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किसान बांध रहे खेतों की मेढ़ ताकि क्षरण से बची रहे उपजाउ मिट्टी

ग्रो-ट्रीज के सहयोग से हरदा और खण्डवा के 15 से अधिक गांवों के 100 से भी ज्यादा किसान अब अपने खेत की मिट्टी बचाने के लिए ‘मेड़ बांध रहे’ हैं। इन किसानों का कहना है कि इससे मिट्टी का कटाव रुकेगा जिससे फ़सल के लिए ज़रूरी पोषक तत्व बचेंगे।

By Chandrapratap Tiwari
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Women planting trees to stop soil erosion in Khandwa Madhya Pradesh

खेतों को मिट्टी के क्षरण से बचाने के लिए पौधारोपण में हाथ बंटाती महिलाएं Photograph: (Grow Trees)

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भारत के लिए मिट्टी का कटाव (सॉईल इरोशन) एक धीमी लेकिन खतरनाक समस्या है। हाल ही में आईआईटी दिल्ली में हुए एक शोध के अनुसार देश का 30% भू-भाग लघु स्तर के कटाव से प्रभावित है। वहीं 3% हिस्से की टॉप सॉइल प्रलयकारी स्तर (catastrophic level) पर कटान का सामना कर रही है। इसका सीधा असर किसानों और उनकी फसल की उपज पर पड़ता है। 

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दरअसल मिट्टी के कटाव के चलते टॉप सॉइल में मौजूद ज़रूरी पोषक तत्व बह जाते हैं। जिससे फसल को ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं और उत्पादन प्रभावित होता है। एक अनुमान के मुताबिक मिट्टी का कटाव हर साल लगभग 74 मिलियन टन पोषक तत्वों के नुकसान का कारण बनता है। इसकी वजह से भारतीय कृषि क्षेत्र को लगभग 68 अरब रुपये (800 मिलियन डॉलर से अधिक) के आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। 

फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) के अनुसार 2050 तक मिट्टी के कटाव के चलते 750,000 लाख (75 billion) टन मिट्टी का क्षरण हो जाएगा। वहीं इससे दुनिया भर में फसलों का उत्पादन 10% तक गिर सकता है। यानि मिट्टी के कटाव का मामला सीधे तौर पर हमारी खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय से जुड़ा हुआ है। 

मगर मध्य प्रदेश के कुछ किसानों ने मिट्टी के कटाव से अपने खेतों को बचाने के लिए उपाय करना भी शुरू कर दिए हैं। 

मेढ़ पर पेड़

Trees in Farmland to stop soil erosion
खेतों की मेड़ पर लेग सागौन के पेड़ Photograph: (Grow Trees)

 

खण्डवा के शाहपुरा गांव के शंकरलाल का खेत नर्मदा की सहायक नदी रूपारेल के किनारे स्थित है। वह लगभग 25 एकड़ में खेती करते हैं। वह बताते हैं कि हर मानसून जब नदी का बहाव तेज होता था तो वह अपने साथ खेत की मिट्टी बहा कर ले जाती थी। इससे न सिर्फ शंकरलाल के खेत की मिट्टी के पोषक तत्व कम होते थे, बल्कि उनके खेत का लेवल भी बिगड़ता था। इसके चलते उन्हें सिंचाई करने में भी समस्या आती थी।

गौरतलब है कि संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार देश भर की लगभग 9 करोड़ 24 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि क्षरण का शिकार हुई है। वहीं मध्य प्रदेश में लगभग 1 करोड़ 22 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में क्षरण हुआ है।  

 

3 साल पहले शंकरलाल ने इस समस्या को हल करने का प्रयास शुरू कर दिया था। ग्रो-ट्रीज नाम की संस्था की मदद से उन्होने अपने खेत की ‘मेढ़ बांध’ दी है। दरअसल उन्होंने अपने खेत की मेढ़ों में सागौन का वृक्षारोपण किया है। इससे हुए फायदे के बारे में बताते हुए वो कहते हैं,

“पेड़ों की जड़ों के चलते मिट्टी बंध गई है जिससे अब वह बहकर खेत से बाहर नहीं जाती और खेत का लेवल भी बना रहता है।”

ग्रो-ट्रीज के संतोष प्रजापति कहते हैं कि पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं मगर नदियों के किनारे वृक्षों की कटाई के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ा है। इसलिए उनकी संस्था ने खंडवा में ‘ट्रीज फॉर वाटर’ और हरदा में ‘ट्रीज फॉर रिवर’ नाम के प्रोजेक्ट शुरू किए। 

Soil Erosion in Wheat field in Sehore
पानी के तेज़ बहाव में कटी खेत की मिट्टी Photograph: (Ground Report)

 

इस प्रोजेक्ट में खेतों की मेढ़ों और गांव की खाली भूमि में वृक्षारोपण किया गया। इसके लिए ख़ास तौर पर बांस (Bambusa spp.), सागौन (Tectona grandis) और कुछ मात्रा में फलदार वृक्षों का प्रयोग किया गया। प्रजापति के अनुसार इन परियोजनाओं का उद्देश्य इन दोनों जिलों की मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को बरकरार रखना, कार्बन सिंक बढ़ाना, और किसानों को अतिरिक्त आय का स्त्रोत उपलब्ध कराना है।

ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए वह कहते हैं,

“बांस और सागौन की जड़ों में मिट्टी को बांधने की अद्भुत क्षमता होती है। इनकी जड़ें घनी, और हॉरिजॉन्टल होती हैं जो मिट्टी के कटाव को रोकने का अच्छा विकल्प है। इसके अलावा बांस की जल धारण क्षमता (वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी) भी अधिक होती है जिससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज होता है।” 

वह कहते हैं कि मेढ़ पर लगा सागौन, खेत पर लगी हुई फसल को प्रभावित नहीं करता है। इसके साथ ही 10 से 15 वर्ष बाद जब सागौन परिपक्व हो जाता है, तब इसकी लकड़ियां भी काफी महंगी बिकती है। 

आय के साथ कार्बन सिंक बढ़ाने में मदद

Farmers planting trees in their field to prevent soil erosion
पौधारोपण में हाथ बंटाते किसान Photograph: (Grow Trees)

 

वहीं बांस के चुनाव के पीछे भी यही वजहें हैं। बांस खुद एक मजबूत कार्बन सिंक हैं। एक बार कटने के बाद बांस बहुत तेजी से बढ़ते हैं, और उनकी ऊंचाई भी अधिक होती है। बांस ग्रामीण घरेलू जरूरतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गांवों में इनकी मदद से कच्चे मकान, बाड़े व अन्य चीजें भी बनाई जाती हैं। इसके अलावा किसान इन बांसों को बेच कर अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकते हैं। 

ग्रो-ट्रीज के सहयोग से हरदा और खण्डवा के 15 से अधिक गांवों के 100 से भी ज्यादा किसान अब अपने खेत की मिट्टी बचाने के लिए ‘मेढ़ बांध रहे’ हैं। इन किसानों का कहना है कि इससे मिट्टी का कटाव रुकेगा जिससे फ़सल के लिए ज़रूरी पोषक तत्व बचेंगे। फसल की पैदावार बढ़ने से तात्कालिक फायदा तो मिलेगा ही साथ ही बांस और सागौन की लकड़ी बेचकर वो अतिरिक्त लाभ भी कमा पाएंगे। 

खाद्य सुरक्षा और खेती में मिट्टी के प्रत्यक्ष लाभ हैं। इसके साथ ही समुद्र के बाद मिट्टी कार्बन का सबसे बड़ा भण्डार भी है। धरती की मिट्टी में लगभग 2500 गीगाटन कार्बन मौजूद है। वहीं इसमें हर साल 2.05 पेटाग्राम कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता है। अच्छी तरह से प्रबंधित मिट्टी कृषि से होने वाले ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के 34% हिस्से की भरपाई कर सकती है। यह मिट्टी का दूसरा अप्रत्यक्ष लेकिन बेहद महत्वपूर्ण पहलू है। 

किसान अपने खेतों की मेढ़ को अक्सर वेस्टलैंड समझ कर छोड़ देते हैं, या पेड़ की छांव से फसल की ग्रोथ को होने वाले नुकसान के चलते पेड़ों को काट देते हैं। 

मगर ग्रो-ट्रीज के प्रयास यह बताते हैं कि इस भूमि का उपयोग न सिर्फ अतिरक्त कमाई के लिए किया जा सकता है बल्कि इससे प्रभावी तरीके से मिट्टी के कटाव को भी नियंत्रित किया जा सकता है। 

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