/ground-report/media/media_files/2024/12/27/Q09g0cdAYjuxpwMsSQWB.jpg)
Degrading forests of Madhya Pradesh Photograph: (Ground Report)
मध्य प्रदेश सरकार बंजर वनभूमि को निजी कंपनियों के माध्यम से हरा भरा बनाने के लिए नीति लाने वाली है। लेकिन इस ड्राफ्टेड नीति में स्थानीय समुदायों का ध्यान नहीं रखा गया है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार जंगलों को सीधे निजी हाथों में सौंप रही है, जिसके परिणाम विपरीत हो सकते हैं।
मध्य प्रदेश सरकार 37 लाख हेक्टेयर वनभूमि प्राइवेट इन्वेस्टर्स (निजी कंपनियों) को लीज पर देने की तैयारी कर रही है। ये उजाड़ और बंजर वनभूमि (ओपन फाॅरेस्ट) है। कंपनिया इस वनभूमि पर कमर्शियल फाॅरेस्टेशन कर पाएगी। इस कमर्शियल फाॅरेस्टेशन से होने वाली कमाई का 50 प्रतिशत हिस्सा मालिक (निजी कंपनी) तो 30 प्रतिशत मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग और 20 प्रतिशत वन समितियों को जाएगा।
इस ड्राफ्टेड नीति का नाम सीएसआर, सीईआर एवं अशासकीय निधियों के उपयोग से वनों की पुनर्स्थापना नीति रखा गया है। अभी इस नीति के ड्राफ्ट पर लोगों से सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं। लोगों से प्राप्त होने वाले सुझावों और आपत्तियों को देखते हुए नीति में कुछ सुधार या बदलाव संभव हैं।
क्यों पड़ी इस नीति की जरूरत?
हाल ही में आई स्टेट फॅारेस्ट रिपोर्ट 2023 में पाया गया था कि मध्य प्रदेश देश में 77 हजार वर्ग किमी के साथ सर्वाधिक वनक्षेत्र वाला राज्य है। लेकिन पिछली रिपोर्ट (स्टेट फॅारेस्ट रिपोर्ट 2021) से तुलना में मध्य प्रदेश में 612 वर्ग किमी वनक्षेत्र कम हुआ है। 40 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वनक्षेत्रों को बंजर भूमि या ओपन फाॅरेस्ट कहा गया है, जो मध्य प्रदेश में लगभग 37 हजार वर्ग किमी है। वन क्षेत्रों में चिन्हित इसी बंजर भूमि को लीज पर दिया जाना है। मध्य प्रदेश देश में वनक्षेत्र में भले ही पहले स्थान पर हो लेकिन हाल में आई वन क्षेत्र में कमी की भरपाई करना चाहता है।
इस योजना से किसे होगा लाभ?
इस ड्राफ्टेड नीति को दो हिस्सों बांटा गया है। पहले हिस्से में सीएसआर (काॅर्पोरेट शोसल रिस्पांसबिलिटी) और सीईआर (काॅर्पोर्ट एनवायरमेंट रिस्पांसबिलिटी) निधियों की मदद से वनों को वापस उगाने के बारे में बताया गया है। वहीं दूसरे हिस्से में निजी निवेश की मदद से जंगलों को वापस खड़ा करने का प्रयास रहेगा। इस नीति के ड्राफ्ट में बताया गया है कि इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार के साथ, सरकार को राजस्व प्राप्त होगा। लेकिन कोई अनुमान नहीं बताया गया है कि कितने लोगों को रोज़गार और कितना राजस्व प्राप्त होगा।
इस योजना से क्या नुकसान हो सकते हैं?
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानि पीपीपी माॅडल जैसी ही इस ड्राफ्टेड नीति में विदेशी वनस्पितयों को लगाने पर प्रतिबंध रखा गया है। और लगाई जाने वाली स्थानीय वनस्पतियों की सूची वन विभाग ही जारी करेगा। तब भी इस नीति से होने वाले दुष्परिणामों पर पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे बताते हैं
“निजी हाथों में पर्यावरण को सुरक्षित नहीं देखा जा सकता है। कितने ही पेड़ सड़क, बिजली से जुड़े कामों के लिए काटे जाते हैं तब भी सरकार और निजी कम्पनियां उनकी भरपाई नहीं कर पातीं है। कल को हो सकता है कि जंगल की जमीन निजी हाथों में जाने से वहां वे (निजी कम्पनियां) कुछ और ही काम शुरू करने लग जाएं।"
पर्यावरण एक्टिविस्ट ने क्या बताया?
