मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में जहां एक ओर सोयाबीन और धान की फसल कट चुकी है, वहीं दूसरी ओर यहां के किसान गेंहूं की बुवाई के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। उनकी इस जद्दोजहद की वजह है गेंहूं के लिए जरुरी खाद यूरिया और डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) की अनुपलब्धता। लेकिन जहां एक ओर सहकारी समिति में यूरिया और डीएपी के लिए किसानों के बीच मारपीट और धक्कामुक्की की स्थिति बनी हुई थी, वहीं समिति में नैनो यूरिया की बोतलों का अंबार लगा हुआ है। ये वही नैनो लिक्विड यूरिया है जिसे सरकार प्रचलित ठोस यूरिया के एक बेहतर विकल्प के रूप में प्रचारित कर चुकी है। लेकिन फिर भी प्रदेश के किसान इसके उपयोग से किनारा कर रहे हैं, यहां प्रश्न उठता है, आखिर क्यूँ?
क्या है नैनो यूरिया
नैनो यूरिया एक तरह की तरल खाद है जिसका विकास 2021 में IFFCO (Indian Farmers Fertilizer Cooperative Limited) द्वारा किया गया है। अगर IFFCO की मानें तो नैनो यूरिया की एक 500 मिली लीटर की बोतल, 1 एकड़ में छिड़काव के लिए काफी है। साथ ही IFFCO का दावा है कि ये आधे लीटर की नैनो यूरिया की बोतल 1 बोरी (45KG) प्रचलित यूरिया जितनी प्रभावी है।
नैनो यूरिया की उपयोग विधि के बारे में IFFCO के दिशा निर्देश हैं कि बुआई के 20 से 25 दिन के बाद नैनो यूरिया का पहला छिड़काव और पहले छिड़काव के 20 से 25 दिन बाद दूसरा छिड़काव किया जाना चाहिए। IFFCO का दावा है कि अगर सही तरह से नैनो यूरिया का छिड़काव किया जाए तो पैदावार 8 फीसदी तक बढ़ सकती है।
नैनो यूरिया का उत्पादन और बिक्री
नैनो यूरिया भारत द्वारा पंजीकृत तरल खाद है जो कि 2021 में लॉन्च की गई थी, और अगस्त 2021 से बाजार में मौजूद होना शुरू हो चुकी है। वर्तमान में भारत के 4 संयंत्रों में नैनो यूरिया का उत्पादन होता है। ये संयंत्र कलोल, फूलपुर, अनोला, और आनंद में स्थित है, जो कि साल भर में लगभग 23 करोड़ नैनो यूरिया के बोतलों के उत्पादन की क्षमता रखते हैं। वहीं आने वाले समय में भारत में नैनो यूरिया के लिए 6 अन्य उत्पादन केंद्र स्थापित होने जा रहे हैं।
अगर लांच होने से लेकर अब तक नैनो यूरिया की बिक्री पर नजर डालें तो अब तक देश भर में कुल 7 करोड़, 32 लाख बोतलों से अधिक नैनो यूरिया बिक चुकी है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में यह संख्या लगभग 53 लाख 57 हजार बोतलों की है।
वहीं इफ्को की ताजा वार्षिक रिपोर्ट को संदर्भ में रखा जाए वित्तीय वर्ष 2023-24 में लगभग 87 लाख बोतलों का उत्पादन किया गया है, जो कि इससे पिछले वर्ष के 475 लाख बोतलों के उत्पादन से काफी कम है। उत्पादन के साथ ही अगर बिक्री को देखा जाए तो साल भर के अंतराल में नैनो यूरिया की बिक्री में भी गिरावट देखने को मिलती है। जहां वित्तीय वर्ष 2022-23 में नैनो यूरिया की लगभग 326 लाख बोतलें बिकी थी वहीं वर्ष 2023-24 में यह आंकड़ा घटकर 204 लाख बोतलों तक आ गया है।
जब ग्राउंड रिपोर्ट की टीम सीहोर की कुछ खाद-बीज की दुकानों और सहकारी समिति पर स्थिति का जायजा लेने पहुंची तब वहां बताया गया कि किसान नैनो यूरिया को लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। सीहोर जिले में खाद बीज की दुकान के संचालक धर्मेंद्र वर्मा कहते हैं कि, वे अपनी दुकान में नैनो यूरिया नहीं रखते हैं क्यों कि इसका कोई खरीददार नहीं हैं। वहीं उनकी दुकान से थोड़ी ही दूर पर स्थित एक दुकान के संचालक प्रीतम वर्मा भी बताते हैं कि नैनो यूरिया की मांग बेहद सीमित हैं। प्रीतम आगे कहते हैं,
हमने पिछले साल नैनो यूरिया का स्टॉक मंगवाया था जो अभी तक नहीं बिका है। किसान नैनो यूरिया इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं।
सीहोर जिले के ही थूना गांव की सहकारी समिति में भी लगभग यही स्थिति थी। इस समिति में कुछ दिन पहले यूरिया और डीएपी न मिलने से किसानों के बीच जूतमपैजार की स्थिति बन गई थी। लेकिन इसी समिति में नैनो यूरिआ की बोतलों का अंबार लगा हुआ था, जिसे किसान लेने से कतरा रहे थे।
थूना सहकारी सोसाईटी का काम संभालने वाले रामनारायन कहते हैं
"इफ्को ने यहां नैनो यूरिया और डीएपी की बोतलें भेजी हैं। वे हमें कहते हैं कि किसानों को तीन बोरी पर एक बोतल दें। लेकन किसान यह लेना ही नहीं चाहता तो हम ज़बरन उनको नहीं दे सकते। किसानों को उनकी पारंपरिक यूरिया ही चाहिए, जिसकी अभी गांव में किल्लत है।"
नैनो यूरिया के फसल की उत्पादन क्षमता पर प्रभाव?
