बिहार के बेगुसराय जिले में स्थित एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की ऑक्सबो झील के रूप में जानी जाने वाली कांवर झील (kanwar lake) वर्तमान में अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। इसने आगंतुकों और पर्यावरणविदों के बीच चिंता बढ़ा दी है। आइये जानते हैं क्या है कांवर झील का महत्व और क्या हैं इसकी दुर्दशा की वजहें?
क्या है कांवर झील की कहानी
कांवर झील एक बड़ी झील है जो बेंगूसराय के 2620 हेक्टेयर गंगा के मैदानी क्षेत्र को कवर करती है। इसके महत्व को देखते हुए 1986 में बिहार सरकार ने इसे एक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया था, बाद में इसे पक्षी अभ्यारण्य भी बनाया गया। 2020 में इस झील को रामसर साइट का भी दर्जा मिला। कांवर झील बिहार की पहली रामसर साइट है।
कांवर झील की जैव विविधता
कांवर झील वेटलैंड मध्य एशियाई फ्लाईवे का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां 58 प्रवासी जलपक्षी आराम और भोजन करने आते हैं। इस क्षेत्र की जैव विविधता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, यहां 165 पौधों और 394 पशुओं की प्रजातियां पाई जातीं हैं। इसके अलावा यहां 221 पक्षियों की प्रजातियां भी पाई जातीं हैं। इन सब के अतिरिक्त इस झील में 50 से अधिक मत्स्य प्रजातियां पाई जातीं हैं।
इस झील में पांच क्रिटिकली एनडेंजर्ड प्रजातियां निवास करती हैं, जिनमें तीन गिद्ध शामिल हैं, लाल सिर वाला गिद्ध (सरकोजिप्स कैल्वस), सफेद पूंछ वाला गिद्ध (जिप्स बेंगालेंसिस) और भारतीय गिद्ध (जिप्स इंडिकस), और दो जलपक्षी, सोसिएबल लैपविंग (वैनेलस ग्रेगेरियस) और बेयर पोचार्ड (अयथ्या बेरी)।
कांवर झील की गिरती हालत के कारण
कांवर झील बूढी गंडक नदी के विसर्पण (नदी के बहाव का आकार) से कट कर बनी है। कांवर झील इस क्षेत्र के लिए बाढ़ से एक बफर का भी काम करती है। लेकिन हाल फिलहाल में बढ़ते अतिक्रमण से इस झील को आवश्यक पानी नहीं मिल पा रहा है। आवश्यक जल की मात्रा न मिल पाने के कारण यह झील छोटी होती जा रही है।
इसके अलावा पक्षियों का शिकार और आद्रभूमि क्षेत्र में कृषि गतिविधियों के कारण भी झील की स्थिति में गिरावट आई है। इस झील में बड़ी मात्रा में मत्स्य संपदा है। लेकिन झील का पानी और जैव विविधता प्रभावित होने से मत्स्य पालन पर निर्भर एक बड़ी आबादी की आजीविका पर खतरा बन आया है।
कंवर झील का महत्व केवल इसके आकार तक सीमित नहीं है। वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास के रूप में भी इसकी भूमिका है। हालाँकि, पर्यावरणीय गिरावट और उपेक्षा ने झील के पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी असर डाला है। इससे झील के दीर्घकालिक अस्तित्व को लेकर चिंताएँ पैदा हो गई हैं। पारिस्थितिक महत्व की इस बायोडायवर्सिटी-रिच झील की गिरती स्थिति से यहां की पर्यटन और मत्स्य आखेट पर निर्भर लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है।
यह भी पढ़ें
- पर्यावरण बचाने वाले उत्तराखंड के शंकर सिंह से मिलिए
- मिलिए हज़ारों मोरों की जान बचाने वाले झाबुआ के इस किसान से
- देसी बीजों को बचाने वाली पुणे की वैष्णवी पाटिल
- जवाई लेपर्ड सेंचुरी के आस-पास होते निर्माण कार्य पर लगते प्रश्नचिन्ह
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।