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भोपाल के बाघ मूवमेंट क्षेत्र पर कमेटी की रिपोर्ट सवालों के घेरे में

भोपाल के बाघ मूवमेंट क्षेत्र पर कमेटी की रिपोर्ट सवालों के घेरे में
भोपाल के बाघ मूवमेंट क्षेत्र पर कमेटी की रिपोर्ट सवालों के घेरे में

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भोपाल के चंदनपुरा में एक बार फिर बाघ का मूवमेंट दिखाई दिया है। स्थानीय लोगों के अनुसार शुक्रवार, 10 जनवरी को यहां की सड़क पर दो बाघ घूमते हुए दिखाई दिए। रिपोर्ट्स के मुताबिक बाघ ने यहां जानवर का शिकार भी किया। 

मगर इसी चंदनपुरा में पक्का निर्माण कार्य भी तेजी से बढ़ा है। रायसेन जिले के इटायाकलां से भोपाल के फंदाकलां को जोड़ने वाली 40.90 किमी लंबी सड़क भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरेगी। इसके अलावा यहां जागरण लेक सिटी यूनिवर्सिटी का कैम्पस भी मौजूद है। 

इन निर्माण कार्यों पर आपत्ति दर्ज करते हुए पर्यावरण कार्यकर्त्ता राशिद नूर खान ने एनजीटी में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि केरवा और कलियासूत डैम के बीच में स्थित चंदनपुरा वन असल में शहर के लिए एक ‘सेफ्टी वोल्व’ है जो पारिस्थितिकी संतुलन (ecological balance) बनाता है।

इस मामले में सुनवाई करते हुए एनजीटी ने 18 जुलाई 2024 को एक जॉइंट कमेटी बनाने का आदेश दिया था। 5 सदस्यों की इस कमिटी में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रतिनिधि समेत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और स्थानीय वन मंडलाधिकारी भी शामिल थे।

अक्टूबर 2024 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया कि चंदनपुरा बाघ मूवमेंट क्षेत्र तो है मगर यह संरक्षित वन नहीं, इसलिए यहां निर्माण कार्य किया जा सकता है। मगर याचिकाकर्ता का मानना है कि यह रिपोर्ट ग़लत है। 

ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए राशिद नूर कहते हैं कि कमिटी ने जांच के नाम पर सिर्फ लीपापोती की है, यह रिपोर्ट उसी का नतीजा है। वह कहते हैं कि याचिका में जिन-जिन स्थानों का ज़िक्र किया गया है कमिटी के सदस्यों ने उन स्थानों पर सही तरह से जाकर जांच नहीं की है।

दरअसल रिपोर्ट में कमिटी ने कहा है कि चंदनपुरा संरक्षित वन नहीं है। जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने 30 जुलाई 2021 को ही एक गैजेट नोटिफिकेशन निकाला था। इस नोटिफिकेशन में चंदनपुरा के 159.02 हेक्टेयर और छावनी वन क्षेत्र के 79.11 हेक्टेयर छोटे-बड़े झाड़ के जंगल को संरक्षित वन घोषित किया गया था। हालांकि कमिटी का तर्क है कि वन अधिनियम 1927 की धारा 29 के तहत इस इलाके को संरक्षित करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। 

याचिकाकर्ता की ओर से केस में पैरवी करने वाले यशदीप सिंह कहते हैं कि बीते एक-डेढ़ साल में भोपाल के इस क्षेत्र में लगभग 15 शावकों का जन्म हुआ है। पहले भोपाल में एक बड़ा टाइगर कॉरिडोर हुआ करता था मगर धीरे-धीरे यह सीमित हो गया। वह कहते हैं कि मानवीय गतिविधियों के चलते अब केवल चंदनपुरा वाले क्षेत्र तक ही बाघों का मूवमेंट बचा है।

हालांकि एनटीसीए के अनुसार पूरे देश में केवल 32 बड़े टाइगर कॉरिडोर हैं। इनमें से 7 कॉरिडोर्स मध्य प्रदेश से अपनी सीमा साझा करते हैं। 

मगर चंदनपुरा में हो रहे निर्माण कार्यों से बाघों पर लगातार खतरा बढ़ा है। यशदीप कहते हैं कि चंदनपुरा के सेंसिटिव ज़ोन में लगातार शोर करने वाली गतिविधियां की जा रही हैं ताकि बाघों को भगाया जा सके। इससे बाघों और इंसानों के बीच संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में यहां निर्माण कार्य होने का मतलब है भविष्य में भोपाल में भी बाघ-मानव संघर्ष को देखना जो अब तक यहां नहीं हुआ है। 

यशदीप कहते हैं कि चंदनपुरा का यह क्षेत्र भोपाल के दक्षिण-पश्चिम में है जहां से आने वाली हवा शहर के वातावरण को सुधारती है। ऐसे में अगर यहां निर्माण कारुय होगा तो उसका असर पूरे शहर की हवा पे पड़ेगा।

राशिद नूर इस रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए कहते हैं कि वह इसके खिलाफ एनजीटी में अपील करेंगे। उनके अनुसार नई कमिटी का गठन करके एक बार फिर मामले की जांच की जानी चाहिए। राशिद ने हमसे बताया कि वह ट्रिब्यूनल से मांग करेंगे कि नई कमिटी में राष्ट्रिय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के सदस्यों को भी शामिल किया जाए।

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