मध्यप्रदेश में मानसून दस्तक दे चुका है और मध्यप्रदेश का वन विभाग जानवरों के लिए सुरक्षात्मक कदम उठा रहा है। बीते कुछ दिनों से मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों को एंटी डॉट लगाए जा रहे हैं। यह कदम बारिश के बाद होने वाले इंफेक्शन से चीतों को बचाने के लिए उठाया जा रहा है। आइये जानते हैं इन जानवरों के सामने बारिश में कैसी चुनौतियां खड़ी होतीं हैं और क्या है इनके बचाव की प्रक्रिया।
पहले भी हो चुकी हैं इन्फेक्शन से चीतों की मृत्यु
पिछले वर्ष जुलाई के महीने में 2 नर शावकों की मृत्यु हो गई थी। इनमें से एक शावक सूरज भी था जो कि दक्षिण आफ्रीका से लाया गया था। इन दोनों शावकों की मृत्यु इंफेक्शन फैलने से हुई थी, जो उनके गले में लगे रेडियो कॉलर के लगातार नमी में संपर्क के कारण हुआ था। इस इंफेक्शन की वजह से शावकों को सेप्टिसीमिआ (बैक्टीरिया की वजह से ब्लड पॉइजनिंग) हो गया था।
शावकों को नहीं छोड़ा जाएगा जंगल में
इस बारिश शावकों को इस तरह की घटनाओं से बचाने के लिए वन प्रशासन 13 जीवित वयस्क चीतों को एंटी डॉट लगाकर इंफेक्शन से बचाने का प्रयास कर रहा है। वन विभाग अब तक 6 चीतों को एंटी डॉट लगा चुका है, और बाकी 7 चीतों को एंटी डॉट लगाने का प्रयास जारी है।
जिन चीतों को एंटी डॉट लगे हैं उन्हें अभी जून के महीने में जंगल में बाहर नहीं छोड़ा जा रहा है। इन चीतों को थोड़े समय तक बाड़ों में रख कर इनका अवलोकन किया जाएगा, उसके बाद जुलाई में इन्हें बाहर छोड़ने का निर्णय लिया जाएगा।
हालांकि वन विभाग शावकों को एंटी डॉट नहीं लगा रहा है। इसके पीछे उनका तर्क है कि, चूंकि शावक बाड़े में ही रहेंगे और खुले जंगलों में नहीं छोड़े जाएंगे। इस वजह से उन्हें रेडियो कॉलर भी नहीं पहनाया जाएगा, न ही उन पर इंफेक्शन का खतरा होगा। चूंकि ये सभी शावक बाड़ों में ही होंगे इसलिए उनकी लगातार देखरेख भी संभव होगी, इसी वजह से इन्हे एंटी डॉट्स नहीं लगाए जा रहे हैं।
बरसात में बढ़ जाता है इन्फेक्शन फैलने का खतरा
इस पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए हमने वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. सुदेश वाघमारे से संपर्क किया। डॉ. सुदेश ने बताया कि चूंकि चीतों का सर्वाइवल रेट काफी कम होता है और बरसात में इन्फेक्शंस के खतरे भी बढ़ जाते हैं इसलिए वन प्रशासन ऐसे सुरक्षात्मक उपाय कर रहा है।
हालांकि जानवरों पर इंफेक्शन का खतरा लगातार बना रहता है, लेकिन इसकी संभाव्यता बरसात में बढ़ जाती है। बारिश के दौरान गीली मिट्टी, अधिक गीलापन, व अन्य कई कारक मिलकर बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन का कारण बनते हैं। दूसरी ओर चीते बांकी जानवरों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए इनके सर्वाइवल को लेकर अधिक तैय्यारी जायज है।
डॉ. सुदेश ने बताया की वन विभाग बारिश में सभी जानवरों का विशेष तौर पर जो संरक्षित हैं, उनका खास ध्यान रखते हैं। इन सभी जानवरों के रूटीन चेकअप और दवाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। साथ ही वन विभाग इनके आवास यानी गुफाओं के आस पास साफ सफाई का भी ध्यान रखती हैं।
अब जब के देश की महवाकांक्षी प्रोजेक्ट चीता की सारी उम्मीदें नन्हे शावकों के सर्वाइवल पर टिकीं हैं ऐसे में वन विभाग भी उन्हें लेकर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। वे अब भी बोमा (V आकर की एक बाड़े जिसमें चीते को इंसान नहीं दिखते हैं) में सहेज कर रखे जा रहें है। उन्हें जंगलों में खुला देखने के लिए शायद हमें और इन्तजार करना पड़ेगा।
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