Powered by

Advertisment
Home हिंदी

जातिवाद के दंश से बेहाल समाज

एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल पर आरोप है कि उन्होंने 11 साल के बच्चे को जातिगत भेदभाव के आधार पर मार मार कर अधमरा कर दिया था.

By Charkha Feature
New Update
casteism in Uttrakhand

नीमा गढ़िया, कपकोट, उत्तराखंड | आज़ादी के 75 साल बाद भी हमारे समाज में कुछ ऐसी बुराईयां मौजूद हैं जो इसकी जड़ों को खोखला करता जा रहा है. इसमें सबसे प्रमुख जातिवाद का दंश है. जिसके कारण दलित और कमज़ोर तबका प्रभावित होता है. पिछले तीन वर्षों में, यानि 2019 से 2021 के दौरान, देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, रिकॉर्ड किए गए मामले 2019 में 45,961 से बढ़कर 2021 में 50,900 हो गए हैं. हालांकि हमारा संविधान कहता है कि भारत में किसी के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा, क्योंकि यहां सभी वर्ग समान हैं.

Advertisment

लेकिन इक्कीसवीं सदी के इस दौर में भी भारत के कई कोनों से ऐसी खबरें आए दिन हमारे सामने आती हैं जिसमें किसी न किसी के साथ धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर बुरा बर्ताव किया जाता है. संविधान का अनुच्छेद 15 नागरिकों को जातिवाद, अस्पृश्यता, धर्म और लिंग के आधार पर विभिन्न प्रकार के भेदभाव से बचाता है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में कानूनी जागरूकता और जाति मान्यताओं की कमी के कारण लोग अभी भी अस्पृश्यता का सामना करते हैं और भेदभाव का शिकार होते हैं. चिंता की बात यह है कि शिक्षित समाज में भी दलितों के साथ भेदभाव और अत्याचार देखने को मिलते रहते हैं. जहां पढ़े लिखे उच्च जाति के लोग मानसिक रूप से इस दुर्भावना के शिकार हैं.

हाल ही में ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक के चोरसो गांव का है. जहां एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल पर आरोप है कि उन्होंने 11 साल के बच्चे को जातिगत भेदभाव के आधार पर मार मार कर अधमरा कर दिया था. ग्रामीणों का आरोप है कि वह प्रिंसिपल स्कूल के हर दलित जाति के बच्चों के साथ भेदभाव में करती हैं. इसी दुर्भावना में उसने बच्चे को इतना मारा कि किसी की भी रूह कांप उठे. इस संबंध में बच्चे की मां मंजू देवी कहती हैं कि मैंने कई बार स्कूल जाकर प्रिंसिपल से गुहार लगाई थी कि मेरे बच्चे को मारा न जाए और उसकी जाति को लेकर कुछ न बोला जाए, लेकिन वह कई बार घर आकर मुझे यही कहता था कि मुझे मारा जाता हैं और मेरी जाति का मजाक उड़ाया जाता है. मंजू देवी के अनुसार गांव में यही एकमात्र सरकारी स्कूल है. वह कहती हैं कि प्राइवेट स्कूल में बच्चे को भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. मेरे बच्चे को इतना मारा गया कि मुझे मजबूरन पुलिस स्टेशन जाकर प्रिंसिपल के खिलाफ शिकायत करनी पड़ी. मंजू देवी की शिकायत के बाद कई और बच्चों के माता पिता भी सामने आए और उन्होंने भी अपने बच्चों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ शिकायत की. हालांकि प्रिंसिपल ने इन सब शिकायतों को खारिज किया है, परंतु मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रशासनिक स्तर पर जांच की जा रही है.

जातिगत भेदभाव केवल चोरसो गांव तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके आसपास के गांवों में भी दलितों के साथ भेदभाव के मामले सामने आते रहे हैं. इस संबंध में लमचूला गांव की एक किशोरी डॉली (बदला हुआ नाम) का कहना है कि हमारे गांव में पाडुस्थल यानी जन्माष्टमी का मेला लगता है, जहां मंदिर के अंदर दलित जाति के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है. उन्हें पूजा करने का भी अधिकार नहीं होता है. वह कहती है कि जब मंदिर के बाहर प्रसाद मिलता है तो वहां पर भी जाति के आधार पर दो लाइन बनाई जाती है. डॉली सवाल करती है कि जब भगवान के लिए तो सभी व्यक्ति एक समान है तो यह भेदभाव क्यों की जाती है?

जाति भेदभाव से परेशान 10वीं की छात्रा सरिता (बदला हुआ नाम) का कहना है कि बारिश के समय में हमें रास्ते में कभी पीरियड्स शुरु हो जाती है तो हम सोचते हैं कि रास्ते में किसी का घर आएगा तो हम थोड़ी मद्द लेंगे, उनका बाथरूम इस्तेमाल कर लेंगे, परंतु जिसका भी घर आता वह हमारी दिक्कत नहीं समझते हैं, बल्कि हमसे पहले हमारी जाति पूछते हैं, जब उन्हें पता चल जाता है कि हम दलित जाति से हैं तो वह साफ साफ हमें मना कर देते हैं. यहां तक कि गांव में अगर नल से किसी दलित जाति वाले ने पानी भर लिया तो वहां से उंची जाति वाला कोई परिवार पानी नहीं भरता है. जब जाति की बात आए तो लोगों का ज्ञान भी धरा का धरा रह जाता है. फिर चाहे कोई कितना भी पढ़ा लिखा क्यों न हो, लोग अपनी जाति को ही ऊपर रखते है. जातिवाद आज भी हमारे समाज में इतनी बड़ी समस्या हैं कि लोग इससे बाहर निकलना ही नहीं चाहते हैं. जैसे जैसे दुनिया आगे बढ़ रही है वैसे वैसे समाज में जाति भेदभाव भी बढ़ता जा रहा है.

इस संबंध में लमचूला गांव के ग्राम प्रधान पदम राम का कहना है कि हमारे गांव में भेदभाव बहुत अधिक है, इसमें जातिगत भेदभाव बहुत बड़ा भेदभाव है जहां इंसानियत खत्म हो जाती है. हम मंदिरों में नहीं जा सकते हैं. अपनी मर्जी से पूजा-पाठ नहीं कर सकते हैं. अगर कहीं चाय पानी भी पीना होता है तो दलित समुदाय के लोगों के लिए चाय पानी भी अलग से रख दिया जाता है. वह कहते हैं कि जब चुनाव का समय होता है तब भी सभी जाति के लोग अपनी अपनी जाति के उम्मीदवार के साथ खड़े होते हैं. जो राजनीति में जातिगत भेदभाव को दर्शाता है.

ऐसी घटनाएं भारत में दलितों की हिंसा और उत्पीड़न का छोटा सा नमूना है. 1991 से, जब से आंकड़े उपलब्ध हुए हैं, पुलिस में आधिकारिक तौर पर 7 लाख से अधिक अत्याचार के मामले दर्ज किए गए हैं, यानी हर घंटे दलितों के खिलाफ करीब पांच अपराध होते हैं, और ये सिर्फ आधिकारिक तौर पर दर्ज मामले हैं. बड़ी संख्या में इस किस्म के मामले नियमित तौर पर दर्ज़ ही नहीं होते हैं. हालांकि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिए गए हैं और कानून के समक्ष भी सभी को समान माना गया है. ऐसे में किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन अनुचित और गैर क़ानूनी है. जिसे न्यायतंत्र के साथ साथ जागरूकता के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है. (चरखा फीचर)

Keep Reading

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us on [email protected].