रातापानी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को अब टाइगर रिजर्व का दर्जा मिल गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने सोमवार को इस बारे में अधिसूचना जारी की। यह प्रदेश का आठवाँ टाइगर रिजर्व होगा। नए टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 763.812 वर्ग किमी का होगा जबकि बफर एरिया का रकबा 507.653 वर्ग किमी का होगा।
मध्य प्रदेश को बीते दो दिनों में दो नए टाइगर रिजर्व मिले हैं। इससे पहले रविवार, 01 दिसंबर को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने माधव राष्ट्रिय उद्यान को टाइगर रिजर्व घोषित करने की मंजूरी दी थी। इसे अधिसूचित करने के बाद प्रदेश में टाइगर रिजर्व की संख्या 7 से बढ़कर 9 हो जाएगी।
रातपानी को यह दर्जा देते हुए सरकारी प्रेस रिलीज में लिखा गया,
“टाइगर रिजर्व गठित होने से भारत सरकार के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) से बजट प्राप्त होने से वन्य-प्राणियों का और बेहतर ढंग से प्रबंधन किया जा सकेगा। इसके साथ ही स्थानीय ग्रामीणों को ईको टूरिज्म के माध्यम से लाभ प्राप्त होगा। रातापानी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी और भोपाल की पहचान ‘टाइगर राजधानी’ के रूप में होगी।”
ऐसे में दो सवाल महत्वपूर्ण हैं। पहला यह कि रातापानी के टाइगर रिजर्व बन जाने से क्या बदलाव होंगे? और दूसरा यह कि क्या सरकार वाकई बाघों के संरक्षण के लिए संजीदा है या फिर उसकी प्राथमिकता टूरिज्म को बढ़ावा देना है?
2007 से लटका हुआ था मामला
साल 2007 में प्रदेश सरकार ने रातापानी और सिंघोरी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को टाइगर रिजर्व घोषित करने के प्रयास शुरू किए थे। साल 2008 में एनटीसीए ने इसके लिए मंजूरी प्रदान कर दी थी। इस दौरान राज्य सरकार के वन विभाग को इसके कोर एरिया और बफर के बारे में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए भी कहा गया था।
मगर बाद में यह मामला अटक गया और इसे नोटिफाई करने की तारीख टलती रही। 2012 में एनटीसीए ने इसके लिए प्रदेश सरकार को एक रिमांडर भी दिया था। मगर सरकार ने इस पर ढीला रवैया ही रखा। 2016 में सरकार ने एनजीटी को दिए एक जवाब में कहा कि उनका इसे टाइगर रिजर्व नोटिफाई करने का कोई भी प्लान नहीं है।
सेंचुरी के पास निर्माण कार्य से बढ़ा ख़तरा
साल 2014 में राज्य सरकार ने रातापानी के पास एक कोल बेस्ड थर्मल प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया था। इसके अलावा यहाँ रेल लाइन और रोड निर्माण ने प्रोजेक्ट भी प्रस्तावित थे। वहीँ 2022 में सरकार ने यहाँ 31 इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए थे। जिसमें एक फोरलेन नेशनल हाइवे भी शामिल था।
मगर इस दौरान सरकार ने यहाँ बाघों की सुरक्षा पर कोई भी ध्यान नहीं दिया। 2012 में यहाँ शिकारियों ने एक बाघ को करंट लगाकार शिकार किया था। वहीँ इसी साल यहाँ एक बाघ का कंकाल मिला था जिसकी बैलिस्टिक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बाघ को पास से सर पर गोली मारी गई थी। इस मामले को उजागर करने वाले वाइल्डलाइफ एक्टिविट अजय दुबे बताते हैं कि पूरे सेन्ट्रल इंडिया में इस तरह का शिकार रेयर है।
पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं कि सरकार ने निर्माण कार्य कर बाघों को जंगल से बाहर आने पर मजबूर किया है। इससे शिकारियों को फायदा मिला है।
बाघों की मौत में इजाफा
जुलाई 2023 को संसद में दिए एक जवाब में सरकार ने बताया कि 2018 से 2023 के बीच भारत में बाघों की मौत के आँकड़ें में इजाफा हुआ है। सरकार ने जो आँकड़ें पेश किए उसके अनुसार इस दौरान देश में बाघों की शिकार के चलते मौत में कमी आई है। मगर इसी बीच इनकी प्राकृतिक कारणों से मौत में बढ़ोत्तरी भी हुई है।
अजय दुबे कहते हैं कि प्रशासन सरकार की फेस सेविंग करने के लिए शिकार के आँकड़ों को छुपाता है। वह रातापानी के पास हाल ही में हुए शिकार का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सरकार ने पहले यह माना ही नहीं कि बाघ का गोली मारकर शिकार किया गया है। बाद में बैलिस्टिक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि बाघ के सर पर गोली मारी गई है।
राशिद नूर खान भी इन आँकड़ों पर सवाल उठाते हुए कहते हैं,
“क्या इस दौरान जंगल में कोई महामारी फैली थी कि प्राकृतिक कारणों से मौत बढ़ गई जबकि शिकार कम हो गए।”
दुबे कहते हैं कि प्रशासन अपनी सारी चतुराई शिकार को छुपाने और टाइगर रिजर्व के रेगुलेशन से बचने में लगाता है।
प्रोजेक्ट टाइगर के फंड में कटौती
देश में बाघों की घटती हुई संख्या को देखते हुए 1 अप्रैल 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया था। इसी तरह 1992 में प्रोजेक्ट एलिफेंट लॉन्च किया गया था। मगर 2023 में केंद्र सरकार ने इन दोनों को मिलाकर प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफैंट कर दिया। तब डाउन टू अर्थ से बात करते हुए पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा था कि केवल दोनों प्रोजेक्ट की फंडिंग को मर्ज किया जा रहा है।
मगर संसद में दिए आँकड़ों के अनुसार 2019 से 2022-23 तक प्रोजेक्ट टाइगर कि फंडिंग में कमी आई है। 2019 में इसके लिए 282.57 लाख रूपए आवंटित किए गए जबकि 282।23 लाख रुपए रिलीज किए गए। मगर 28 फरवरी 2023 तक के आँकड़ों के अनुसार 188 लाख रूपए ही आवंटित किए गए थे जिसमें से केवल 78.70 लाख ही रिलीज किए गए।
केंद्र सरकार ने 11 सितम्बर 2024 को इंटिग्रेटेड डेवेलपमेंट ऑफ वाइल्ड लाइफ हैबिटैट्स (IDWH) योजना को जारी रखने की घोषणा की थी। यह योजना देश में वाइल्ड लाइफ को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी जिसमें प्रोजेक्ट टाइगर, एलीफैंट, डॉलफिन और लायन भी शामिल हैं। इस दौरान सकरार ने योजना के लिए 2602.98 करोड़ रूपए की मंजूरी दी।
मगर 2023 में दिए गए आँकड़ों से स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत रिलीज किए गए पैसों में कटौती की है। वहीँ मध्य प्रदेश को इस योजना के नाम मात्र का ही पैसा मिला है।
बढ़ता हुआ वाइल्डलाइफ टूरिज्म
2020 तक के आँकड़ों के अनुसार भारत में हर साल 15% की वार्षिक दर से वाइल्डलाइफ टूरिज्म बढ़ा है। इसी साल के अप्रैल में इससे होने वाले मुनाफे में 1.2% का इजाफा हुआ है। जबकि मई, 2024 में यह दर 1.7 हो गई। इसका सीधा अर्थ यह है कि भारत में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म तेजी से बढ़ रहा है।
राशिद कहते हैं कि सरकार का पूरा फ़ोकस वाइल्ड लाइफ को बढ़ावा देने के बजाए टूरिज्म को बढ़ाने और अपनी छवि को चमकाने में है। वह कहते हैं कि बीते 10 सालों में भोपाल और उसके आस-पास बाघों के सड़कों पे आ जाने की घटना बढ़ी हैं। यह जंगल में बढ़ रहे इंसानी दखल को दिखाता है।
नए रिजर्व से होगा सुधार मगर कॉरिडोर बचाने होंगे
अजय दुबे नए टाइगर रिजर्व बनने को लेकर आशान्वित हैं। वह कहते हैं कि इससे रातापानी के बाघ सीधे एनटीसीए की निगरानी में आ जाएँगे। वह बताते हैं कि टाइगर रिजर्व बनने से आस-पास हो रही खनन गतिविधियों पर लगाम लगेगी। हालाँकि वह यह भी जोड़ते हैं कि इसे लागू करवाना पूरी तरह से सरकार के हाथ में ही होगा। मगर वह बांधवगढ़ और पन्ना टाइगर रिजर्व का उदाहरण देते हुए कहते हैं,
“इन दोनों रिजर्व में बाघों कि संख्या बढ़ना दिखाता है कि प्रशासनिक सख्ती बढ़ने पर संरक्षण सुनिश्चित होता है।”
वहीँ राशिद नूर कहते हैं कि बाघों को बचाने के लिए उनके कोरिडोर को बचाना पड़ेगा। उन्होंने भोपाल के अर्बन टाइगर्स के कॉरिडोर माने जाने वाले कालियासूत और केरवा डैम क्षेत्र में अवैध गतिविधियों के खिलाफ एनजीटी में याचिका भी दायर कर रखी है। वह कहते हैं कि इस क्षेत्र में आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों द्वारा निर्माण और शोर किया जा रहा है। इससे भविष्य में इंसान और बाघों के बीच संघर्ष बढ़ सकता है।
इस साल मध्य प्रदेश में 38 बाघों की मौत हुई है। यह आँकड़ा देशभर में सबसे ज़्यादा है। जबकि 2023 में देश भर में 182 बाघों की मौत हुई है जो 2022 की तुलना में 50% अधिक है। यह आँकड़े दिखाते हैं देश में बाघों की सुरक्षा पर सही तरीके से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। खुद को टाइगर स्टेट के रूप में प्रचारित करने वाले मध्य प्रदेश के ऊपर इन्हें बचाने का भार और भी ज़्यादा है। ऐसे में ज़रूरी है कि टाइगर रिजर्व के बहाने टूरिज्म और छवि चमकाने के बजाए जीवों के संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।
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