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भोपाल देश का दूसरा सबसे साफ़ शहर लेकिन सुधार की गुंजाईश बाकी

भोपाल को विशेष रूप से ओडीएफ++ (खुले में शौच से मुक्त) और वाटर+ श्रेणी में पूरे 1,200 अंक मिले हैं। कचरा मुक्त शहर रेटिंग में भी पूरे 1,300 अंक हासिल किए गए हैं।

ByChandrapratap Tiwari
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Sanitation Workers in Bhopal

भोपाल के ईदगाह हिल्स स्थित एमआरएफ सेंटर पर सफाई कर्मचारी

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भोपाल ने स्वच्छता और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में अपनी खोई हुई रैंकिंग हासिल करते हुए स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में देशभर में दूसरा स्थान हासिल किया है। पहले स्थान पर अहमदाबाद रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किये हैं। इंदौर की ओर से कैलाश विजयवर्गीय और भोपाल की ओर से भोपाल की महापौर मालती राय पुरस्कार लेने गईं थी। 

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इस वर्ष के सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इंदौर के स्वच्छता में सर्वाधिक, 12080 अंक आए हैं। इंदौर लगातार 8वी बार क्लीनेस्ट सिटी बनकर नई सुपर लीग में भी टॉप पर रहा। 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में भोपाल दूसरे स्थान पर है। मध्य प्रदेश से उज्जैन और सीहोर जिले के बुदनी को स्वच्छता लीग में पुरस्कार मिला है। इसके अलावा 50 हजार से 3 लाख की आबादी वाले शहरों में देवास का प्रथम स्थान रहा है। दूसरी ओर प्रदेश के शाहगंज, जबलपुर और ग्वालियर भी स्वच्छता में उत्कृष्ट प्रदर्शन की सूची में शामिल हैं। 

अंकों की विस्तृत जानकारी

स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में भोपाल का प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है। भोपाल ने कुल 12,500 अंकों में से 12,067 अंक अर्जित किए हैं। जिसमें मुख्य स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए निर्धारित 10,000 अंकों में से 9,567 अंक और सर्टिफिकेशन के लिए निर्धारित 2,500 अंकों में से पूरे अंक प्राप्त किए हैं। इस प्रकार भोपाल ने 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में दूसरा स्थान हासिल किया है और मध्य प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

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भोपाल को विशेष रूप से ओडीएफ++ (खुले में शौच से मुक्त) और वाटर+ श्रेणी में पूरे 1,200 अंक मिले हैं। कचरा मुक्त शहर रेटिंग में भी पूरे 1,300 अंक हासिल किए गए हैं। इन अंकों के साथ शहर ने सुपर स्वच्छ लीग में अपनी जगह बनाई है और 7 स्टार रैंकिंग भी प्राप्त की है। साथ ही भोपाल ने देश की सबसे स्वच्छ राजधानी का खिताब भी बरकरार रखा है।

पिछले प्रदर्शनों से तुलना

Bhopal Lake City Upper Lake
भोपाल का बड़ा तालाब
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भोपाल के स्वच्छता सर्वेक्षण का सफर बहुत ही दिलचस्प रहा है। 2017 और 2018 में लगातार दो साल शहर ने देश में दूसरी रैंक हासिल की थी। 2019 में भोपाल का प्रदर्शन खराब हुआ और वह 19वें स्थान पर पहुंच गया।

2020 में वापसी करते हुए भोपाल ने 12 पायदान ऊपर चढ़कर सातवीं रैंक हासिल की। 2021 के सर्वेक्षण में भी भोपाल ने सातवां स्थान बनाए रखा। 2022 के सर्वेक्षण में भोपाल की स्थिति में सुधार हुआ और वह छठवें स्थान पर आ गया। उस समय भोपाल को 5 स्टार मिले थे। 2023 के सर्वेक्षण में पांचवीं रैंकिंग रही थी।

2024 के सर्वेक्षण में भोपाल ने तीन स्थानों की छलांग लगा कर फिर से दुसरे स्थान पर अपनी जगह बना ली है। कचरे की प्रसंस्करण में सुधार और घर-घर कचरा संग्रह की व्यवस्था को और मजबूत बनाकर भोपाल ने अपना दावा पुख्ता किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार फरवरी में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (जीआईएस) की वजह से भी भोपाल को अतिरिक्त लाभ मिला है। क्यूंकि इस दौरान भोपाल में 100 करोड़ रुपए से अधिक के कार्य हुए हैं, जिनमें सौंदर्यीकरण के विशेष कार्य भी शामिल हैं। सार्थक सोसायटी के मैनेजिंग डायरेक्टर इम्तियाज अली जीआईएस की भूमिका पर कहते हैं,

ग्लोबल समिट के दौरान इसके फंड से भोपाल के अंदर मुख्य मुख्य मार्गों पर ब्यूटीफिकेशन का काम किया गया है, तो हमें उसके नंबर तो मिले ही हैं। लेकिन भोपाल खुद ही खूबसूरत शहर है और निश्चित तौर पर भोपाल की जनता ने भी बड़ा सहयोग दिया है।

वो सुधार जिनसे भोपाल बना नंबर 2 

Bhopal Waste Pickers and MRF Facility
भोपाल में कचरे को अलग अलग करते रैग पिकर्स

पिछले एक साल में भोपाल में स्वच्छता के बुनियादी ढांचे में कई बदलाव हुए हैं। शहर में पांच नए अत्याधुनिक गार्बेज ट्रांसफर स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जिनकी कुल लागत 17.74 करोड़ रुपए है। ये स्टेशन कचरा संग्रह और परिवहन की प्रक्रिया को बेहद आसान और प्रभावी बनाते हैं। इन स्टेशनों में कचरे को अलग-अलग करके उसे संबंधित प्रसंस्करण संयंत्रों में भेजा जाता है। 

आदमपुर छावनी में एक मैटेरियल रिकवरी सेंटर भी स्थापित किया गया है, हालांकि यह अभी पूर्ण रूप से परिचालित नहीं है। लेकिन प्लास्टिक, थर्माकोल, सीएंडडी मलबा (कंस्ट्रक्शन ऐंड डेमोलिशन वेस्ट) और नारियल के कचरे के लिए विशेष प्रसंस्करण इकाइयां शुरू की गई हैं। इन इकाइयों ने लैंडफिल पर दबाव को काफी कम किया है और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया है। इम्तियाज अली भोपाल नगर निगम के प्रयासों पर कहते हैं,

“भोपाल ने नए-नए प्रयोग किए हैं। चाहे वह रेंडरिंग प्लांट हो, स्लॉटर वेस्ट, थर्माकोल यूटिलाइजेशन, ग्लास कलेक्शन और डिस्पोजल हो, हर तरह के वेस्ट को प्रॉपर तरीके से सेग्रीगेट करना और उसका साइंटिफिक डिस्पोजल करने के लिए नवाचार किए हैं। उसका नगर निगम भोपाल को लाभ मिला है।”

इसके अलावा कचरा संग्रह की क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। शहर में 125 नई सीएनजी गाड़ियां शामिल की गई हैं, जिससे इनकी कुल संख्या 700 हो गई है। इन सीएनजी वाहनों के उपयोग से ईंधन की लागत में कमी आई है और प्रदूषण भी घटा है। इसके अलावा दो श्रेडर और एक लिटर पिकिंग मशीन भी जोड़ी गई है, जो भारी और सूक्ष्म कचरे को प्रभावी रूप से निपटाने में सक्षम हैं।

सार्वजनिक स्थानों की सफाई के लिए छह नई रोड स्वीपिंग मशीनें जोड़ी गई हैं, जिससे इनकी कुल संख्या 10 हो गई है। इन मशीनों की कुल लागत लगभग 3 करोड़ रुपए है। अब शहर के अधिक क्षेत्रों में मशीनों से सफाई हो रही है, जिससे सड़कों पर उड़ती धूल की समस्या में काफी कमी आई है।

भोपाल में बायो-वेस्ट प्रबंधन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। डेड एनिमल इनसीनरेटर और रेंडरिंग प्लांट शुरू किया गया है, जिससे मृत जानवरों के निपटान के साथ-साथ दुर्गंध और संक्रमण की आशंका में भी कमी आई है। इसके अलावा नगर निगम, मंदिरों से भी हार-फूल एकत्रित करता है और उनका खाद बनाया जाता है। गणेश उत्सव और नवदुर्गा उत्सव के दौरान वार्डवार कचरा गाड़ियां चलाई जाती हैं, जिससे त्योहारी मौसम में भी स्वच्छता बनी रहती है।

