मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव (cm mohan yadav) ने 5 जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर बेतवा नदी के उद्गम स्थल से ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ की शुरुआत की. अगले ही दिन भोपाल शहर इसके पोस्टरों से पाट दिया गया. इस अभियान (Jal Ganga Samvardhan) के तहत प्रदेश की जल संरचनाओं की मरम्मत की जानी है. इसमें प्रशासनिक प्रतिबद्धता के साथ ही जन सहयोग भी लिया जाना है. मुख्यमंत्री के अनुसार 3 हज़ार 90 करोड़ रूपए की लागत से इस अभियान के तहत प्रदेश भर में 990 काम और आयोजन किए जाने हैं. इसमें जलाशयों की मरम्मत के अतिरिक्त जल संवर्धन से सम्बंधित कार्यक्रम भी शामिल हैं. मगर सवाल है कि इन जलाशयों के पुनरुद्धार के लिए बनाई गई पूर्व की योजना का क्या हुआ?
आरआरआर योजना: निल बटे सन्नाटा
चौंकिए मत हम किसी फिल्म का नाम नहीं लिख रहे हैं. यह केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत संचालित योजना है. मरम्मत, नवीनीकरण और पुनरुद्धार (Repair, Renovation and Restoration) नामक इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों की जल संरचनाओं को सुधारा जाना था. ऐसा कृषि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए किया जाना था. साथ ही पुरानी जल संरचनाओं की मरम्मत, भूजल रीचार्ज और पर्यावरणीय लिहाज़ से पानी के बेहतर उपयोग को बढ़ावा देना जैसे उद्देश्य इस योजना में शामिल थे.
यह योजना पहली बार साल 2005 में पाइलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई थी. उस दौरान इसके लिए 300 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे. योजना की सफ़लता के चलते बाद में इसे 2016 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत आने वाले घटक ‘हर खेत को पानी’ के तहत वापस से शुरू किया गया.
पाँचवीं लघु सिंचाई गणना 2013-14 के अनुसार देश भर में 5.16 लाख लघु सिंचाई स्त्रोत हैं. यहाँ लघु सिंचाई स्त्रोत का अर्थ छोटे ट्यूब वेल, बावड़ी और लिफ्ट सिंचाई योजना के तहत बिछाई गई पाइपलाइन भी शामिल हैं . मगर कुल लघु सिंचाई स्त्रोतों में से 53 हज़ार स्त्रोत काम में नहीं आते. इसके चलते देश के कुल खेतिहर क्षेत्रफल का एक हिस्सा सूखा (water scare) रह जाता है. इस गैप को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा इस योजना के तहत 2021 से 2026 के बीच 0.9 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य रखा गया.
कितना हुआ कायाकल्प?
अप्रैल 2022 में राज्यसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार 2016 से 2021 तक देशभर के 10 राज्यों में कुल 2 हज़ार 169 जलाशयों का ही चयन किया गया. ध्यान दीजिये कि खुद सरकार के आंकड़ों के अनुसार देशभर में 53 हज़ार जलाशयों को मरम्मत की ज़रूरत थी. खैर, 2 हज़ार 169 में से भी केवल 1 हज़ार 132 जलाशयों का ही आरआरआर यानि मरम्मत, नवीनीकृत और पुनरुद्धार किया गया. अब आधिकारिक आँकड़ों को ही सच मान लें तो देशभर के 51 हज़ार 868 जलाशय अब भी आरआरआर की राह ताक रहे हैं.
मध्य प्रदेश का हाल
सरकारी आँकड़ों को देखने पर लगता है कि मध्य प्रदेश में जलाशयों (Madhya Pradesh Water Bodies) का हाल बेहद अच्छा है. तभी 2016 से 2021 तक देश भर की 53 हज़ार में से प्रदेश की केवल 125 जल संरचनाओं को ही सुधार योग्य माना गया. संभवतः यह कार्य इतना कठिन था कि 125 से भी केवल 42 जलाशय ही सुधारे जा सके.
केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार इस योजना के तहत 2016 से 2021 के बीच 1,863.28 करोड़ रूपए खर्च होने थे. इसमें केंद्र सरकार की ओर से कुल 1066.77 करोड़ रूपए दिए जाने थे. मगर केंद्र सरकार द्वारा मात्र 205.02 करोड़ रूपए ही खेतों तक पानी पहुँचने को सुनिश्चित करने के लिए दिए गए. वहीँ मध्यप्रदेश को अपनी चयनित जल संरचनाओं को सही करने के लिए 183.24 करोड़ रूपए चाहिए थे. केंद्र से इस बावत 93.01 करोड़ रूपए आपेक्षित थे. मगर केंद्र ने इसके लिए प्रदेश को एक रुपया भी नहीं दिया.
प्राप्त जानकारी के अनुसार 10 जून तक जल गंगा संवर्धन अभियान में 99 हज़ार लोगों के सहयोग से नदी-तालाबों के घाट से लेकर कुँए-बावड़ियों तक की सफाई की गई. हालाँकि कितने कुओं, बावड़ियों की सफाई की गई इसका कोई भी आँकड़ा जारी नहीं किया गया है. हालाँकि इनसे 50 हज़ार घन मीटर गाद निकालने का आँकड़ा ज़रूर मौजूद है.
प्रदेश सरकार फिलहाल ग्यारह दिवसीय ‘इवेंट’ में व्यस्त है. मगर यहाँ रुक कर यह सवाल करना होगा कि आरआरआर योजना का क्या हुआ? बीते दिनों चुनाव को कवर करते हुए हमने भोपाल से बामुश्किल 20 किमी दूर ही ऐसे गाँव देखे हैं जहाँ खेती पूर्णतः भूजल से हो रही है. मगर गर्मियों में सूख जाने वाले ट्यूबवेल और बेहाल तालाब इस बात के गवाह हैं कि आरआरआर योजना के नाम पर प्रदेश के लिए ऊँट के मुंह में जीरे जितना काम ही किया गया है.
यह भी पढ़ें
- Bhopal Tree Cutting: माननीयों के आवास के लिए कटेंगे 29 हज़ार पेड़
- सीहोर के चंदेरी गांव का जल संकट "जहां पानी नहीं वहां रहकर क्या करेंगे?"
- एक हैंडपंप पर निर्भर टीकमगढ़ का मछौरा गांव, महिलाएं-बच्चे भर रहे पानी
- अमृतकाल में 'सरोवर' की राह ताकते मध्य प्रदेश के गाँव
पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जटिल शब्दावली सरल भाषा में समझने के लिए पढ़िए हमारी क्लाईमेट ग्लॉसरी