इफ्को का दावा है कि नैनो यूरिया फसल के उत्पादन को 8 फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसके अलावा इफ्को ने देश के अलग-अलग हिस्सों पर नैनो यूरिया ट्रायल भी किये हैं। इस में मध्यप्रदेश में भी 1405 ट्रायल किए गए हैं जिनके अनुसार नैनो यूरिआ के इस्तेमाल से उत्पादन में 4.97 फीसदी के इजाफे की बात की गई है। लेकिन 2 डैनिश शोधकर्ता मैक्स फ्रैंक और सोरेन हस्टेड जुलाई 2023 के अपने ओपिनियन पेपर ‘इंडिआस लार्जेस्ट फ़र्टिलाइज़र मैन्युफैक्चरर मिसलीडिंग फार्मर्स एंड सोसाइटी यूजिंग डूबियस प्लांट एंड सॉइल साइंसेज’ में इफ्को के दावों का खंडन किया गया है।
इफ्को का दावा है आधा लीटर की नैनो यूरिया जिसमें 20 ग्राम नाइट्रोजन है, 45 किलो की प्रचलित यूरिया की बोरी जिसमें 21 किलो नाइट्रोजन होता है, के बराबर है। इसी दावे पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए शोधकर्ता कहते हैं की अगर यह दावा सच है तो उत्पादन क्षमता दावे से 1000 गुना अधिक बढ़नी चाहिए।
इसके अलावा इस इस शोध में अन्य सवाल भी उठाए गए, बहरहाल इन सवालों को विदेशी षड्यंत्र कह कर ख़ारिज कर दिया गया है। लेकिन भारत की ही प्रतिष्ठित पीयूए (पंजाब कृषि विश्वविद्यालय) में भी एक 2 साल के दरमियान एक रिसर्च हुई है। इस रिसर्च में पाया गया है कि नैनो यूरिया के प्रयोग से फसलों के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
पीयूए के शोध में निकल कर आया है कि नैनो यूरिआ के उपयोग के बाद धान के उत्पादन में 13 और गेहूं के उत्पादन में लगभग 22 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। जो कि एक बड़ी गिरावट है और इसका जोखिम कोई किसान नहीं उठाना चाहेगा। वहीं दूसरी ओर इफको के ट्रायल में धान के उत्पादन में 6 और गेहूं के उत्पादन में 5 फीसदी की बढ़त का निष्कर्ष दिया गया है। पीयूए और इफ्को ट्रायल के आंकड़े एक दूसरे के ठीक विपरीत है लेकिन पीयूए की उत्पादन में गिरावट गिरावट के सामने इफ्को के बढ़त के आंकड़े बेहद मामूली प्रतीत होते हैं।
सीहोर जिले के मुंगलिया छाप गांव के किसान रामविलास पाटीदार ने भी अपनी धान के फसल में नैनो यूरिया को आजमाया था। लेकिन रामविलास को उम्मीद मुताबिक़ नतीजे नहीं मिले। रामविलास कहते हैं कि,
हमने धान की फसल में नैनो यूरिया छिड़का था, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ, यह पूरी तरह से फेल है। गेहूं के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे।
रामविलास की तरह ही कई अन्य किसान भी नैनो यूरिया के प्रदर्शन से निराश नजर आए। वहीं कई किसानों ने नैनो यूरिया के छिड़काव में आने वाले अतिरक्त खर्च को भी इसे नकारने की वजह माना। सीहोर जिले के ही रायपुरा गांव के एक किसान जगदीश कुशवाहा कहते हैं,
ठोस यूरिया डालना आसान रहता है, इसे हम सीधे छींट देते हैं या कई बार बीज के साथ सीडड्रिल में डाल कर छिड़कते हैं। लेकिन नैनो लिक्विड यूरिया के छिड़काव के लिए हमें एक अतिरक्त मजदूर की जरूरत पड़ती है। इस समय वैसे ही खेती में कम बचता है तो फिर अतिरिक्त मजदूरी का बोझ कौन उठाए।
मध्यप्रदेश देश का तीसरा सबसे बड़ा खाद का उपभोक्ता है, लेकिन ठीक बुआई के समय यहां के किसान खाद से महदूद है। वहीं यूरिआ का विकल्प नैनो यूरिआ अपने साथ पर्यावरण सुलभ होने का तमगा और कई प्रश्न लिए किसानों के सामने एक दोराहे का निशान बन कर खड़ा हुआ है। और प्रदेश के किसान बुआई का समय निकलता देख अपने साथ कई दुविधाएं लिए सहकारी समिति की कतारों में लगे हुए हैं।
भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें।
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी
यह भी पढ़ें
कूड़े की यात्रा: घरों के फर्श से लैंडफिल के अर्श तक
वायु प्रदूषण और हड्डियों की कमज़ोरी
मध्य प्रदेश में पराली जलाने पर सख्ती नहीं, दम घोंटू धुंए से पटे गांव