MP Elections 2023 | भोपाल में हुई देश की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानि गैस कांड को हुए 39 साल हो चुके हैं, लेकिन इस त्रासदी के पीड़ितों के जख्म आज भी ताजा हैं। इतने साल बीत जाने की बाद भी गैस पीड़ित आज भी न्याय की आस अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं, फिर भी इन्हें न्याय तो मिलना दूर की बात हैं, इन्हें इलाज और मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनावों में गैस पीड़तों ने अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराने का निर्णय लिया है।
भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले पांचों संगठनों का कहना हैं कि इन 39 सालों में चुनाव आते-जाते रहे और अब फिर से प्रदेश भर के साथ ही भोपाल में राजनैतिक पार्टियां कांग्रेस और भाजपा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं, लेकिन कभी भी न तो राजनैतिक पार्टियों और न ही किसी राजनेता इस त्रासदी को चुनावी मुददा बनना बेहतर समझा हैं।
कहने को तो भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी हैं, लेकिन गैस पीड़ितों की दुर्दशा यह हैं कि करीब 3 हजार से ज्यादा लोग रोजाना इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। फिर भी इन लोगों की कोई सुनने वाला नहीं हैं। दरअसल, 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात के दरमियान भोपाल तत्कालीन यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से करीब 10 हजार 74 लोगों की जान चली गई और 50 लाख 74 हजार से लोग बीमार हो गए। यह आधिकारिक आंकड़े मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र के अनुसार है, जबकि गैस पीड़ित संगठनों का कहना हैं कि त्रासदी के दो सप्ताह के भीतर कम से कम 15 हजार लोगों ने अपनी जान गवाई थी।
MP Elections 2023 : चुनाव में गैस पीड़ित नज़रअंदाज़
भोपाल गैस पीड़ित स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी कहती हैं कि "भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुर्नवास मंत्री कैलाश विश्वास सारंग खुद भी गैस पीड़ित हैं, इसके बाद भी उन्होंने गैस पीड़ितों की स्थिति में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया हैं। यहां तक कि गैस प्रभावित लोगों के रोजगार और आर्थिक सुधार के लिए के सरकार के खाते में सालों से 100 करोड़ का फंड जमा हैं, इतने साल बीत जाने के बाद भी इस फंड का सही तरीके उपयोग नहीं किया जा रहा हैं, इस फंड में 20 करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके हैं और 80 करोड़ फंड बाकी हैं। वे आगे कहती हैं कि 20 करोड़ खर्च करने के बाद भी कितने गैस पीड़ितों को रोजगार मिला, इसका जवाब सरकार के पास नहीं हैं। इतना ही नहीं उनके पास को बचे फंड का उपयोग कर रोजगार उपलब्ध कराने की भी कोई कार्ययोजना नहीं हैं।"
पड़ितों की कोशिश की उनकी समस्याओं पर ध्यान दे राजनीतिक पार्टियां
मध्यप्रदेश में चुनावों की घोषणा के बाद से गैस पीड़ित त्रासदी से प्रभावित लोगों के लिए मुआवजा, रोजगार, स्वास्थ्य और पुर्नविकास आदि मांगों को चुनावी मुददा बनाने की तैयारियों में जुट गए हैं। गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले समूहों में भोपाल ग्रुप फाॅर इंफाॅर्मेशन एंड एक्शन, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोग संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, डाव-कार्बाइड के खिलाफ बच्चे और भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरूष संघर्ष मोर्चा शामिल हैं। इन सूमहों ने बताया कि अभी हाल ही में हुई में बैठक में तय किया गया हैं कि गैस पीड़ितों की समस्याओं को चुनावी मुददा बनाना हैं। इसके लिए हमने युवाओं और महिलाओं की टीमें तैयार की हैं। जोकि गैस प्रभावित इलाके यानि 40 वार्डों में घर-घर जाकर लोगों जागरूक करेंगे, कि उनसे जो भी नेता वोट मांगने आए तो उनसे सवाल करेंगे कि उन्होंने गैस पीड़ितों के लिए क्या और वो क्या करेंगे, इतना ही नहीं वो जो भी वादा कर रहे हैं वो काले और सफदे रंग में ले ताकि सरकार बनने के बाद वे अपने वादे से मुकरे तो उनपर कानूनी कार्रवाई की जा सकें।
गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ष नामदेव कहते हैं कि "हमें तो सभी राजनैतिक पार्टियों ने धोखा दिया हैं। हमारे लिए भाजपा जितनी अच्छी हैं उतनी ही कांग्रेस हैं। वे आगे कहते हैं कि रोजाना करीब 3000 से ज्यादा गैस पीड़ित इलाज के लिए भटक रहे हैं, उन्हें अस्पतालों में इलाज नहीं मिल रहा हैं, आयुष्मान कार्ड भी उनके बेकार साबित हो रहा हैं, प्राइवेट अस्पतालों में इलाज मिलता हैं तो दवाओं के पैसे चुकाने पड़ते हैं। वे रूंधे गले से कहते हैं कि इतना ही नहीं हर तीन से चार गैस प्रभावित मर रहे हैं, फिर यह चुनावी मुददा नहीं हैं। ऐसा लगता हैं कि हमारे नेता रीढ़विहीन हैं, इसलिए इतने साल बीत जाने के बाद भी कोई राजनेता हमारे साथ खड़ा होने को तैयार नहीं हैं।
जैस-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं वैसे-वैसे गैस त्रासदी में बचे लोगोें की काॅलोनियों जैसे काजी कैंप, डीआईजी बंगला ओवरब्रिज, जेपी नगर, छोला, शाहजहानाबाद, नवाब काॅलोनी और जहांगीराबाद आदि में जागरूकता शिविर की संख्या में बढ़ोतरी की जा रही हैं।"
MP Elections 2023 : क्या है चुनावी रणनीति?
डाव-कार्बाइड के खिलाफ बच्चे के नौशीन खान ने चुनाव MP Elections 2023 को लेकर अपनी रणनीति बताते हुए कहते हैं कि "हमने युवाओं और महिलाओं की टीमें तैयार की हैं और मिस्ड काॅल के माध्यम से नए सदस्य बना रहे हैं। अभी तक करीब 1000 से ज्यादा सदस्य मिस्ड काॅल के माध्यम से हमने जुड़ चुके हैं। वे कहती हैं कि 100 युवाओं और 150 महिलाओं की हमने टीम बनाई हैं। इन्हें 8 से 10 सदस्यों के अलग-अलग ग्रुप में बांटा कर 40 वार्ड में डिवाइड किया हैं। यह ग्रुप अलग-अलग वार्ड की बस्तियों में जाकर लोगों को जागरूक करने का काम रहे हैं और अभी तक 50 से ज्यादा जागरूकता शिविर का आयोजन कर चुके हैं।"
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरूष संघर्ष मोर्चा के नवाब खां कहते हैं कि "सीएम शिवराज सिंह चौहान और उनकी पार्टी ने 2010 में कई वादें गैस पीड़ितों से किए, लेकिन आज तक एक भी वादा पूरा नहीं किया जा सकता, उन्होंने तो सुप्रीम कोर्ट में वकील भेजना भी उचित नहीं समझा और कोर्ट में मौत और प्रभावितों के आंकड़े भी सहीं तरह से पेष नहीं हैं। वे आगे कहते हैं कि गैस पीड़ितों के नौ अस्पतालों में डाॅक्टर और स्टाफ अपर्याप्त हैं, दवा की गुणवत्ता बहुत खराब और अप्रभावी हैं, हर माह के दूसरे सप्ताह से दवाएं मरीज को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। अस्पतालों में पूछताछ करो तो दवाओं की शाटेज बताकर मरीज को टरका देते है। इतना ही नहीं पीड़ितों की किसी भी तरह मेडिकल जांच नहीं होती हैं, हर दिन दो से तीन लोग मर रहे हैं और वे इतने सालों से झूठे दावे कर चुनाव जीत रहे हैं।"
चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं गैस पीड़ित
भोपाल ग्रुप फाॅर इंफाॅर्मेशन एंड एक्शन की संयोजक रचना ढींगरा कहती हैं कि "सात निर्वाचन क्षेत्र भोपाल जिले में आते हैं, जबकि गैस पीड़ितों और बचे लोगों की सबसे बड़ी आबादी भोपाल उत्तर और नरेला विधानसभा क्षेत्र में हैं। दोनों की विधानसभा क्षेत्रों में 80 से 90 प्रतिशत मतदाता ऐसे है जोकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस त्रासदी से संबंध रखते हैं। वहीं भोपाल मध्य और हुजूर विधानसभा में गैस प्रभावितों की एक बड़ी आबादी रहती हैं, जोकि त्रासदी के बाद से पीड़ित हैं। इन दोनों क्षेत्रों में करीब 40 प्रतिशत गैस पीड़ित मतदाता जीवित है और यह संख्या चुनाव के परिणामों को प्रभावित करने के लिए काफी हैं।"
वे आगे कहती हैं कि भोपाल जिले की बैरसिया सीट ग्रामीण मानी जाती है, जबकि गोविंदपुरा और भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट में पलायन कर बसने वाले गैस प्रभावित लोगों की एक बड़ी आबादी रह रही हैं। ऐसे करके हमने 40 वार्ड चिंहित किए हैं, जिसमें गैस प्रभावित रह रहे हैं। इस वार्डों से हमने युवाओं और महिलाओं की टीमें तैयार की हैं, जो लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं। इन जागरूकता शिविरों में सूचना के अधिकार से प्राप्त, अदालतों सरकार की ओर से पेश किए दास्तवेजों के आधार पर लोगों को सरकारों और नेताओं का सच सामने रखेंगे। इसके अलावा हमने इस सभी वार्ड में वार्ड स्तर के युवाओं नेताओं को भी शामिल करने की योजना बनाई हैं कि वे राजनेताओं से जब वे MP Elections 2023 वोट मांगने आएंगे तो वे बचे हुए लोगों की ओर से सवाल कर सकें और बातचीत कर सकें।
जब हमने उनसे पूछा कि इतने सालों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे क्या वादे किए और कितने वादें उन्होंने पूरे किए तो रचना कहती हैं कि "वादों को पूछों ही मत आप कितने किए, अनगिनत वादें सीएम साहब ने किए, लेकिन एक भी वादा पूरा नहीं कर सकें। हमने उन्हें और उनकी पार्टी के ओर से किए गए वादों को याद दिलाने के लिए व उन्हें चिकित्सा सहायता और मुआवजे की मांग करते हुए 25 हजार से ज्यादा व्यक्तिगत ज्ञापन सौंपे हैं, लेकिन उनके और उनकी सरकार से रवैया ऐसा लगा हैं कि सभी ज्ञापनों को कूड़ादान में डाल दिया गया हैं।"
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