भारत सरकार लगातार श्री अन्न (मोटे अनाज, Millets) के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। इन्ही श्री अन्न (Millets) में एक अनाज रामतिल (Niger Seed/Guizotia abyssinica) भी है। रामतिल को मंडला के स्थानीय लोग जगनी बुलाते हैं वहीं सुपर मार्केट्स में यह नाइजर सीड के नाम से बिकता है। इस अनाज का उपयोग खाद्य तेल, आहार, पेंट, और साबुन उद्योग में भी किया जाता है। लेकिन मंडला के किसान अब रामतिल की खेती छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में भी पिछले तीन दशकों में रामतिल का उत्पादन भी लगातार घटा है। आइये जानते हैं रामतिल के बारे में, और समझते हैं कि क्यों मंडला के किसान रामतिल की खेती से तौबा करते जा रहे हैं।
क्या है रामतिल
रामतिल पोषण एवं अन्य गुणों से भरपूर एक मोटा अनाज है। रामतिल के तेल का उपयोग भोजन, पेंट, साबुन और अन्य चीजों में किया जाता है। कई स्थानों पर रामतिल के तेल को जैतून के तेल के विकल्प के रूप में इस्तमाल किया जाता है। इसके अलावा इसे रेपसीड, तिल और अलसी के तेल के साथ मिलाकर भी उपयोग किया जा सकता है। इसके तेल का उपयोग मुख्यतः खाना पकाने में किया जाता है। भोजन के अतिरिक्त इसके तेल का उपयोग जलने और खुजली के उपचार में भी किया जाता है।
रामतिल को बीज के रूप में भूनकर खाया जाता है और मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। तेल निकालने की प्रक्रिया में निकली खरी (Oil Cake) का उपयोग पशुओं के आहार के लिए किया जाता है। रामतिल के तेल की गुणवत्ता की बात की जाए तो इसका असंतृप्त फैटी एसिड विषाक्त पदार्थों से मुक्त हैं, जिसे स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा माना जाता है। रामतिल में 32 से 40 फीसदी गुणवत्तायुक्त आयल कंटेंट और 18 से 24 प्रतिशत प्रोटीन उपलब्ध होता है।
इन सब के अतिरिक्त रामतिल को 'मधुमक्खी पौधा' भी माना जाता है, यानी यह मधुमक्खियों को अपनी ओर आकर्षित करता है और उनके लिए एक नेक्टर का कार्य करता है। इन सब के अतिरिक्त रामतिल की फसल से मृदा की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
रामतिल की कृषि अन्य फसलों की अपेक्षा आसान है। मंडला के क्षेत्र में रामतिल की बुआई मुख्यतः बारिश खत्म होने के कुछ समय बाद यानी सितंबर-अक्टूबर के समय होती है। इस वक्त मिटटी में हल्की सी नमी मौजूद होती है, जो की रामतिल की खेती के लिए उपयुक्त स्थिति प्रदान करती है।
रामतिल, कम प्रबंधन मिट्टी की सीमित उर्वरता, हल्की नमी जैसी स्थितियों में बेहतर उपज देने में सक्षम है। इसकी बड़ी वजह रोग, कीट, इत्यादि के प्रति इसकी उपयुक्त सहनशीलता है। रामतिल के लिए किसी विशेष सिंचाई और कीटनाशक इत्यादि की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
रामतिल की यही विशेषताएं इसे एक फायदे की फसल बना देती हैं। आज भारत सरकार रामतिल के लिए 8717 रु. की एमएसपी की घोषणा कर चुकी है। आज बाजार में रामतिल का मूल्य 350 से 500 रु. प्रति किलोग्राम तक है। वहीं इसका तेल 800 से 1200 रु. प्रति किलो तक बिकता है।
कैसा रहा है रामतिल के उत्पादन का ट्रेंड
भारत में अब तक रामतिल के क्षेत्र और उत्पादन में कई उतार चढाव देखने को मिलते हैं। 2023 में भारत में 44 हजार मीट्रिक टन रामतिल का उत्पादन हुआ था। वहीं इससे ठीक पहले 2022 के वित्तीय वर्ष में, भारत में 33 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था जो कि 2021 के उत्पादन से 9 हजार मीट्रिक टन कम था।
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अगर मध्यप्रदेश के अलोक में देखा जाए तो 2000-2001 में, मध्य प्रदेश में रामतिल का बुआई क्षेत्र 107,157 हेक्टेयर था। 2006-07 के बाद से ही यह क्षेत्र लगातार सिमटता जा रहा है, और साल 2022-23 में, प्रदेश में रामतिल की बुआई का क्षेत्र 10,080 हेक्टेयर तक सीमित रह गया है।