Recycling center in Bhopal
भोपाल के ईंटखेड़ी में है प्लास्टिक रीसायक्लिंग सेंटर

जनवरी और फरवरी के महीनों में शहर में व्यापक सौंदर्यीकरण और वृक्षारोपण का कार्य किया गया। शहरभर में पौधे, घास और फूल लगाए गए। सड़कों की दीवारों को आकर्षक पेंटिंग से सुंदर बनाया गया। नालों को ढकने के लिए रंगीन व्यू कटर लगाए गए। शहर में 25 नए फाउंटेन स्थापित किए गए जो शहर की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। सड़कों पर उचित मार्किंग और साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं।

इन सब के अतिरिक्त भोपाल में कई नवाचार और तकनीकी पहल भी शुरू की गई हैं। शहर में तीन स्थानों पर कचरा कैफे खोले गए हैं, जहां लोग अपने घर का कबाड़ देकर मनचाहा भोजन या फिर स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए अचार, पापड़, गौ शिल्प के उत्पाद, कपड़े या कागज के थैले ले सकते हैं। कचरा कैफे एक विशेष एप के माध्यम से संचालित होता है, जो इसे और भी प्रभावी बनाता है।

भोपाल में प्रतिदिन लगभग 850 टन सूखा और गीला कचरा निकलता है। इसमें से करीब साढ़े चार सौ टन कचरा गीला होता है, जिसे घर-घर जाकर एकत्रित किया जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन 5 टन सैनिटरी वेस्ट, 52 टन प्लास्टिक का कचरा और लगभग 1.5 टन ई-वेस्ट भी निकलता है। इस सभी कचरे को वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करित किया जाता है।

शहर में 517 डीटीडीसी वाहन, 719 सीएनजी वाहन और 202 रोड स्वीपिंग वाहन तैनात हैं। ये सभी वाहन पूरे दिन शहरभर से गीला और सूखा कचरा एकत्रित करके उसे कचरा निष्पादन केंद्र तक पहुंचाते हैं। इस व्यवस्था से घर-घर कचरा एकत्रित करने में कोई परेशानी नहीं आती है।

कचरे के निपटान के लिए वैज्ञानिक तरीके से पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड पर कई प्रसंस्करण प्लांट लगाए गए हैं। एनटीपीसी का टोरिफाइड चारकोल प्लांट देश में वाराणसी के बाद दूसरा भोपाल में स्थापित हो रहा है। भोपाल में इस वर्ष टेक्सटाइल वेस्ट, बागवानी ग्रीन वेस्ट, कोकोनट वेस्ट और थर्माकोल वेस्ट के पूर्ण रीसाइक्लिंग के लिए संयंत्र स्थापित किए गए हैं। 

इन सब के अतिरिक्त भोपाल में शौचालय और सामुदायिक सुविधाओं के सुधार पर भी ध्यान दिया गया है। खुले में शौच से मुक्ति के लिए भोपाल में 143 सार्वजनिक शौचालय बनाए गए हैं। इसके अलावा 62 सामुदायिक शौचालय भी हैं। इन शौचालयों में जेंडर का विशेष ध्यान रखा गया है और महिलाओं के लिए शी लाउंज भी बनाए गए हैं। वहीं थर्ड जेंडर की सुविधा को मद्देनजर रखते हुए पुराने भोपाल के इलाके में प्रतीक्षा कक्ष के साथ उनके लिए विशेष शौचालय भी संचालित किए जा रहे हैं।

हलांकी भोपाल के पर्यावरण एक्टिविस्ट नितिन सक्सेना भोपाल की रैंकिंग और नंबर को लेकर संतुष्ट नहीं है। ग्राउंड रिपोर्ट से हुई बातचीत में नितिन भोपाल के बड़े तलाब को छोड़ कर अन्य तालाबों की स्थिति। अपारदर्शी पब्लिक फीडबैक सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। नितिन कहते हैं,

"यह जो स्वच्छता सर्वेक्षण है, मैं नहीं मानता इसमें जितने मानक हैं, उन मानकों पर काम हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब भोपाल प्रथम आ सकता था, उसके बावजूद भी नगर निगम भोपाल के लोगों की नाकामी की वजह से यह पीछे रह गया है।"

पब्लिक फीडबैक सिस्टम पर बात करते हुए नितिन बताते हैं कि पिछले साल दिसंबर में प्रशासन की ओर से सुझाव और आपत्तियां भेजने का विज्ञापन दिया गया था। नितिन ने ओडीएफ और वाटर प्लस को लेकर अपने सुझाव और आपत्तियां भेजीं थीं, जिनका कोई जवाब उन्हें अब तक नहीं मिला है। 

