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जल गंगा संवर्धन अभियान के बीच अधर में लटकी हुई आरआरआर योजना

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 5 जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर बेतवा नदी के उद्गम स्थल से ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ की शुरुआत की. अभियान के तहत प्रदेश की जल संरचनाओं की मरम्मत की जानी है. मगर यहाँ रुक कर यह सवाल करना होगा कि आरआरआर योजना का क्या हुआ?

By Shishir Agrawal
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jal ganga samvardhan abhiyan of MP

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल अभियान के तहत एक कार्यक्रम के दौरान, फ़ोटो - जनसंपर्क

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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (cm mohan yadav) ने 5 जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर बेतवा नदी के उद्गम स्थल से ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ की शुरुआत की. अगले ही दिन भोपाल शहर इसके पोस्टरों से पाट दिया गया. इस अभियान (Jal Ganga Samvardhan) के तहत प्रदेश की जल संरचनाओं की मरम्मत की जानी है. इसमें प्रशासनिक प्रतिबद्धता के साथ ही जन सहयोग भी लिया जाना है. मुख्यमंत्री के अनुसार 3 हज़ार 90 करोड़ रूपए की लागत से इस अभियान के तहत प्रदेश भर में 990 काम और आयोजन किए जाने हैं. इसमें जलाशयों की मरम्मत के अतिरिक्त जल संवर्धन से सम्बंधित कार्यक्रम भी शामिल हैं. मगर सवाल है कि इन जलाशयों के पुनरुद्धार के लिए बनाई गई पूर्व की योजना का क्या हुआ?

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rural water distress
केंद्र सरकार की आरआरआर योजना भूजल को रिचार्ज करने और सिंचाई का रकबा बढ़ाने पर केन्द्रित है

आरआरआर योजना: निल बटे सन्नाटा    

चौंकिए मत हम किसी फिल्म का नाम नहीं लिख रहे हैं. यह केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत संचालित योजना है. मरम्मत, नवीनीकरण और पुनरुद्धार (Repair, Renovation and Restoration) नामक इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों की जल संरचनाओं को सुधारा जाना था. ऐसा कृषि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए किया जाना था. साथ ही पुरानी जल संरचनाओं की मरम्मत, भूजल रीचार्ज और पर्यावरणीय लिहाज़ से पानी के बेहतर उपयोग को बढ़ावा देना जैसे उद्देश्य इस योजना में शामिल थे. 

यह योजना पहली बार साल 2005 में पाइलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई थी. उस दौरान इसके लिए 300 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे. योजना की सफ़लता के चलते बाद में इसे 2016 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत आने वाले घटक ‘हर खेत को पानी’ के तहत वापस से शुरू किया गया.

tube well in india
योजना के तहत 0.9 लाख हेक्टेयर भूमि को लघु सिंचाई स्त्रोतों से सिंचित करने लायक था

पाँचवीं लघु सिंचाई गणना 2013-14 के अनुसार देश भर में 5.16 लाख लघु सिंचाई स्त्रोत हैं. यहाँ लघु सिंचाई स्त्रोत का अर्थ छोटे ट्यूब वेल, बावड़ी और लिफ्ट सिंचाई योजना के तहत बिछाई गई पाइपलाइन भी शामिल हैं . मगर कुल लघु सिंचाई स्त्रोतों में से 53 हज़ार स्त्रोत काम में नहीं आते. इसके चलते देश के कुल खेतिहर क्षेत्रफल का एक हिस्सा सूखा (water scare) रह जाता है. इस गैप को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा इस योजना के तहत 2021 से 2026 के बीच 0.9 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य रखा गया. 

कितना हुआ कायाकल्प?               

अप्रैल 2022 में राज्यसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार 2016 से 2021 तक देशभर के 10 राज्यों में कुल 2 हज़ार 169 जलाशयों का ही चयन किया गया. ध्यान दीजिये कि खुद सरकार के आंकड़ों के अनुसार देशभर में 53 हज़ार जलाशयों को मरम्मत की ज़रूरत थी. खैर, 2 हज़ार 169 में से भी केवल 1 हज़ार 132 जलाशयों का ही आरआरआर यानि मरम्मत, नवीनीकृत और पुनरुद्धार किया गया. अब आधिकारिक आँकड़ों को ही सच मान लें तो देशभर के 51 हज़ार 868 जलाशय अब भी आरआरआर की राह ताक रहे हैं.

pond in jhabua
योजना से सम्बंधित आँकड़ों से स्पष्ट है कि प्रदेश की उपेक्षा की गई

मध्य प्रदेश का हाल 

सरकारी आँकड़ों को देखने पर लगता है कि मध्य प्रदेश में जलाशयों (Madhya Pradesh Water Bodies) का हाल बेहद अच्छा है. तभी 2016 से 2021 तक देश भर की 53 हज़ार में से प्रदेश की केवल 125 जल संरचनाओं को ही सुधार योग्य माना गया. संभवतः यह कार्य इतना कठिन था कि 125 से भी केवल 42 जलाशय ही सुधारे जा सके. 

केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार इस योजना के तहत 2016 से 2021 के बीच 1,863.28 करोड़ रूपए खर्च होने थे. इसमें केंद्र सरकार की ओर से कुल 1066.77 करोड़ रूपए दिए जाने थे. मगर केंद्र सरकार द्वारा मात्र 205.02 करोड़ रूपए ही खेतों तक पानी पहुँचने को सुनिश्चित करने के लिए दिए गए. वहीँ मध्यप्रदेश को अपनी चयनित जल संरचनाओं को सही करने के लिए 183.24 करोड़ रूपए चाहिए थे. केंद्र से इस बावत 93.01 करोड़ रूपए आपेक्षित थे. मगर केंद्र ने इसके लिए प्रदेश को एक रुपया भी नहीं दिया.

 

well in jhabua
प्रदेश के ग्रामीण हिस्से में अब भी तालाब और कुँए उपेक्षा का शिकार हैं

प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 जून तक जल गंगा संवर्धन अभियान में 99 हज़ार लोगों के सहयोग से नदी-तालाबों के घाट से लेकर कुँए-बावड़ियों तक की सफाई की गई. हालाँकि कितने कुओं, बावड़ियों की सफाई की गई इसका कोई भी आँकड़ा जारी नहीं किया गया है. हालाँकि इनसे 50 हज़ार घन मीटर गाद निकालने का आँकड़ा ज़रूर मौजूद है. 

प्रदेश सरकार फिलहाल ग्यारह दिवसीय ‘इवेंट’ में व्यस्त है. मगर यहाँ रुक कर यह सवाल करना होगा कि आरआरआर योजना का क्या हुआ? बीते दिनों चुनाव को कवर करते हुए हमने भोपाल से बामुश्किल 20 किमी दूर ही ऐसे गाँव देखे हैं जहाँ खेती पूर्णतः भूजल से हो रही है. मगर गर्मियों में सूख जाने वाले ट्यूबवेल और बेहाल तालाब इस बात के गवाह हैं कि आरआरआर योजना के नाम पर प्रदेश के लिए ऊँट के मुंह में जीरे जितना काम ही किया गया है.

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