सरदार सरोवर बाँध परियोजना के चलते डूब का शिकार हुए बहुत से ग्रामीणों को अब तक मुआवज़ा नहीं मिला है. इन्हें उचित मुआवज़ा दिलाने की मांग को लेकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेता मेधा पाटकर अनशन पर बैठ गई हैं. वह धार ज़िले के चिखल्दा गाँव में यह अनशन कर रही हैं. बीते 15 जून से जारी इस अनशन में उनके साथ डूब प्रभावित परिवार भी शामिल हैं. हालाँकि लगभग एक हफ़्ते से जारी अनशन के चलते मेधा पाटकर की हालत बिगड़ रही है. इस पर देश के अलग-अलग संगठनों ने चिंता ज़ाहिर करते हुए सरकारी हस्तक्षेप की माँग की है.
सितम्बर में बैकवाटर से डूबे थे गाँव
गौरतलब है कि बीते साल मध्यप्रदेश के 193 गाँव सरदार सरोवर के बैकवाटर से डूब गए थे. दरअसल 16 सितम्बर 2023 को इंदिरा सागर बाँध और ओम्कारेश्वर बाँध से 12.90 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था. मगर नर्मदा घाटी के निचले हिस्से में स्थित सरदार सरोवर बाँध से पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा गया था. जिससे मध्यप्रदेश के बड़वानी, खरगोन, धार, खण्डवा और अलीराजपुर के यह गाँव डूब गए थे. उस दौरान हमने इस पर विस्तार से ख़बर की थी जिसे यहाँ पढ़ सकते हैं.
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्त्ता मुकेश भगोरिया कहते हैं,
“सरकार ने 2008 के बाद 16 हज़ार परिवारों को डूब से बाहर कर दिया था. जबकि बीते साल इन परिवारों के अलावा कई और परिवार भी डूब का शिकार हो गए थे.”
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ताओं द्वारा सितम्बर, 2023 में ही मुआवज़े की मांग की गई थी. इस रिपोर्टर द्वारा बाढ़ को कवर करते हुए जब स्थानीय अधिकारियों से बात की गई थी तो उन्होंने सर्वे के जारी रहने की बात कही थी. हालाँकि आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का कहना था कि सरकार सर्वे में गाँवों को अतिवृष्टि से प्रभावित बता रही थी जबकि वह लोग सरदार सरोवर से प्रभावित माने जाने चाहिए.
हालाँकि किसी भी सूरत में यह ग्रामीण मुआवज़े के हक़दार थे. मगर 9 महीने से भी ज़्यादा समय गुज़र जाने के बाद भी बाढ़ का मुआवज़ा प्रभावितों को नहीं मिला है.
सरकारी लापरवाही के चलते हुए बाढ़ का शिकार
बीते साल जो गाँव बाढ़ का शिकार हुए थे वहां के लोगों ने इसके लिए सरकार की लापरवाही को ज़िम्मेदार ठहराया था. उनका कहना था कि बैकवाटर के आँकड़े में जो गड़बड़ी की गई है उसके कारण वह बाढ़ का शिकार हुए हैं. हमने इसका विस्तार से विश्लेषण किया था जिसे यहाँ पढ़ सकते हैं.
बड़वानी ज़िले का पिछोड़ी गाँव 2019 से ही डूब के चलते टापू बन जाता था. मगर 2023 में यह पूरा गाँव ही जलमग्न हो गया. आदर्श पुनर्वास नीति के अनुसार इस गाँव को एक जगह बसाया जाना था. मगर अब तक वह पुनर्वसन का इंतज़ार कर रही हैं. वह कहती हैं,
“अगर आगे फिर से ये गाँव डूबा तो हमें फिर घर छोड़कर दूसरी जगह भागना पड़ेगा. एक बार घर बनाने में किसी भी परिवार की पूरी बचत खप जाती है. हमको तो हर साल बनाना पड़ेगा.”
ऊँचा होता सरदार सरोवर बाँध
अनशन पर बैठी हुई मेधा पाटकर का कहना है कि जब तक प्रभावितों को उचित मुआवज़ा नहीं मिला जाता और बाँध से सम्बंधित सभी परेशानियों का निराकरण नहीं हो जाता तब तक सरदार सरोवर जल स्तर 122 मी. ही रखा जाना चाहिए. जबकि अभी बाँध का पूर्ण जलाशय स्तर (FRL) 138.68 मी. है. वहीँ इसका अधिकतम जल स्तर 140.21 मी. है.
साल 1946 में पहली बार सरदार सरोवर बाँध प्रोजेक्ट को प्रस्तावित किया गया था. बाद में नर्मदा नदी के पानी को लेकर उपजे विवाद के चलते नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल बना. 1969 में बने नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल (NWDT) ने बाँध की ऊँचाई (FRL) 138.68 मीटर तक तय कर दी. इसके बाद साल 2006 तक अलग-अलग समय पर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने की इज़ाजत नर्मदा कंट्रोल अथोरिटी (NCA) द्वारा मिलती गई. नतीजतन साल 2006 में इसकी ऊँचाई 121.92 मीटर हो गई.
पाटकर के अनुसार इस बढ़ते जलस्तर के कारण प्रभावित लोगों की संख्या भी बढ़ी है. बीते साल की बाढ़ इसका प्रमुख उदाहरण है. ऐसे में सरकार को पहले 2023 की बाढ़ से प्रभावित लोगों को मुआवज़ा देना चाहिए. उसके साथ ही अन्य प्रभावित लोगों को भी आदर्श पुनर्वास नीति के अनुसार मुआवज़ा देना चाहिए.
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