ग्राउण्ड रिपोर्ट ने सरकार से इतर दूसरे पक्ष को जानने के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे से बात की। अजय दुबे कहते हैं
“सरकार का पर्यावरण बचाने (पर्यावरण बहाली) को लेकर ट्रैक रिकाॅर्ड अच्छा नहीं है। फिर चाहे वह केन बेतवा प्रोजक्ट हो या नर्मदा योजना। नर्मदा योजना में ओंकारेश्वर नैशनल पार्क बनना था, 35 साल से नहीं बन पाया है। अभी भी सरकार वनभूमि के कब्जों को नहीं हटा पा रही है। हम कैसे मान लें कि सरकार इस नीति से बड़ा बदलाव कर पाएगी जबकि जंगल सीधे निजी हाथों में जाने वाले हैं।”
पर्यावरण एक्टिविस्ट अजय दुबे इस ड्रफ्टेड नीति पर ये भी कहते हैं
“यदि सरकार ऐसा कुछ प्लान कर रही है तो उसमें स्थानीय लोगों से बातचीत की जानी चाहिए, स्थानीय स्तर पर डिबेट होनी चाहिए। जहां- जहां भी इस वनभूमि को चिन्हित किया गया है। बजाय निजी हाथों के स्थानीय लोग इस ड्राफ्टेड नीति के केन्द्र में होने चाहिए थे। या फिर आप इसके लिए एक पायलट प्रोजेक्ट भी चला सकते हैं।”
वन विभाग से बात करने पर क्या पता चला?
जब ग्राउण्ड रिपोर्ट ने वन विभाग के अधिकारियों से इस नीति के ड्राफ्ट पर बात की तो एक सीनियर अधिकारी कहते हैं कि ड्राफ्टेड नीति अभी लोगों के सुझाव, शिकायतों के लिए पब्लिक डोमेन में रखी गई है। इसके आगे उन्होंने ड्राफ्ट पर कोई भी बात करने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि इस नीति को मध्य प्रदेश राज्य विकास निगम लिमिटेड द्वारा लागू किया जाएगा।
क्या जंगलों को निजी कंपनियों को सौंपना एक समाधान है?
जंगलों में निजी निवेश को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि इससे जंगलों की स्थिति में सुधार देखने को मिल सकता है। स्थानीय लोगों और किसान समृद्ध हो सकेंगे। कार्बन क्रेडिट का उपयोग कर सरकार बड़े निजी निवेश को आकर्षित भी कर सकती है। लेकिन कई क्षेत्रों में निजी निवेश ने हतोत्साहित भी किया है।
यूएसएआईडी (USAID) एक अमेरिकी सरकारी संस्था है जो अंतर्राष्ट्रीय विकास को लेकर काम करती है। यह संस्था 45 देशों (ज़्यादातर एशिया और अफ्रीका) में निजी निवेश की मदद से जंगलों को बढ़ाने के लिए काम कर रही है। इस संस्था का भी मानना है कि इस तरह के कदमों से ग्रामीण जीवन में सुधार होगा और लोगों को नौकरियों के अवसर मिलेंगे।
भारत में स्वतंत्र पर्यावरण पत्रकारिता को जारी रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्ट का आर्थिक सहयोग करें।
यह भी पढ़ें
कूड़े की यात्रा: घरों के फर्श से लैंडफिल के अर्श तक
‘अस्थमा है दादी को…’: दिल्ली में वायु प्रदूषण से मजदूर वर्ग सबसे ज़्यादा पीड़ित
किसान बांध रहे खेतों की मेढ़ ताकि क्षरण से बची रहे उपजाउ मिट्टी
कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र 'हरित समाधान' या गाढ़ी कमाई का ज़रिया?
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी ।