हम सबने दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की कई कहानियां सुनी हैं। उनमे से ही एक कहानी रूस के वाविलोव की है। वाविलोव रूस के एक कृषि वैज्ञानिक थे, जिनकी पूरी टीम अनाज के ढेर के बीच भूख से मर गई थी। उस टीम ने अनाज को भोजन के रूप में इस्तेमाल करने के बजाय मरना चुना, क्योंकि वो सामान्य अनाज नहीं, बल्कि गेंहू और चावल जैसे कई फसलों के बीज थे। ऐसा माना जाता है की आज जो वैश्विक खद्यान्न उपलब्धता है, उसमे वाविलोव का बड़ा योगदान है।
आज हम पुणे में रहने वाली वैष्णवी पाटिल के बारे में बात करने जा रहे हैं। वैष्णवी कोई वैज्ञानिक नहीं है, लेकिन वो इतना समझती हैं की बीज बचाना जरूरी है। ग्राउंड रिपोर्ट ने उनसे बात की और जाना उनके काम के बारे में।
वैष्णवी पाटिल पुणे (Pune) में रहती हैं, और देसी पौधों के बीज का संग्रहण करती हैं। वैष्णवी इस काम में पिछले 5-6 सालों से लगी हुई हैं। शुरू में वैष्णवी निजी स्तर पर बीज इकट्ठे करके उन्हें प्रोसेस करतीं थी। अब वैष्णवी आरंभ फाउंडेशन नाम की एक संस्था चलातीं हैं, जो कि कोल्हापुर में पंजीकृत है, और पर्यावरण के लिए काम करती है।
देसी वृक्षों के संरक्षण का है संकल्प
वैष्णवी ने अब तक 250 से अधिक किस्मों के, 15 लाख से अधिक बीजों का एक सीड बैंक बनाया है। सीड बैंक के साथ वैष्णवी ने एक सीड लाइब्रेरी भी बनाई है जिसमें इन 200 वृक्षों के बीजों के सम्बन्ध में जानकारी है। वैष्णवी देसी प्रजाति के वृक्षों (Indigenous Tree Species) के बीज को बचने में विशेष जोर देतीं हैं।
हमने जब वैष्णवी देसी वृक्षों के संरक्षण पर खास जोर का कारण पूंछा तब उन्होंने कहा कि, बाहरी वृक्ष क्षेत्र की जैव विविधता को सहारा नहीं दे पाते हैं। स्थानीय पक्षी और कीट सिर्फ देसी वृक्षों पर आते हैं, क्यूंकि वो ही इनकी जैविक जरूरतों को पूरा कर पाता है। वैष्णवी ने बताया कि, उन्होंने रेयर देसी किस्मों की खोज के लिए सह्याद्रि के घने जंगलों की यात्रा की और अन्य स्थानों में भटक कर इस अलहदा किस्म के बीजों का बैंक तैयार किया है।
250 से अधिक देसी प्रजातियां कर चुकीं हैं सुरक्षित
पुणे के आगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट के एक शोध के मुताबिक महाराष्ट्र की कुल 752 प्रजातियों में, 54 एंडेमिक स्पीसीज की श्रेणी में आती हैं। इसके अलावा 36 ऐसी प्रजातियां भी हैं जो जिनका इस धरती से अस्तित्व जा चुका है। वैष्णवी ने बताया कि, स्थानीय वन विभाग में भी पहले बहुत मात्रा में विदेशी वृक्ष थे, लेकिन उन्होंने कई स्थानीय वृक्षों के बीज वन विभाग को भी दिए हैं।
वैष्णवी, मीठा इन्द्रजौ (Wrightia tinctoria), किंजरी (Terminalia paniculata), जंगली बादाम (Sterculia foetida), और कनक चम्पा (Pterospermum acerifolium) जैसे दुर्लभ प्रजतियों के कई वैराइटी के 250 वृक्षों के बीज सुरक्षित करके, उनका वृक्षारोपण भी कर चुकीं है।
वृक्षारोपण, वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन का भी रखती हैं ध्यान
वैष्णवी की संस्था आरंभ फाउंडेशन ने पिछले कुछ समय से अपना काम का दायरा बढ़ाया है। वैष्णवी अब बड़े पैमाने में वृक्षारोपण भी करती हैं, और इन वृक्षों की देखभाल भी करती हैं। इसके अलावा वैष्णवी ने आलंदी में संत ज्ञानेश्वर माऊली के जन्मस्थान के पास सिद्धबेट तीर्थ में पंचवटी उद्यान भी बनाया है।
इस जगह कई तीर्थयात्री और वरकरी परंपरा के छात्र आते हैं। वैष्णवी ने इस स्थान पर बड़ी मात्रा में देसी वृक्षों का वृक्षारोपण कर वातावरण को हरा भरा किया है। वैष्णवी ने जम्मू और कश्मीर के आर्मी कैंप में भी पेंड लगवाए हैं, जिसके लिए फौज के अधिकारीयों ने वैष्णवी की सराहना भी की है।
सीमित संसाधनों में करतीं है काम
वैष्णवी से जब हमने इस पूरे काम पर आने वाले खर्च के बारे में पूंछा तो उन्होंने बताया कि, उनका सालाना खर्च 40 हजार के तकरीबन आता है। बीज की खोज में जगह जगह घूमने के खर्च के अलावा बीज के रखरखाव, पैकेजिंग और पार्सल में भी अधिक खर्च आता है। वैष्णवी ने कहा कि उन्होंने किसी से भी बीज के पैसे नहीं मांगे हैं, न ही कभी मांगेंगी। वो सिर्फ कुरियर में हुए खर्च की मांग करतीं हैं, लेकिन उन्हें कभी भुगतान मिलता है और कभी नहीं। वैष्णवी अपने निजी खर्च के अलावा, स्थानीय पर्यावरणीय समूहों की मदद, और डोनेशन पर निर्भर करतीं हैं।
वैष्णवी ने बताया की उनके पास सीमित संसाधन हैं। उनके घर का हॉल और पार्किंग बीजों से भरा रहता है। वो जब बीजों की सफाई और पैकेजिंग करती हैं तो आधा दिन निकल जाता है। उन्हें एक बड़े स्थान और विशेष तकनिकी संसाधनों की दरकार है।
वैष्णवी के संजोये बीज आज इंदौर, कश्मीर और देश के दूसरे कोनों तक पहुंच रहे हैं। इन सब के बाद भी वैष्णवी ने अपने काम को बीज बैंक तक महदूद नहीं किया है। वैष्णवी वृक्षारोपण, नदी की सफाई, और प्लास्टिक से संबंधित काम भी करती हैं। वैष्णवी ने बताया कि वे सबसे पहले छोटे बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करतीं हैं। वैष्णवी कहती हैं,
"सब जीव सृष्टि निसर्ग के ऊपर ही निर्भर हे मानव ने ही निसर्ग को बहुत बड़ा नुकसान किया हैl अपने अगली पीढ़ी, बच्चों के भविष्य के लिए और अपने को बचाना है तो अपने स्तर पर खुद से काम करना चालू करना चाहिएl जितना हो सके अपने आजू-बाजू पेड़ लगाकर, बड़े कीजिए l निसर्ग के प्रति संवेदनशील और जागरूक हो जाइएl हर बीज का पौधा बने, पेड़ बने, निसर्ग को उसका हक देl"
एक पेंड़ हजार बारिशों से बड़ा होता है, जिसकी छाया में एक स्थान विशेष की जैव विविधता फलती फूलती है। स्थानीय पौधों की प्रजतियों का संरक्षण, किसी क्षेत्र की जैव विविधता और पर्यावरण की रक्षा का शुरुआती कदम है।
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