...
Skip to content

नौरादेही अभ्यारण में चौसिंगा का दिखना एक दुर्लभ घटना क्यों है?

नौरादेही अभ्यारण में चौसिंगा का दिखना एक दुर्लभ घटना क्यों है?
नौरादेही अभ्यारण में चौसिंगा का दिखना एक दुर्लभ घटना क्यों है?

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

मध्यप्रदेश के नौरादेही अभ्यारण्य जिसे अब रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है, में एक दुर्लभ मृग चौसिंगा (Four-Horned Antelope) देखने को मिला। यह जीव अपने अकार, रूप, सींग, और अब अपनी घटती संख्या को लेकर दुनिया भर में विख्यात है। आइये जानते है चौसिंगा (Four-Horned Antelope / Tetracerus quadricornis) के बारे में और समझते हैं क्या हैं इसकी घटती संख्या की वजहें। 

हिरण जैसा दिखने वाला एंटीलोप 

चौसिंगा दरअसल मृग न होकर एक एंटीलोप है, लेकिन ये दिखने में मृग जैसा ही है। यह लगभग 55-60 सेंटीमीटर यानि एक बकरी जितना ऊंचा होता है। इसकी हल्की भूरी-पीली खाल इसे आकर्षक बनाती है और इसे एक कैमोफ्लाज प्रदान करती है। यह शाकाहारी जीव मिश्रित और झाड़ी वनों में विचरण करना पसंद करता है। चौसिंगा को मद्धम घास पंसद आती है जहां यह आसानी से छुप सकता है। 

लेकिन इन सब से भी अलग चौसिंगा की एक खासियत है जो इसे बांकी मृग और एंटीलोप से अलग बनाती है, वो है इसके सींग। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि चौसिंगा के 4 सींग होते हैं। जब चैसिंगा बड़ा होता है तब इसके दो सींग निकलते है, और थोड़े समय के बाद माथे के बीचों बीच 2 और सींग निकलते हैं। हालांकि सिर्फ नर चौसिंगा के ही 4 सींग होते है, मादा के नहीं। 

सिमट कर भारत तक रह गई चौसिंगे की आबादी 

पहले चौसिंगा का प्रसार भारत, तिब्बत, और यूरेशिया तक हुआ करता था, लेकिन अब यह एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र तक सिमट कर रह गया है। आज चौसिंगा IUCN की रेड डाटा लिस्ट के वल्नरेबल की श्रेणी में आता है। दुनिया भर में अब केवल 7 से 10 हजार चौसिंगे ही शेष रह गए हैं, और वो भी सिर्फ भारत, और नेपाल की तराई में। 

खूबसूरत सींग ही बने शिकार की वजह 

हमने चौसिंगा की इस घटी हुई जनसंख्या की वजह जानने के लिए वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. सुदेश वाघमारे जी से बात की। सुदेश जी ने बताया कि इसका छोटा आकार इसे शिकार के लिए उपयुक्त बनाता है। साथ ही इसकी अनोखे 4 सींग भी शिकारियों को आकर्षित करती हैं। शिकारी शिकार के बाद इसके सींगों की ट्रॉफी बनाकर रखते थे, इसी वजह से इसका भारी मात्रा में शिकार हुआ। लेकिन अब स्थिति सकारात्मक है, और चौसिंगे की संख्या स्टेबल है। 

4ha
Source: National Library of Medicine

संरक्षण के सीमित प्रयास 

चौसिंगा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत पहली अनुसूची में आता है, ठीक उसी लिस्ट में जहां बाघ और तेंदुए हैं। इसके अलावा यह CITES के अपेंडिक्स III में भी शामिल है। IUCN के अनुसार इस जीव के ऊपर सबसे बड़ा संकट इसके हैबिटैट की बर्बादी का है, जिसके साथ शिकार व अन्य खतरे मिलकर चौसिंगा को गंभीर स्थिति में डाल देते हैं। 

हालांकि इसके संरक्षण के लिए कोई समर्पित कदम नहीं उठाये गए हैं लेकिन इसका इन-सीटू और एक्स-सीटू संरक्षण का प्रयास किया गया है। साथ ही इसका शिकार और व्यापार राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत प्रतिबंधित है। 

हालांकि चौसिंगा की क्षेत्रवार संख्या ज्ञात नहीं है, क्यूंकि इसकी अलग से गिनती नहीं की गई है। लेकिन फिर भी यह भारत के बांदीपुर, सरिस्का, कान्हा, कॉर्बेट, और अब नौरादेही जैसी जगह अपनी झलकियां दिखा देता है। ये सभी जगहें बाघ और तेंदुए जैसे शिकारियों से भरी हुई है, और उनके बीच उछलता चौसिंगा, एक स्वस्थ खाद्य जाल और जैव विविधता की तस्वीर खींचता आ रहा है।   

यह भी पढ़ें

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

 

Author

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins