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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इतनी चर्चा क्यों है?

8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस पीठ ने "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार" को एक मौलिक अधिकार माना है और, अनुच्छेद 14 और 21 के दायरे का विस्तार किया है।

By Chandrapratap Tiwari
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8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) के तीन जजों की बेंच, जिसमे चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस पार्डीवाला, और जस्टिस संजय मिसरा थे, ने बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस पीठ ने "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार" को एक मौलिक अधिकार माना है और, अनुच्छेद 14 और 21 के दायरे का विस्तार किया है। आइये जानते हैं क्या है इस फैसले की पृष्टभूमि और क्या हैं इसके मायने। 

क्या है पूरा मामला 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, जो की IUCN की लिस्ट में क्रिटिकली इंडेंजर्ड की श्रेणी में आता है, इसपर दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी। गुजरात और राजस्थान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) पक्षी पाया जाता है। ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन से टकराकर ये पक्षी घायल हो जाते हैं। 

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Source X @MukeshNature196

पिछले कुछ समय से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की संख्या में काफी कमी आती दिख रही है जो कि  चिंता का विषय है। इसी से संबंधित एक याचिका गुजरात और राजस्थान की अदालत में दायर की गई थी। अप्रैल 2021 में गुजरात और राजस्थान की अदालतों ने अपने फैसले में, 80,000 वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन लगाने की इजाजत दे दी दी थी। 

बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट आया। सुप्रीम कोर्ट ने 19 मार्च को इस पर फैसला सुनाया, जिसका पूरा आदेश 8 अप्रैल को आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को खारिज करते हुए एक विशेषज्ञ कमेटी के गठन का आदेश दिया है। यह कमेटी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिए 'प्राथमिकता' माने जाने वाले क्षेत्रों में ओवरहेड और भूमिगत बिजली लाइनें स्थापित करने की गुंजाइश, व्यवहार्यता और सीमा की जांच करेगी। 

आपको बता दें कि यह मुद्दा मुख्य रूप से सौर पैनल परियोजनाओं में स्थापित ओवरहेड ट्रांसमिशन तारों के साथ टकराव के कारण हुई बस्टर्ड की मौतों का है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने 

इस आदेश में पीठ ने कहा कि

"अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की इस न्यायालय के निर्णयों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के कार्यों और प्रतिबद्धताओं और जलवायु परिवर्तन और इसके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में वैज्ञानिक सहमति के संदर्भ में सराहना की जानी चाहिए। इनसे यह बात सामने आती है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से मुक्त होना भी एक अधिकार है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस अधिकार को प्रभावी बनाते समय, अदालतों को प्रभावित समुदायों के अन्य अधिकारों जैसे विस्थापन के खिलाफ अधिकार और संबद्ध अधिकारों के प्रति सचेत रहना चाहिए।"

क्या है अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 

संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि कानून समक्ष सब समान हैं, और सबको कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा। वहीं अनुच्छेद 21 व्यक्ति के गरिमामय जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता है। समय के साथ के देश की सर्वोच्च न्यायलय ने अनुच्छेद 21 के दायरे में लगातार विस्तार किया है, मसलन अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार और अन्य कई अधिकार अनुच्छेद 21 में निहित है।        

इससे पहले उच्चतम न्यायलय ने 1996 के एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ वाद में अनुच्छेद 21 को आधार बना कर स्पष्ट किया कि, वायु, जल, और मिट्टी बुनियादी पर्यावरणीय तत्व है। इनमे खराबी से मानव जीवन प्रभावित हो सकता है, अतः इन्हे प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए। 

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला पर्यावरण की दृष्टि में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। लेकिन इस फैसले की मदद से पर्यवरण के लिए चल रहे संघर्ष कितने आसान होते हैं ये वक्त के साथ ही पता चलेगा। 

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