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बालाघाट: मॉनसून में धान किसानों को मलेरिया का रहता है खतरा

बालाघाट: मॉनसून में धान किसानों को मलेरिया का रहता है खतरा
बालाघाट: मॉनसून में धान किसानों को मलेरिया का रहता है खतरा

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भारत सरकार के हालिया आंकड़ों के मुताबिक 2021-22 के खरीफ सीजन में भारत में 581.7 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन हुआ है, जो निर्धारित लक्ष्य से 49 लाख मीट्रिक टन अधिक था। लेकिन चावल की खेती के लिए किसान को काफी चुनौतीपूर्ण और लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। धान की खेती के लिए भरे हुए पानी में जाना पड़ता है, जिसमें कई प्रकार के कीड़े और मच्छर पनपते हैं, जो किसान के स्वास्थ और जीवनचर्या को प्रभावित करते हैं। अब जब कि देश में मानसून की आमद है, ऐसे में ग्राउंड रिपोर्ट ने धान के किसानों से जाना उनकी परेशानियों के बारे में। 

किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण है धान की खेती 

मध्यप्रदेश के बघेलखंड में धान की खेती बहुतायत से होती है। धान की खेती कठिन श्रम और धीरज मांगती है। सिंचाई, बीज, खाद, दवा के खर्च के बाद यहां के किसान दिन रात आवारा पशुओं से अपनी फसल की रखवाली के लिए खेतों में ही खपते हैं। इन सब के बाद धान के खेतों में जनित वेक्टर बॉर्न बिमारियों का खतरा इन किसानों की मुसीबतें बढ़ा देता है।
 
इसी सिलसिले में हमारी बात रीवा जिले सिलपरी गांव के किसान राजबहोर पटेल से हुई। राजबहोर की तकरीबन 3-4 एकड़ की जोत है, और वो लंबे समय से धान की खेती करते आ रहे हैं। धान की खेती के अपने मुश्किल अनुभवों को साझा करते हुए राजबहोर बताते हैं कि,

पिछले साल खेतों में काम करते वक्त मुझे मच्छर ने काटा था और मलेरिया हो गया था। काफी समय तक हस्पताल में रहना पड़ा था। मैं लंबे समय तक खेतों में नहीं जा पाया था और मुझे खेतों में दवा छिड़कने के लिए मजदूर लगाने पड़े थे। मच्छरों की वजह से मुझे दोहरा खर्च उठाना पड़ा।

सिलपरी के ही एक किसान रजनीश भी इस मौसम में धान की ही खेती करते हैं। तकरीबन 7 एकड़ की जोत के किसान रजनीश बताते हैं कि धान की खेती उनके लिए आसान नहीं है। रजनीश बताते हैं कि इन बिमारियों का खतरा सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि बस्तियों और उनके घरों तक पहुँच जाता है। बरसात में कृषि की चुनौतियों के बारे में बताते हुए रजनीश कहते हैं कि,

हमारे घर खेत के नजदीक ही हैं। हम जब अपने खेत में दवाएँ छिड़कते हैं तो खेत के सभी कीड़े-मकोड़े हमारे घरों में आ घुसते हैं। इससे हमारा और हमारे बच्चों का स्वास्थ भी प्रभावित होता है। 

प्री मानसून सीजन में बढ़ जाता है मलेरिया का खतरा 

मानसून के शुरुआती दौर में मच्छरों का खतरा बढ़ जाता है। इस दौरान मलेरिया के खतरों के विषय में सतना जिले के मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी एल. के. तिवारी ने कहा कि, 

हमने पिछले कुछ सालों से ये ट्रेंड देखा है कि प्री-मानसून सीजन में मलेरिया के अधिक मामले सामने आते हैं। ऐसा इस दौरान होने वाली अनियमित बारिश और धूप के कारण होता है। 

मध्यप्रदेश का बालाघाट जिला यहां का मुख्य चावल उत्पादक जिला है। बालाघाट में धान के खेतों के कारण आए मलेरिया के मामलों को लेकर यहां के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनोज पांडेय कहते हैं कि,