मैंने आरटीआई फाइल करके पूछा कि आपने बताइए कि मेरी आपत्ति पर क्या किया और कितनी आपत्तियां शहर में आई थी?  लेकिन ना तो यह जवाब दे पाए कितनी आपत्ति आई थी और ना ही इन्होंने मेरी आपत्ति का निराकरण किया।

नितिन भोपाल के ड्रैनेज सिस्टम पर प्रश्न उठाते हुए कहते हैं कि अरेरा कॉलोनी, अल्पना तिराहा जहां पर छह नंबर प्लेटफार्म पर हजारों यात्रियों का प्रतिदिन आना-जाना लगा रहता है, वहां पर कमर-कमर तक पानी रहता है। लेकिन शिकायत करने पर नगर निगम भोपाल हमेशा यह बोल देता है कि रेलवे विभाग हमारा सहयोग नहीं कर रहा। 

क्या कमी रह गई भोपाल की स्वच्छता में?

Adampur Landfill Site of Bhopal
भोपाल की आदमपुर कचरा खंती में जलता कचरा

इस बार केवल 12 अंक अधिक लाकर अहमदाबाद शीर्ष स्थान पर पहुंच गया है, जबकि कचरा पृथक्करण में वह भोपाल से भी पीछे है। भोपाल की मुख्य समस्या आदमपुर छावनी की लैंडफिल साइट है, जो सालों से शहर की प्रगति में बाधा बन रही है। कचरा संग्रह, 7 स्टार रेटिंग, वाटर प्लस और कचरा प्रसंस्करण में भोपाल के अंक इंदौर के बराबर हैं। लेकिन सोर्स सेग्रिगेशन में 5% अंक कटे हैं और निस्तारण में 0% अंक मिले हैं। भोपाल में सोर्स सेग्रिगेशन की कमी को रेखांकित करते हुए इम्तियाज कहते हैं कि,

15-20% कचरा ऐसा होता है कि जो सेग्रीगेट होकर जनता नहीं दे रही है। अगर हमको जनता का सहयोग मिल जाए तो निश्चित तौर पर हम इंदौर को भी पछाड़ देंगे। 

गौरतलब है कि इंदौर की आबादी लगभग 35 लाख है और भोपाल की 25 लाख है। लेकिन इंदौर में रोजाना 1,192 टन कचरा निकलता है, जबकि भोपाल में 800 टन। इंदौर में हर घर से छह तरीकों से कचरा अलग-अलग किया जाता है फिर चाहे वो गीला, सूखा, प्लास्टिक, केमिकल वेस्ट हो या फिर पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान। मगर भोपाल में केवल 20 से 30 प्रतिशत कचरा ही सही तरीके से अलग हो पाता है। 

इंदौर कचरे के निस्तारण में आगे है क्योंकि उसने अपनी लैंडफिल साइट (देवगुराड़िया) को हटा दिया है और नई जगह कचरा डंप नहीं होने दिया है। भोपाल में पहले भानपुर लैंडफिल में कचरा डाला जाता था। 2018 में यहां का डेढ़ लाख टन कचरा विवादास्पद लैंडफिल साइट आदमपुर खंती में डाला गया है और वहां लगातार कचरे का पहाड़ बनता जा रहा है। 

अन्य शहरों की नवाचार पहल जिन्हे भोपाल अपना सकता है 

देश के अन्य शहरों में भी कई नवाचार पहल की गई हैं। सूरत ने सूखे कचरे से ईंधन और दोबारा उपयोग लायक उत्पाद बनाए हैं। सीमेंट और टेक्सटाइल प्लांट में इसका उपयोग होता है और राजस्थान के उद्योगों ने इसे अपनाया है। सूरत ने उद्योगों को सीवेज-ट्रीटेड पानी भी बेचा है और एक साल में 140 करोड़ रुपए कमाए हैं।

सूरत में कचरे की अवैध डंपिंग खोजने के लिए आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग किया जा रहा है। मवेशियों को आरएफआईडी टैग लगाए गए हैं और शहर में आवारा घूमने पर ई-चालान भेजे जाते हैं। पुणे में कूड़ा बीनने वालों की सहकारी समिति बनाई गई है, जिससे घर-घर से कूड़ा एकत्रित होने लगा है। विशाखापत्तनम में ग्रीन एम्बुलेंस लॉन्च की गई है जो पेड़ों की रक्षा करती है। जाहिर है इन नवाचारों को अपना कर भोपाल अपना कचरा प्रबंधन और भी बेहतर कर सकता है। 


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