अगर प्रदेश में रामतिल के उत्पादन पर नजर डाली जाए तो 2000-2001 में यह 16,977 टन था, जो धीरे-धीरे बढ़ता गया। 2004-2005 में, यह उत्पादन 23,236 टन तक पहुंच गया था, जो कि एक सकारात्मक संकेत माना जा सकता था। लेकिन, 2010-2011 में उत्पादन में गिरावट आई, जब यह 20,063 टन तक गिर गया। हाल के वर्षों में भी प्रदेश के रामतिल उत्पादन में उतार-चढ़ाव नजर आए हैं।
इसके अलावा मध्य प्रदेश में 2000 से 2019-20 तक नाइगर बीज उत्पादन के विश्लेषण के आधार पर, विभिन्न जिलों में रामतिल के क्षेत्र और उत्पादन के स्तर में भिन्नता देखी गई है। छिंदवाड़ा एक प्रमुख जिले के रूप में उभरता है, जिसमें लगभग 24,956 हेक्टेयर का औसत क्षेत्र और लगभग 4,104 टन का औसत उत्पादन है, जो रामतिल की खेती की मजबूत क्षमता को दर्शाता है।
इसके विपरीत, होशंगाबाद, सागर, सतना जैसे जिलों में औसत क्षेत्र केवल कुछ हेक्टेयर और न्यूनतम उत्पादन के साथ काफी काफी कमजोर प्रदर्शन दिखता है। प्रदेश के अन्य जिले, जैसे जबलपुर, भी मध्यम प्रदर्शन दिखाते हैं, लेकिन वे छिंदवाड़ा के स्तर तक नहीं पहुंचते हैं। उत्पादन क्षमताओं में यह असमानता कम उत्पादक जिलों में रामतिल की खेती को बढ़ाने के लिए लक्षित कृषि रणनीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
रामतिल को अगर मंडला जिले के परिदृश्य में देखा जाए तो क्षेत्रफल और उत्पादन में एकाएक बड़ी गिरावट देखने को मिली है। वर्ष 2016-17 में मंडला में रामतिल का क्षेत्र 14000 हेक्टेयर तह जो साल 2017-18 में घटकर 4250 हेक्टेयर हुआ और 2018-19 में मात्र 207 हेक्टेयर में रामतिल की बुआई हुई। वहीं मंडला में रामतिल का उत्पादन भी इन वर्षों में क्रमशः 1920, 75, और 55 टन तक घटता गया है।
क्या हैं रामतिल की खेती छोड़ने की वजहें
मंडला की निवास तहसील के जंगलिया गाँव के बुजुर्ग किसान बेनी प्रसाद झारिया एक खाली पड़ी जमीन की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि,
पहले यह जमीन रमतिला की फसल से पूरी पीली दिखा करती थी। लेकिन अब लोगों ने यहां रमतिला की खेती करना छोड़ दिया है।
बेनी प्रसाद जी हमसे इसका कारण पूंछे जाने पर कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में रामतिल की फसल में अमरबेल जैसी खरपतवार फैल जाती थी, जो पूरी फसल को बर्बाद कर दिया करती थी। बेनी प्रसाद के नजदीक ही बैठी जंगलिया की ही शांति देवी बेनी प्रसाद की बात को समर्थन देते हुए कहतीं है कि,
एक बार हमारे जगनी के खेत में भी यह बेल फैल गई थी। इससे हमारी पूरी फसल बर्बाद हो गई थी, और हमारे हमारे हांथ एक भी उपज नहीं आई थी। अब हम भी जगनी की खेती नहीं करते हैं।
मध्यप्रदेश के दलहन विकास निदेशालय द्वारा 2017 में किये गए एक अध्ययन में भी अमरबेल (Cuscuta Weed) को मंडला जिले में रामतिल के लिए एक खतरे के रूप में चिन्हित किया गया था। बेनी प्रसाद इसकी वजह खेतों में डाले गए बाजार से लाए हुए बीजों को मानते हैं।
वहीं जंगलिया गांव के अपने घर के दालान में बैठी हुई शशि कली रिमिझिम-रिमझिम बारिश को देखते हुए कहतीं हैं,
सोचिये ये रमतिला का सीजन है। मुझे लगभग 25 साल यहां व्याह कर आए हुए हो गए हैं, लेकिन पहले इस समय ऐसी बारिश और बिजली नहीं हुआ करती थी जैसी अब है। पिछले 2-3 सालों में हमारे गांव के 6-7 लोगों की मृत्यु बिजली गिरने से हुई है। इस समय की बारिश हमारी मक्के की फसल बर्बाद कर रही है। रमतिला बोना तो हमने छोड़ ही दिया है।
दरसल रामतिल की फसल भारी वर्षा और अत्यधिक नमी बर्दाश्त नहीं कर सकती है। वहीं इस वर्ष मंडला में सितंबर के महीने में भी सामान्य से कहीं अधिक वर्षा हुई है। यह अत्यधिक वर्षा रामतिल की फसल को नकारत्मक रूप से प्रभावित करती है, जो की मंडला के किसानों को रामतिल की खेती छोड़ने को विवश कर रही है।
छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र में कार्य करने वाले डॉ. संत कुमार शर्मा रामतिल की खेती को लेकर बताते हैं कि, सामान्यतः 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच का समय इसकी बुआई के लिए सही माना जाता है। बारिश के खत्म होने के बाद जब मिट्टी में हल्की नमी रहती है, यह स्थिति रामतिल के के लिए सर्वोपयुक्त होती है। रामतिल ऐसी फसल है कि अगर इसे बंजर जमीन में बोआ जाए तो भी इसकी उपज हो जाती है। डॉ. संत कुमार आगे कहते हैं,
मंडला में रामतिल की खेती के छूटने की बड़ी वजह यील्ड पोटेंशियल का पूरी तरह से नहीं आ पाना है, क्यूंकि वहां इसकी तकनीकी कृषि नहीं होती है। इसके अलावा बदलती मौसमी दशाएं भी किसान को फसलों के दुसरे विकल्प अपनाने के लिए मजबूर करतीं हैं। मंडला में रामतिल की खेती कम होने की यही मुख्य वजहें हैं।
रामतिल आदिवासी समाज के पोषण का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। जंगलिया गांव की शांति देवी बताती हैं कि वे रामतिल के तेल से ही अपनी सब्जी, चटनी इत्यादि बनाया करती थीं। लेकिन अब शांति ने भी रामतिल की खेती करनी बंद कर दी है। शांति आगे कहतीं हैं,
अब हमारे यहां कोई रामतिल खाना पसंद नहीं करता है। सब लोग बाहर की नक़ल में चावल और गेहूं खाने लगे हैं। जबकि असली पोषण और ताकत कोदो, कुटकी, और रामतिल जैसे अनाजों में ही है। अब हम क्या करे जब कोई खाना नहीं चाहता इसलिए हम रमतिला नहीं बोते। अब हमने भी धान बोना शुरू कर दिया है।
भारत सरकार ने मिलेट्स (श्री अन्न) उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई अहम कदम भी उठाए हैं। सरकार ने 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष" घोषित किया, जिसके तहत मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं। प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत किसानों को मिलेट्स की खेती के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।
सरकार द्वारा इंटीग्रेटेड सर्टिफिकेट ऑफ मिलेट्स प्रोग्राम, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर मिशन फॉर मिलेट्स, नेशनल मिलेट्स मिशन (NMM) जैसी योजनाएं शुरू की है। इसके साथ ही, कृषि मंत्रालय मिलेट्स के लिए अनुसंधान, प्रसंस्करण और विपणन की सुविधाओं को भी मजबूत कर रहा है। सरकार की श्री अन्न नीति का उद्देश्य पोषण, जलवायु अनुकूल खेती और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, लेकिन ये अपने लक्ष्यों से अभी भी काफी दूर नजर आते हैं।
मंडला का क्षेत्र रामतिल और अन्य मोटे अनाजों की कृषि के लिए अपार संभावनाएं रखता है। लेकिन तकनीक, प्रोत्साहन, और पर्याप्त बाजार के अभाव की वजह से मंडला के किसान रामतिल की खेती छोड़ अन्य फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। रामतिल की एमएसपी 8717 रु प्रति क्विंटल है, लेकिन मंडला क्षेत्र में रामतिल का बाजार विकसित नहीं हो पाया है।
मंडला के किसान अब श्री अन्नों को छोड़ धान, राई, इत्यादि की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं, जो उन्हें अधिक सहूलियत और लाभ देती है। इस वजह से एक ओर मंडला में रामतिल का क्षेत्र सिमट रहा है वहीं दूसरी ओर लोगों का आहार भी बदल रहा है। मंडला के लोगों की थाली से कोदो, कुटकी, रामतिल जैसे पोषण से भरे अनाज गायब होते जा रहे हैं, जिसके दुष्परिणाम एक समय के बाद नजर आएंगे।
रामतिल इकलौता मोटा अनाज नहीं है जो मंडला के गांवों से गायब होता जा रहा है। इसके अलावा भदेला, समा और ज्वार जैसे मोटे अनाजों की कृषि में भी कमी आई है। वहीं इस बार की बेमौसम बारिश ने मंडला के किसानों की मक्का की फसल को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। ये सभी बिंदु विलुप्त हो रहे मोटे अनाजों के संरक्षण और प्रोत्साहन और संवर्धन की दिशा में एक गंभीर प्रयास की मांग को दर्शाते हैं।
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