चूंकि यह कार्य बरसात मे होता है पर कभी-कभी तेज धूप भी होती है। मौसम बदलने से यह संक्रमण काल भी कहलाता है, और पानी के जमा होने से मच्छर भी पनपते हैं। इस दौरान कीट पतंगे भी खूब होते है। 

डॉ. पांडेय बताते हैं कि ये कीड़े कई बार कान मे घुस जाते हैं,और एलर्जी रिएक्शन, खुजलाहट,फफोळे से लेकर मलेरिया, चिकेनगुनिआ, और डेंगू जैसी गंभीर बीमारी को जन्म देते हैं। लेकिन संतुलित आहार, पर्याप्त साफ-सफाई, और चिकित्सकीय सलाह की मदद से इन बिमारियों की सफल रोकथाम की जा सकती है। डॉ. पांडेय आगे कहते हैं कि,

ऐसे में मेरी सभी को सलाह है की आशा दीदी से सम्पर्क करें या 108 को बुलाकर सीधे अस्पताल जाएं। किसी भी झोलाछाप या पंडा-पुजारी या सरपी-बारी से बचें।

क्या कहते हैं इस पर शोध 

मानसून अपने साथ मलेरिया जैसे बड़े खतरे को लाता है। धान वर्षा पर निर्भर फसल है, जिसके लिए एक स्थिर रूप से सिंचित निम्नभूमि की आवश्यकता पड़ती है। धान की खेती की विषम परिस्थितियां और सीमित स्वास्थ अवसंरचना इसके दुष्प्रभाव बढ़ा देती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार, 2022 में भारत में लगभग 3,389,000 मलेरिया के मामले थे, जिससे यह दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक मामलों वाला देश बन गया। पूरे विश्व में कुल 249 मिलियन मलेरिया के मामले दर्ज किए गए और 85 देशों में इस बीमारी से 608,000 लोगों की मौत हुई।

IIPH, शिलांग द्वारा धान की खेती और मलेरिया के संबंध में एक शोध हुआ। इसमें 2019-2022 के बीच पश्चिम खासी हिल्स के नोंग्लांग और पश्चिम जयंतिया हिल्स के बराटो और नारतियांग से मच्छरों का संग्रहण किया गया। 

इस अध्ययन में 1,389 वयस्क मच्छरों के नमूने लोगों के घरों से, और 144 लार्वा नमूने गाँवों के आसपास से एकत्र किए गए। इन नमूनों की पहले सूक्ष्मदर्शी से पहचान की गई। इसके बाद डीएनए बारकोडिंग विधि का उपयोग करके आणविक पहचान की गई। अंततः ये सभी नमूने ICMR-NIRTH, जबलपुर भेजे गए, जहां प्रयोगशाला में इनका प्रसंस्करण किया गया और इन नतीजों का विश्लेषण मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में किया गया।

अध्ययन में दो जिलों से एकत्र किए गए 2,575 Anopheles नमूनों से 19 प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें से दस प्रजातियाँ धान के खेतों में पाई गईं। विशेष रूप से, Anopheles maculatus, Anopheles Pseudowillmori और Anopheles Jeyporiensis बड़ी संख्या में धान के खेतों में पाई गईं। 

हालांकि वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित करने के लिए पूरा पारिस्थितिक लार्वा सर्वेक्षण नहीं किया कि विभिन्न प्रजातियाँ संभावित प्रजनन स्थलों का कैसे उपयोग कर रही थीं। लेकिन उन्होंने पाया कि मेघालय क्षेत्र में धान के खेतों में बड़े पैमाने पर मच्छरों का उत्पादन करने की महत्वपूर्ण संभावना है, क्योंकि वे काफी भूमि को कवर करते हैं।

वर्तमान में मध्यप्रदेश के 1930 हजार हेक्टेयर के धान की खेती होती है, इसमें से एक बड़ा हिस्सा पूर्वी मध्यप्रदेश का है। जाहिर है इससे देश को काफी खाद्यान्न और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन इस क्षेत्र में मलेरिया और अन्य वेक्टर बॉर्न डिजीज (VBD) की स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके लिए व्यवस्थित अनुसंधान और उपाय की आवश्यकता है, अन्यथा भारत को 2030 तक मलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य, लक्ष्य ही रह जाएगा।  

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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