Powered by

Advertisment
Home Climate Warriors मिलिए हज़ारों मोरों की जान बचाने वाले झाबुआ के इस किसान से

मिलिए हज़ारों मोरों की जान बचाने वाले झाबुआ के इस किसान से

झाबुआ (Jhabua) के एक किसान हैं नारायण सिंह जिन्होंने अपना जीवन मोरों की सेवा में लगाया है, और अब तक ढाई हजार से अधिक मोरों की जान बचा चुके है।

ByChandrapratap Tiwari
New Update
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

हम में से कइयों ने किंडर गार्डंस में कोरे मोर (Peacock) के चित्र पर रंग भरे हैं। हम सब ने ये भी सुना ही होगा की मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। हमने मोर गीतों में, फिल्मों में देखा है, लेकिन कई लोग हैं जो अभी तक असल जीवन में मोर नहीं देख पाए हैं। इन सब से अलग मध्यप्रदेश के झाबुआ (Jhabua) का एक गांव है करड़ावद जहां बड़ी मात्रा में मोर आते हैं। 

Advertisment

publive-image

करड़ावद के एक किसान हैं नारायण सिंह जिन्होंने अपना जीवन मोरों की सेवा में लगाया है, और अब तक ढाई हजार से अधिक मोरों की जान बचा चुके है। ग्राउंड रिपोर्ट ने उनसे बातचीत की जिसमें उन्होंने मोरों के साथ अपने सफर और इस सफर में आई चुनौतियों को साझा किया। आइये विस्तार से जानते हैं उनके इस सफर के बारे में। 

'मोरवाले' के नाम से मशहूर नारायण सिंह

Advertisment

नारायण सिंह जी बताते हैं की वे जब 12 साल के थे तब उन्हें एक घायल मोर मिला था। नारायण ने उनका इलाज कराया और तब से वो लगातार मोरों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। नारायण के इस काम में उनका परिवार उन्हें सहयोग देता है।

publive-image

इसके लिए नारायण को वन विभाग, कलेक्टर, और रेड क्रॉस सोसायटी से कई सम्मान भी मिले हैं। लंबे समय तक नारायण ने मोरों के लिए अकेले संघर्ष किया लेकिन कुछ वर्षों पहले ही उन्होंने पीकॉक वेलफेयर सोसाइटी नाम की संस्था बनाई है। 

Advertisment

मोरों के लिए बनाना चाहते हैं शेल्टर हाउस

नारायण का कहना है कि उनके क्षेत्र के 40 से अधिक गांवों में 15,000 से अधिक मोर आते हैं और रहते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में मोरों के इलाज के लिए सुविधाएँ इतनी सुलभ नहीं है। ऐसे में नारायण क्षेत्र में मोरों के लिए एक शेल्टर हाउस खोलना चाहते हैं, जहां मोरों के दाना पानी की व्यवस्था होगी और मोरों के लिए एक चिकित्सक भी उपलब्ध होगा। 

pk

नारायण बताते हैं की बारिश में अक्सर मोरों को डाला गया दाना बहकर व्यर्थ हो जाता है। इसके लिए वो शेल्टर हाउस में मोरों के दाने के लिए चबूतरे जैसा कुछ बनाना चाहते है। नारायण बताते हैं कि उन्होंने अपनी आधी उम्र इसके लिए खपा दी है, लेकिन अभी तक उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी है।  

मोरों के लिए दिल्ली भोपाल के कई चक्कर काट चुके हैं नारायण

नारायण बताते हैं कि वे मोरों को लेकर 90 के दशक से लगातार संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने बताया की वे मेनका गांधी (Maneka Gandhi) से 8 बार मिल चुके हैं। बकौल नारायण मेनका गांधी ने उनके प्रयासों की सराहना करते हुए उन्हें इस काम के लिए निजी स्तर पर संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया था। नारायण मोरों के संरक्षण को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल और पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (A. P. J. Abdul Kalam) से भी मिल चुके हैं। नारायण ने दिल्ली और भोपाल के कई चक्कर काटे लेकिन उनका काम नहीं हुआ।   

publive-image
मेनका गांधी से प्राप्त प्रशस्ति पत्र 

मांगी मदद, मिला आश्वाशन 

नारायण सिंह ने बताया की उन्होंने एमपीलैड के तहत मोरों के लिए शेल्टर हाउस की मांग की, जिस पर हामी तो भरी गई लेकिन राशि मंजूर नहीं हुई। नारायण ने बताया की उन्हें 2005 में प्रदेश के मुख्यमंत्री से साढ़े 10 लाख की राशि स्वीकृत हुई थी जो की उन्हें नहीं मिली।

publive-image
2005 में मुख़्यमंत्री से स्वीकृत साढ़े 10 लाख की राशि जो नारायण को नहीं मिली 

इसके बाद नारायण को प्रशासन की ओर से ढाई बीघा जमीन मिली। इसके साथ ही प्रशासन ने 13 लाख की धनराशि भी मुहैय्या कराई, जिसमें 3 लाख 39 हजार रुपये नारायण ने अपनी जेब से लगाए। इस पैसे से नारायण ने एक बॉउंड्री वाल और पानी भरने के कई हौदे और कुछ कमरे बनवाए। 

publive-image
कलेक्टर से मिले 13 लाख रुपये 

इन सब के बाद भी नारायण को कुछ कमरे और कई व्यवस्थाओं की कमी लगती है, मसलन मोरों के लिए इलाज की सुविधा। नारायण ने इस बावत प्रशासन से से क्षेत्र में मोर अभ्यारण्य बनाने की मांग की। इसके लिए नारायण को वे इलाके चिन्हित करने को कहा गया जहां मोर बड़ी संख्या में आते हैं। 

नारायण ने 40 गांव का इलाका चिन्हित करके रिपोर्ट पेश की लेकिन उसके बाद इस पर बात आगे नहीं बढ़ी। नारायण कहते हैं की वे कई अधिकारियों से मिल चुके हैं। हर कोई पहले उन्हें आश्वाशन देता है, फिर उनके काम को लेकर टालमटोल शुरू कर देता है।     

अपने खर्च से करते आ रहे हैं मोरों की देखभाल

नारायण बताते हैं की वो खुद ही इतने सारे मोरों के दाना पानी की व्यवस्था करते हैं। नारायण मोरों को मक्का, गेंहूं और चावल दाने में डालते हैं। हर महीने नारायण को 3 से 4 क्विंटल दाने की जरूरत लगती है जिसके लिए उन्हें हर महीने ढाई से तीन हजार के बीच खर्च आता है। इसके अलावा मोरों के इलाज दवा और अन्य खर्च अलग हैं।   

अंत में नारायण ने कहा कि, "मुझे मोरों से प्यार है, और मैं मोरों की सेवा को भगवान की सेवा मानता हूं। मेरे जीवन का एक ही सपना है की मेरी मृत्यु से पहले इन मोरों का संरक्षण सुनिश्चित हो जाए।"

Support usto keep independent environmental journalism alive in India.

यह भी पढ़ें

Follow Ground Report onX,InstagramandFacebookfor environmental and underreported stories from the margins. Give us feedback on our email id[email protected]

Don't forget to Subscribe to our weekly newsletter,Join our community onWhatsApp,Follow our Youtube Channelfor video stories.