केंद्र सरकार ने देशभर के शहरों में कम से कम एक सिटी फॉरेस्ट बनाने और जलवायु परिर्वतन की चुनौतियों को कम करने के मकसद से वर्ष 2020 में नगर वन योजना शुरू की। इसका मुख्य उद्देश्य हर शहर की सीमा के अंदर ही नगर वन विकसित कर प्रदूषण, स्वच्छ हवा, ट्रैफिक का शोर और जल संरक्षण के प्रभावों को कम करना है। साथ ही निवासियों के लिए समग्र स्वस्थ वातावरण प्रदान करते हुए हरित और टिकाऊ शहरों के विकास में योगदान देना है।
भोपाल शहर के कोलार में चंदनपुरा क्षेत्र को मध्य प्रदेश वन विभाग के भोपाल सामान्य वन मंडल ने नगर वन के तौर पर विकसित किया है। जबकि यह पहले से ही हरे-भरे पेड़ों से कवर जंगल यानी डीम्ड फारेस्ट क्षेत्र है। साल 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मप्र वन विभाग को आदेश दिया था कि वे इस क्षेत्र को प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट घोषित करें, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने इस आदेश को अनदेखा (इग्नोर) कर इसे सिटी फॉरेस्ट बना दिया।
अब यहां सवाल यह उठता है कि जिस स्थान पर पहले से छोटे-बड़े झाड़ का जंगल (डीम्ड फॉरेस्ट) हो, वहीं पर केंद्रीय नगर वन योजना (NVY) के उद्देश्यों को पूरा करने का क्या तुक है? अगर यह नगर वन किसी बंजर या खाली पड़ी जमीन पर नए सिरे से विकसित किया गया होता तो यह शहर के ग्रीन कवर को भी बढ़ाता और हवा को स्वच्छ, जल संरक्षण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की चुनैतियों से निपटने में भी अहम भूमिका निभाता।
भोपाल वनमंडल द्वारा जब चंदनपुरा क्षेत्र के डीम्ड फॉरेस्ट में नगर वन बनाने का प्रस्ताव मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था, तब से ही पर्यावरण कार्यकताओं और शहर के जागरूक नागरिकों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा। पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस दौरान चेताया कि यह क्षेत्र रातपानी टाइगर रिजर्व में स्थित बाघों का मूवमेंट कॉरिडोर है, यहां पर हमेशा बाघ की आवजाही बनी रहती है। साथ ही यहां कलियासोत नदी की सहायक केरवा नदी का कैचमेंट क्षेत्र भी है। नगर वन का उद्देश्य लोगों को जंगलों से जोड़ना भी है, ऐसे में सेंसिटिव ज़ोन में इंसानी आवाजाही को बढ़ावा देना पर्यावरण की दृष्टि से कितना सही है?
क्या होते है नगरवन?
देशभर में बढ़ते शहरीकरण के कारण वनों की संख्या में तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है, इस वजह से प्रदूषण भी तेजी बढ़ रहा है, जाेकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को बढ़ाने का कारण है। इससे मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इस क्षति से निपटने के लिए शहरी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाने के मकसद से नगर वनों को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया।
मध्य प्रदेश में स्थिति
केंद्र सरकार ने साल 2020 में पायलट प्रोजेक्ट के तहत नगर वन योजना (एनवीवाय) की शुरुआत की और 2024-25 तक देशभर में 400 नगर वन और 200 नगर वाटिका विकसित करने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए केंद्र ने 895 करोड़ रू. का फंड रखा।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा साल 2020-21 से 2023-24 के बीच 30 नगर वन और नगर वाटिका विकसित करने के लिए करीब 3285.74 लाख रू का प्रस्ताव भारत सरकार को अनुमोदन के लिए भेजा गया। इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने प्रदेश में 27 नगर वन और नगर वाटिकाओं को विकसित करने की मंजूरी दी थी। इन नगर वन और वाटिकाओं के माध्यम से करीब 942.14 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर कर सिटी फॉरेस्ट में तब्दील किया जाना है। यह नगर वन प्रदेश के 12 शहरों (भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, देवास, सिंगरौली, सतना, उज्जैन, कटनी, खंडवा, रतमाल, सागर और इंदौर) में विकसित किए जा रहे है। इनको विकसति करने के लिए केंद्र से करीब 2402.67 लाख का फंड मिला, इसमें से मप्र वन विभाग द्वारा 1517.68 लाख रू. खर्च किए जा चुके है।
भोपाल शहर की स्थिति
इसी कड़ी में भोपाल शहर में पांच नगर वन विकसित किए जा रहे है, जिनमें लहारपुर बॉटनीकल गार्डन, एकांत पार्क, स्वर्ण जंयती पार्क, मोरवन शाहपुरा और मोरवन वन बैरागढ़ भी शामिल है। वहीं साल 2020 में भोपाल समान्य वन मंडल क्षेत्र की समरधा रेंज में कोलार क्षेत्र के समीप 50 हेक्टेयर यानी करीब 125 एकड़ भूमि चंदनपुरा वन क्षेत्र में नगर वन बनाने के लिए प्रस्तावित हुई हैं।
यह भूमि जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी के मुख्य गेट के दक्षिणी परिसर के नजदीक है। नगर वन में 300 प्रजातियों के पेड़ पौधे लगाए गए हैं, इसमें एक छोटे तालाब का निर्माण भी किया गया है। यहां मछली और बतख पाली गई है, जबकि पेड़ों की प्रजातियों नाम पर सागौन चौराहा, मेडसिन चौराहा, साज ट्रेल और खैर ट्रेल बनाए गए है। नगर वन में दीमक और चींटियों की एक बड़ी कॉलोनी भी विकसित की गई। इस नगर वन का ऑनलाइन उद्घाटन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा पिछले साल सितंबर माह किया जा चुका है, लेकिन फिर भी इसे आम निवासियों के लिए अभी तक नहीं खोला जा सका।
भोपाल सामान्य वन मंडल की समरधा बीट के रेंजर शिवपाल पिपरदे ने बताया कि अगले साल जनवरी माह में चंदनपुरा नगर वन को आम शहरी नागरिकों के लिए खोल जाएगा। यहां पर आम नागरिक मार्निंग और ईवनिंग वाॅक पर सशुल्क आ सकते हैं।
वे आगे कहते हैं कि यह इलाका बाघ भ्रमण क्षेत्र में आता है, लेकिन पार्क में बाघ को आने से रोकने के लिए चारों ओर 12 फीट ऊंची चेनलिंक फेसिंग लगााई गई है।
चंदनपुरा में विरोध की वजह
चंदनपुरा के जिस रकबे में नगर वन विकसित किया गया है, उन इलाकों में बाघ मूवमेंट बना रहता है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं की माने तो बाघ मूवमेंट क्षेत्र में नगर वन बनने के बाद लोगों की आवाजाही बढ़ेगी, ऐसे में बाघों को नुकसान हो सकता है। साथ ही मॉर्निंग-ईवनिंग वॉक के लिए आने वाले नागरिकों की सुरक्षा भी खतरे में होगी।
विशेषज्ञों के मुताबिक लोगों की आवाजाही को देखकर बाघ अपना भ्रमण क्षेत्र बदल सकते हैं। ऐसा हुआ तो वे जिन क्षेत्रों व जंगल में जाएंगे वह उनके लिए नया होगा और वहां टकराव की स्थिति बढ़ेगी। इसके साथ ही सिटी फाॅरेस्ट इलाके में व्यवसायिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और वन्य प्राणी प्रभावित होंगे।
बाघों का मूवमेंट क्षेत्र और गलियारा बचाने के लिए नेशनल ट्रिब्यूनल में याचिका दायर करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं
“इस नगर वन की स्थापना चंदनपुरा वन भूमि के चरित्र और पहचान को बदलने के लिए की गई है। ताकि इस वन क्षेत्र को नगर वन की परिभाषा के तहत एक नगरपालिका क्षेत्र के तौर पर पेश किया जा सकें। जैसा कि नगर वन परियोजना की योजना और दिशा-निर्देशों में उल्लेखित किया गया है।”
वे आगे कहते हैं कि “एनजीटी ने इस सिटी फाॅरेस्ट वाले इलाके को पूर्व में घना जंगल माना और उसे बाघों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के आदेश दिया है।”
राशिद की बात मानें तो इस क्षेत्र में कद्दावर लोगों की जमीनें मौजूद है, यदि इलाका संरक्षित वन में शामिल हुआ तो क्षेत्र में निजी जमीन पर व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगेगी, इसके लिए यहां पर शहर वन बनाया गया है।
पर्यावरणविद प्रभाष जेटली कहते हैं
“पिछले करीब 40 सालों से चंदनपुरा सहित आसपास का क्षेत्र बाघ गलियारा रहा है। यह इलाका रातापानी टाइगर रिजर्व के जंगल से मिलता है, जहां से यहां बाघ आते है, ऐसे में यहां सिटी फॉरेस्ट बनाकर लोगों के मूवमेंट को बढ़ाना उचित नहीं है।”
वे आगे कहते है कि यहां एनजीटी के निर्देशों और आदेशों को अनदेखा किया जा रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने फरवरी 2020 में मैपिंग कर क्षेत्र को प्रोटेक्टेड नोटिफाई करने के आदेश दिए थे। इसके लिए मप्र वन विभाग मुख्यालय ने एक कमेटी बनाकर इस क्षेत्र की मैपिंग कराई और प्रस्ताव सरकार को भेजा। इस प्रस्ताव पर राज्य सरकार ने दिनांक 16 जुलाई 2021 के राजपत्र अधिसूचना एफ-25-61-10-3 दिनांक 30 जुलाई 2021 को प्रकाशित कर चंदनपुरा की कुल 238.141 हेक्टेयर भूमि को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था। चंदनपुरा के अन्य खसरों के अलावा खसरा संख्या 73, 84 और 92 भी घोषित संरक्षित वन क्षेत्र में आते हैं।
इसकी जानकारी मप्र वन विभाग ने एनजीटी को अवधेश सिंह याचिका क्रमांक OA 44/2024 की सुनवाई के दौरान भी दी। एनजीटी को दिए जवाब में मप्र वन विभाग ने कहा कि चंदनपुरा क्षेत्र में खसरा क्रमांक 73 रकबा 1.236 हेक्टेयर, 84 रकबा 0.846 हेक्टेयर और 92 रकबा 1.828 हेक्टेयर पर जागरण सोशल वेलफेयर सोसायटी (जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी कॉलेज) का अतिक्रमण पाया गया है, जबकि यह जमीन सरकार द्वारा घोषित किए गए संरक्षित वन क्षेत्र में आती है। वहीं केंद्र सरकार से चंदनपुरा नगर वन की मंजूरी के लिए प्रस्ताव में इस नोटिफिकेशन की जानकारी नहीं दी गई थी।
हालांकि, चंदनपुरा नगर वन का बचाव करते हुए भोपाल सामान्य वनमंडल के डीएफओ लोकप्रिया भारती कहते हैं
“यह बात सही है कि इस क्षेत्र में बाघ का मूवमेंट बना रहता है और हाल ही में चंदनपुरा नगर वन में दो बाघ दिखाई दिए थे, लेकिन यह बाघ नगर वन में इसलिए आ गए थे क्योंकि उस समय फेंसिंग का काम पूरा नहीं किया गया था, अब फेंसिंग का काम पूरा किया जा चुका है। अब नगर वन में इंसान और वन्यप्राणी के द्वंद का खतरा नहीं है।”
वे आगे कहते हैं कि “चंदनपुरा वनक्षेत्र डीम्ड फॉरेस्ट नहीं है। यह भूमि राजस्व विभाग से वन विभाग को हाईटेक पौधारोपण के लिए हस्तांतरित की गई है। नगर वन का निर्माण साल 2020 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार की स्वीकृति और ग्रीन इंडिया मिशन के पत्र क्रमांक जीआईएम/2020-357 के द्वारा दी गई मंजूरी पर किया गया है। यह नगर वन राजस्व विभाग से प्राप्त खसरों और वनक्षेत्र को जोड़कर एनवीवाय की आवधारण के अनुसार विकसित किया गया है।”
नगर वन से प्रभावित हो रही कलियासोत की सहायक केरवा नदी
चंदनपुरा नगर वन के बन जाने से कलियासोत और उसकी सहायक केरवा नदी के कैचमेंट प्रभावित होने का खतरा भी बना हुआ है। जिस क्षेत्र में नगर वन विकसित किया गया है, उसके समीप से केरवा नदी का केचमैंट क्षेत्र लगा हुआ है। ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने नगर वन के समीप से केरवा नदी के केचमैंट क्षेत्र का भ्रमण किया और पाया कि नगर वन, केरवा नदी के केचमैंट को प्रभावित कर रहा है। जिसका पानी बारह माह बहकर कलियासोत नदी में थोड़ी दूर जाकर सड़क के उस पार मिलता है।
पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान भी मानते हैं कि नगर वन एक ओर तो बाघ गलियारों को प्रभावित करता है दूसरी ओर कलियासाेत नदी की सहायक केरवा नदी के प्रवाह को प्रभावित कर रहा है, इसकी वजह से बारिश के मौसम में केरवा नदी के केचमैंट क्षेत्र में आपदा आने का खतरा बना हुआ हैं।
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