Powered by

Home Hindi

प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने वाले क्लाइमेट वॉरियर कानजी मेवाड़ा

राजस्थान के कानजी मेवाड़ा प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए कार्य कर रहे हैं। वह प्लास्टिक संग्रहण केंद्र का संचालन करके इस विषय में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। ग्राउंड रिपोर्ट ने उनसे बात की और जाना उनके सफर और चुनौतियों के बारे में।

By Chandrapratap Tiwari
New Update
Plastic Pollution: से अकेले लड़ते कानजी मेवाड़ा

Plastic Pollution: प्लास्टिक प्रदूषण आज एक वैश्विक समस्या बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार हर साल लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें 36 प्रतिशत सिंगल-यूज्ड प्लास्टिक है, जिसका लगभग 85 प्रतिशत लैंडफिल या अनियमित कचरे का रूप ले लेता है। इस दिशा में राजस्थान के पाली जिले के छोटे से गांव बीसलपुर के एक चायवाले कानजी राम मेवाड़ा लगातार काम कर रहे हैं। उनका एक ही लक्ष्य है, अपने क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त रखना। हमने बात की कानजी से, और जाना कि कैसे वो इसके लिए काम करते हैं।

पिछले 4 सालों से प्लास्टिक को लेकर काम कर रहे हैं कानजी

कानजी कहते हैं कि, प्लास्टिक धरती का दुश्मन है। इन छोटे प्लास्टिक पाउच को न तो कोई कचरा बीनने वाला ले जाता है, न ही और कोई इस बात को गंभीरता से लेता है। इस प्लास्टिक को खा कर जानवरों की मृत्यु होती है, और ये प्लास्टिक बारिश के पानी के साथ बह कर जवाई डैम में जाता है, जिससे वहां की जलीय पारिस्थितिकी भी प्रभावित होती है।

publive-image

इस प्लास्टिक प्रॉब्लम को कानजी पिछले 3-4 साल से सुलझा रहे हैं। कांजी घर-घर जाकर लोगों से कहते थे कि प्लास्टिक फेंकने के बजाय उन्हें दे दें, और वे 1 किलो प्लास्टिक के बदले प्लास्टिक 1 किलो चीनी देते थे। अब उनके गांव के लोग खुद-ब-खुद अपना प्लास्टिक लेकर कानजी के पास आते हैं, और कानजी एक किलो प्लास्टिक का 20 रुपया देते हैं।

स्कूली बच्चों को पर्यावरण के प्रति करते हैं जागरुक

कानजी ने प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने एक बड़ा ही रोचक तरीका निकाला है। कानजी अपने आस-पास के स्कूलों में जाकर कर बच्चों से अपने घर का प्लास्टिक लाने को कहते हैं, और इसके बदले उन बच्चों को ज्योमेट्री बॉक्स, स्टेशनरी, आदि इनाम में देते हैं। अब ये आलम है की गांव वाले और बच्चे खुद अपना प्लास्टिक लेकर कानजी के पास आते हैं। इसके अलावा कानजी इलाके के 10-12 गांवों में हर थोड़े दिन में जाकर प्लास्टिक इकठ्ठा करते हैं।

कानजी बताते हैं कि उनके पास महीने का लगभग 250 किलो प्लास्टिक आता है। मुंबई की संस्था DJED फाउंडेशन और उनके मुखिया दिलीप जैन, इस प्लास्टिक को रीसायकल करने में कानजी की मदद करते हैं।

प्लास्टिक को रिसाइकल कर बिजली बनाना चाहते हैं कानजी

कानजी ने बताया कि, वो कचरे से बिजली बनाने का एक प्लांट खोलना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रशासन को अप्रोच भी किया है, लेकिन उनकी फाइल नौकरशाही के भंवर फँस कर रह गई है। प्रशासन की ओर से कांजी को अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।

कानजी का अगला कदम कचरा पात्र बनाने का है। इसे वो कुछ जगह पर लगाएंगे और लोगों से आग्रह करेंगे की वे इस पात्र में प्लास्टिक डाल के जाएं। इसके अलावा कानजी का प्लास्टिक को रीसायकल कर के स्कूलों, और सार्वजानिक स्थानों के लिए बेंच बनाना चाहते हैं।

75% सफल है मुहिम

कानजी बताते है कि अलवर के राजेंद्र सिंह, जो कि वाटर मैन के नाम से मशहूर हैं, कानजी के प्रेरणा स्त्रोत हैं। कानजी अपनी 4 वर्षों की यात्रा के बाद अपनी मुहिम को 75 प्रतिशत सफल मानते हैं। वे कहते हैं की उनके इलाके छोटे बच्चे और महिलाएं अब प्लास्टिक को लेकर जागरुक हो रहें हैं जो कि एक सकारात्मक संकेत है।

publive-image

कानजी से जब पूंछा गया की उन्हें सरकार से कोई प्रोत्साहन मिला है क्या? इस पर कांजी का जवाब था कि उन्हें सरकार से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है। मीडिया संस्थान TV9 भारतवर्ष ने आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत, ग्रीन वॉरीयर केटेगरी में कानजी को नॉमिनेट किया था। कानजी ने अंत में कहा,

"जिस तरह दिल्ली-मुंबई में कचरे के पहाड़ बन गए हैं, मैं अपने क्षेत्र ऐसी स्थिति नहीं आने देना चाहता हूं, और इसी लक्ष्य को लेकर लगातार प्रयासरत हूं"

अगर भारत सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो अकेले साल 2020-21 में 4,126,997 टन प्लास्टिक कचरा निकला था, और राजस्थान में इसी साल 66324.57 टन प्लास्टिक कचरा निकला था। यह हमारे लिए एक चेतावनी है। कानजी का प्रयास एक कोऑपरेटिव मॉडल का रेफ्रेंस हो सकता है, जिसमे ग्रामीण इकाइयां मिल कर प्लास्टिक को रिसाइकल करें, और हमारे वातावरण को दूषित होने से बचा सकें।

यह भी पढ़ें

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी