...
Skip to content

जल गंगा संवर्धन अभियान: समसगढ़ की बावड़ियों की कब सुध लेगा प्रशासन?

जल गंगा संवर्धन अभियान: समसगढ़ की बावड़ियों की कब सुध लेगा प्रशासन?
जल गंगा संवर्धन अभियान: समसगढ़ की बावड़ियों की कब सुध लेगा प्रशासन?

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

मध्य प्रदेश सरकार इन दिनों एक इवेंट में व्यस्त है. ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ (jal ganga samvardhan abhiyan) के तहत प्रदेश की जल संरचनाओं की मरम्मत की जानी है. 5 जून से शुरू हुआ यह अभियान 16 जून तक चलेगा. इसका उद्देश्य मानसून से पहले प्रदेश की जल्र संरचनाओं की मरम्मत करना है. रायसेन ज़िले के झिरी बहेड़ा स्थित बेतवा के उद्गम स्थल से इस अभियान की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा,

“इस अभियान के तहत 905 कामों को पूर्ण किया जाना है. इनके तहत नदियों के साथ ही कुँए, बावड़ियों और तालाबों की मरम्मत की जाएगी.”

मुख्यमंत्री ने कहा कि बारिश से पहले यह कार्य पूर्ण किए जाएँगे. अपने जबलपुर के दौरे में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह को बधाई दी. यह बधाई राकेश सिंह द्वारा जबलपुर में 2 बावड़ियों की मरम्मत करवाने के लिए दी गई. मगर भोपाल से मात्र 22 किमी दूर स्थित समसगढ़ में प्राचीन बावड़ियों की देख-रेख करने वाला कोई भी नहीं है. 

stepwell ganga jal samvardhan abhiyan
समसगढ़ की बावड़ियों का हाल यहाँ लगे बोर्ड की हालत को देखकर समझा जा सकता है

52 बावड़ियों में से मात्र 4 बावड़ियाँ अस्तित्व में 

समसगढ़ (Samasgarh Village) के रहने वाले प्रकाश मालवीय (54) ग्राउंड रिपोर्ट को बताते हैं कि यहाँ कभी 52 बावड़ियाँ हुआ करती थी. मगर इन प्राचीन बावड़ियों (stepwells) को कृषि भूमि के विस्तार के लिए बंद कर दिया गया. प्रकाश कहते हैं,

“बीते कुछ सालों में भोपाल के रहने वाले लोगों ने यहाँ ज़मीन खरीदनी शुरू की. उन्होंने खेती के लिए यहाँ मौजूद बावड़ियों को बंद कर दिया.” 

मगर बची हुई बावड़ियों का हाल भी बेहाल ही है. गाँव के अन्दर दाखिल होते ही प्राचीन शिव मंदिर का एक बोर्ड दिखाई देता है. इस बोर्ड का पीछा करते हुए हम जंगल की ओर जाते हैं. यहाँ टूटा हुआ गेट और पुरातत्व विभाग का एक घिस चुका बोर्ड हमारा स्वागत करता है. इसके अन्दर जाने पर प्राचीन मंदिर के टूटे हुए अवशेष पूरी जगह बिखरे हुए हैं. यहीं 2 बावड़ियाँ भी स्थित हैं मगर यह लगभग मृत हो चुकी हैं. यहाँ के एक अन्य किसान कहते हैं,

“कोई देख-रेख न होने के चलते बावड़ियों के पत्थर चोरी हुए हैं जिससे बावड़ियाँ जर्जर होकर मिट्टी से भर गईं.”

Stepwells in bhopal
स्थानीय लोग बताते हैं कि बावड़ियों के पत्थर चोरी हो जाने के कारण वह और जर्जर हो गई हैं

क्या प्रशासन जानता है बावड़ियों का पुनरुद्धार कैसे करें?

जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत प्रशासन और जन सहयोग से जल संरचनाओं की मरम्मत की जा रही है. मगर यहाँ यह समझना ज़रूरी है कि बावड़ियों का पुनरुद्धार तालाबों के पुनरुद्धार से अलग है. मप्र वेटलैंड अथोरिटी के पूर्व सदस्य डॉ. प्रदीप नन्दी कहते हैं,

“तालाबों के उलट बावड़ियाँ स्थापत्य कला से संपन्न होती हैं. इनकी स्थापत्य संरचना ही इसमें पानी को रीचार्ज करने में मदद करती है. यानि तालाब का पुनरुद्धार आम लोगों के सहयोग से हो सकता है मगर बावड़ियों का नहीं.”

डॉ. नन्दी कहते हैं कि स्थानीय निकायों में जलाशयों से सम्बंधित विशेषज्ञों की अनुपस्थिति के चलते हर साल अधिकतर जलाशयों की मरम्मत दुबारा करनी पड़ती है. भोपाल नगर निगम से सम्बंधित एक सूत्र भी हमें बताते हैं कि तालाबों और बावड़ियों के अलग-अलग पुनुरुद्धार के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी निगम के पास नहीं है. 

rural stepwell
अजय के खेत में स्थित बावड़ी में गर्मी के दिनों में भी पानी नहीं सूखता

किसान को मिल रहा बावड़ी का लाभ

समसगढ़ के 24 वर्षीय किसान अजय मालवीय हमें अपने खेत में स्थित बावड़ी दिखाते हैं. वह बताते हैं कि उनके पिता द्वारा लगभग 16 साल पहले इसका पुनरुद्धार करवाया गया था. अब गर्मी में भी यह बावड़ी भरी रहती है. 

“हमने 16 साल पहले पानी के लिए खुदाई करवाना शुरू किया. तब इस बावड़ी के अवशेष मिले. तब हमने इसे ही अच्छे से बनवाने का फैसला लिया जो आज भी हमारे काम आ रहा है.”

समसगढ़ में कृषि के लिए सभी लोग भूजल पर निर्भर हैं. मगर यहाँ 700 फ़ीट खोदाई करने पर ही पानी निकलता है. साथ ही इसका एक आर्थिक पक्ष भी है. खुद अजय हमें बताते हैं कि यहाँ बोरवेल खोदवाने में 2 लाख तक का खर्च आता है. चूँकि यहाँ ज़्यादातर छोटे किसान हैं ऐसे में वह बोर करवाने के लिए क़र्ज़ लेते हैं जो उन पर अतिरिक्त दबाव डालता है. 

stepwells bhopal
अजय बावड़ी के पानी का इस्तेमाल सिंचाई और पशुओं के लिए करते हैं 

अजय अपने खेत में सिंचाई और पशुओं के लिए बावड़ी के पानी का ही इस्तेमाल करते हैं. हालाँकि वह पीने के पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं. मगर बावड़ी होने के चलते उनका बोरवेल गाँव के बाकी बोरवेल की तरह गर्मियों में भी सूखता नहीं हैं. मगर प्रकाश मालवीय ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहते हैं,

“यहां का हर किसान बावड़ी की मरम्मत नहीं करवा सकता. एक बावड़ी में 2 से 3 लाख का खर्च आता है. ये तो सरकार को सोचना था कि इसे कैसे बचाएँ.”

भोपाल के पर्यावरणविद रशीद नूर खान कहते हैं कि सरकार को दिखावे के इतर इन बावड़ियों को बचाने के प्रयास करने चाहिए. वह गंगा जल संवर्धन अभियान पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं

“यह अभियान मीडिया इवेंट की तरह दिखाई दे रहा है. नई योजना या अभियान पर पैसा लगाने से बेहतर था कि पुरानी योजनाओं को ही सख्ती से लागू किया जाए. यह बावड़ियाँ ऐतिहासिक महत्व की हैं मगर इनकी ओर न पुरातत्व विभाग का ध्यान है न जल कार्य विभाग का.”      

अजय मालवीय का उदाहरण यह स्पष्ट करता है कि समसगढ़ में बावड़ियों को संरक्षित करने से यहाँ के आम लोगों को सीधा आर्थिक लाभ होगा. इससे न सिर्फ ऐतिहासिक संरचनाएं सुरक्षित होंगी बल्कि भूजल स्तर भी बढ़ेगा. मगर तमाम इवेंट प्रबंधन और प्रचार के बीच गंगा जल संवर्धन अभियान यहाँ पहुँचता हुआ अब तक नहीं दिखता.

यह भी पढ़ें

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी

Author

  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins