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Photograph: (Ground Report)
मध्य प्रदेश के सरदारपुर खरमोर अभयारण्य के आसपास बसे गांवों की समस्याओं को ग्राउंड रिपोर्ट ने प्रभावी ढंग से कवर किया है। ग्राउंड रिपोर्ट ने अपनी खबरों के माध्यम से स्थानीय समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांगों को सामने लाने का काम किया है। इसके साथ ही ग्राउंड रिपोर्ट के लेख "What issues led to the near-extinction of Lesser Florican in Madhya Pradesh"और "Endangered Lesser Florican disappear from Madhya Pradesh"ने खरमोर पक्षी की संकटग्रस्त स्थिति और इसके संरक्षण की चुनौतियों को सामने रखा है। ग्राउंड रिपोर्ट की इन ख़बरों का असर जमीन पर देखने को मिला है। मध्य प्रदेश सरकार ने 3 जुलाई 2025 को अभयारण्य के 348.12 वर्ग किलोमीटर में से 215.28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को डिनोटिफाई करने का निर्णय लिया गया है।
क्या है पूरा मामला
धार और झाबुआ जिले के 14 गांवों के निवासियों की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को ग्राउंड रिपोर्ट ने प्रभावी तरीके से सामने रखा। गुमानपुरा, बिमरोद, धुलेत और सेमल्या जैसे गांवों में रहने वाले, विशेषकर भील और भिलाला जनजातियों के लोग, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के सख्त नियमों के कारण कई कठिनाइयों का सामना कर रहे थे।
अभयारण्य के नियमों के तहत स्थानीय किसान अपनी जमीन का पूर्ण उपयोग नहीं कर सकते थे। उनकी जमीन केवल कृषि कार्यों तक सीमित थी। वे न तो अपनी जमीन बेच सकते थे और न ही व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग कर सकते थे। इससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता प्रभावित हो रही थी।
3 जुलाई 2025 के फैसले के बाद 215.28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अब राजस्व भूमि में बदल गया है। इससे इन गांवों के हजारों परिवारों को अपनी जमीन पर पूर्ण स्वामित्व और उपयोग का अधिकार मिल गया है। अब वे जमीन को बेच सकते हैं और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोग कर सकते हैं।
यह फैसला न केवल उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र अब व्यावसायिक गतिविधियों के लिए खुल गया है। इससे स्थानीय और बाहरी निवेश बढ़ने, छोटे उद्योग, व्यापारिक केंद्र और बुनियादी ढांचे का विकास, और रोजगार के नए अवसर पैदा होने की उम्मीद जताई जा रही है।
खरमौर का संरक्षण और चुनौतियां
खरमोर, जो भारत के बस्टर्ड परिवार का सबसे छोटा सदस्य है, IUCN रेड लिस्ट में 'क्रिटिकली एंडेंजर्ड' के रूप में सूचीबद्ध है। मध्य प्रदेश में इसकी संख्या 2015 में 48 थी, जो 2019 में घटकर 11 रह गई। पिछले दो सालों में इसके दर्शन नहीं हुए हैं।
ग्राउंड रिपोर्ट ने खरमोर पक्षी के विलुप्त होने के प्रमुख कारणों को उजागर किया है। इनमें पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार, घास के मैदानों का ह्रास, आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार, कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और मानव हस्तक्षेप शामिल हैं।
डिनोटिफिकेशन के बाद अभयारण्य का क्षेत्रफल 348.12 वर्ग किलोमीटर से घटकर 132.84 वर्ग किलोमीटर रह गया है। यह अभयारण्य 1983 में सलीम अली की सिफारिश पर स्थापित किया गया था। डिनोटिफिकेशन से कम हुआ क्षेत्रफल खरमोर पक्षी के संरक्षित आवास को और सीमित कर सकता है।
आगे की राह
सरकार के फैसले के बाद खरमोर संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। शेष 132.84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कड़ी निगरानी और संरक्षण नीतियां लागू करनी होंगी। इसके लिए ड्रोन और उपग्रह इमेजरी का उपयोग किया जा सकता है।
डिनोटिफाई क्षेत्र में पारंपरिक फसलों जैसे ज्वार, मूंग, उड़द की कीटनाशक रहित खेती और घास के मैदानों की बहाली को बढ़ावा देना होगा। यह खरमोर के लिए अनुकूल वातावरण बनाएगा। समुदाय को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना होगा, जैसे जागरूकता कार्यक्रम और आर्थिक प्रोत्साहन। पवन ऊर्जा परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए और शोध की आवश्यकता है।
ग्राउंड रिपोर्ट की खबरों के परिणामस्वरूप सरदारपुर खरमोर अभयारण्य का डिनोटिफिकेशन हुआ है। इसके साथ ही ग्राउंड रिपोर्ट ने संरक्षण और विकास के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है। इस फैसले से 14 गांवों के किसानों को अपनी जमीन पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हुए हैं। इससे से स्थानीय समुदाय के लिए राहत और आर्थिक अवसरों की नई संभावनाएं खुली हैं। हालांकि, यह खरमोर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए चुनौती पेश करता है। इसके लिए अब सरकार को अब शेष अभयारण्य की रक्षा और डिनोटिफाइड क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी।
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ग्राउंड रिपोर्ट में हम कवर करते हैं पर्यावरण से जुड़ेऐसे मसलों को जो आम तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं।
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