ड सेंचुरी बनने के बाद भी यहां की समस्याएं बनी हुई हैं। मसलन 5 गांव बेड़ा, वरावल, दूधनी, कोठार, और रूघनाथपुरा में होटल और सफारी हैं, लेकिन ये क्षेत्र कंज़र्वेशन एरिया में नहीं आते हैं। इन गांवों में लेपर्ड का मूवमेंट तो हैं लेकिन यहां की जमीनें प्राइवेट और रेवेन्यू लैंड हैं। आज स्थिति यह है कि तेंदुए की गुफा के सामने ही होटल बनी हुई है। 

प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या  

जवाई क्षेत्र में बने होटलों के विज्ञापनों और वेबसाइट्स में साफ़ देखा जा सकता है कि कैसे जंगलो के बीचोंबीच और पहाड़ी के नज़दीक ही होटलों का निर्माण हुआ है।  

जवाई में ही बने एक ट्रेवल वीडियो में (5:55) ट्रैवेलर बहुत उत्साह से कहती है कि होटल दो एक्टिव गुफाओं के पास स्थित है जो कि तेंदुआ देखने के लिए बेहद उपयुक्त है। ऐसे में यह प्रश्न तो उठता ही है कि जैव संरक्षण की दृष्टि से यह कितना ठीक है।

इसके अलावा क्षेत्र में होटल निर्माताओं ने होटल से लगकर फेंसिंग कर दी है। उदाहरण के तौर पर रौटेला और लिलोड़ा दो क्षेत्र हैं यहां। इन दोनों क्षेत्र में नर तेंदुआ एक ही है, छोटे कान; जो एक स्थान से दूसरे स्थान जाता था। फेंसिंग बनने से इस नर तेंदुए का कॉरिडोर प्रभावित हो रहा है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने वन विभाग से होटलों को एनओसी देने के संबंध में पूछा। इस पर वन विभाग का जवाब था कि प्राइवेट लैंड होने के कारण उनके पास एनओसी न देने का कोई ग्राउंड नहीं था। 

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होटल के आउटडोर स्वीमिंग पूल से साफ़ दिखती तेंदुओं की पहाड़ी और फेंसिंग। Source: Hotel Website      

पर्यावरण को देखते हुए भी चलाए जा सकते हैं होटल 

इसी सिलसिले में हमने पुष्पेंद्र सिंह से बात की। पुष्पेंद्र इलाके में पहाड़ी से दूर अपना 4 कमरों का होटल चलाते हैं। पुष्पेंद्र ने बताया कि उनकी अपनी जमीन पहाड़ी पर स्थित है, लेकिन फिर भी वो इससे काफी दूर अपना होटल चलाते हैं। 

हमने उनसे पूछा कि उनका होटल इलाके में बन रहे नए होटलों से किस तरह से अलग है। इस के जवाब में पुष्पेंद्र ने कहा कि उनका होटल तेंदुए की पहाड़ी से काफी दूर है। इसके अलावा पुष्पेंद्र अपने होटल में माइक और स्पीकर की इजाजत नहीं देते हैं। अपने मेहमानों के मनोरंजन के लिए वो लोकल फोक सिंगर को बुलाते हैं और कैंप फायर का सेटअप करते हैं। 

पुष्पेंद्र बताते हैं कि वो अपने होटल में प्लास्टिक की सामग्री का इस्तेमाल नहीं करते हैं, वो स्टील और कांच के गिलास और बोतलों का प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही पुष्पेंद्र ने बताया की उनका ज़ोर रहता है कि उनके होटल में स्थानीय लोगों को काम दिया जाए। पुष्पेंद्र का मानना है कि इससे स्थानीय लोगों में तेंदुए के प्रति सम्मान की भावना आती है कि तेंदुए के कारण ही उनका रोजगार चल रहा है। 

पुष्पेंद्र ने कहा कि बड़ी होटलें यहां के पर्यावरण के लिए ये जरूरी शर्तें पूरी करें इसके लिए एक एसओपी बनाई जानी जरूरी है। ताकि जंगल में प्लास्टिक और शोर न हो। साथ ही यहां के लोगों का रोजगार भी सुरक्षित रहे।    

पुष्पेंद्र सिंह ने बताया की टूरिस्ट इस क्षेत्र के लिए काफी मदद भी करते हैं। उन्होंने बताया की कई बार तेंदुआ घायल होता है तो इसकी सूचना उन्हें उनके टूरिस्ट ने ही दी है।

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लिलोड़ा का नर तेंदुआ छोटे कान, जो फेंसिंग में फंस कर घायल हो गया था। जिसके पेट में टांके लगे हैं। Source-  Kabir Oberoi  

कम्युनिटी रिजर्व और होटल-सफारी के लिए एसओपी की है मांग 

पुष्पेंद्र ने हाल की एक मीटिंग का जिक्र करते हुए कहा कि, उन्होंने अधिकारियों से मांग रखी कि क्षेत्र में चलने वाली सफारी जिप्सियों के लिए व्यवस्थित नियम हों, और ड्राइवर्स की ट्रेनिंग होनी चाहिए। इसके अलावा नए होटलों को बिना एसओपी के एनओसी नहीं दी जानी चाहिए। 

इसके समाधान के तौर पुष्पेंद्र की मांग है की इस क्षेत्र को एक कम्युनिटी रिज़र्व घोषित किया। ताकि इस क्षेत्र में कोई भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने की ताकत स्थानीय लोगों को मिल सके। 

इस पर क्या कहते हैं कानून 

इसके कानूनी पक्ष को लेकर हमने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे से बात की। इस पर उन्होंने बताया कि, भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972, राज्य और केंद्र सरकार (धारा 18, धारा 38) को किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र को अभ्यारण घोषित करने की शक्ति देते हैं। इसके अलावा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी के भीतर आने वाली भूमि को ईको-फ्रैजाइल क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए (धारा 3 (v), नियम 5, उप-नियम (viii),(x))। 

नेशनल वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान (NWAP) 2002-2016 में भी किसी संरक्षित क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र को महत्वपूर्ण इकोलॉजिकल कॉरिडोर माना है और इसकी सुरक्षा की हिमायत की है। रेवेन्यू लैंड पर आना वाला ये अधिकांश लेपर्ड मूवमेंट एरिया अभ्यारण की 10 किलोमीटर की परिधि में ही है। इन सब से के अलावा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48A सरकार को वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए निदेशित करता है। 

तेंदुआ शेड्यूल 1 का प्राणी है और आईयूसीएन (IUCN) की लिस्ट में वल्नरेबल जानवरों में आता है। जवाई इस तेंदुए का नेचुरल हैबिटैट है और तेंदुआ इस क्षेत्र को अलग पहचान और लोगों को रोजगार भी देता है। लेकिन अपर्याप्त नियम और लापरवाहियों से तेंदुए का हैबिटैट प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही दिन-ब-दिन लेपर्ड-ह्यूमन कनफ्लिक्ट का खतरा भी बढ़ता जा रहा है, जो अभी तक इस क्षेत्र में न के बराबर था। इन सब के अलावा ये घटनाक्रम हमारे सामने एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है कि हम जैव अभ्यारण्य जैव संरक्षण के लिए बनाते हैं या मनोरंजन और एडवेंचर के लिए। 

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