यूं तो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से दुनिया का कोई भी देश अछूता नहीं है। यूरोप की गर्मियों की अवधी बढ़ रही है, ब्राजील में बाढ़ आ रही है, और बुरांश के फूल समय से पहले ही फूलने लगे है। लेकिन 23 अप्रैल को प्रकाशित डब्ल्यूएमओ (WMO) की स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया, 2023 की रिपोर्ट अनुसार एशिया (Asia) वैश्विक औसत से अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है। इसलिए यहां दुनियाभर के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक चरम मौसम, जलवायु और पानी से संबंधित घटनाएं देखी जा रही हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में जल और मौसम संबंधी खतरों से जुड़ी 79 घटनाएं हुईं, जिससे पूरे एशिया में नौ मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए और सीधे तौर पर 2,000 से अधिक लोग मारे गए। इनमें से अस्सी प्रतिशत घटनाएं बाढ़ और तूफान की घटनाएं थीं। इसमें यह भी बताया गया है कि एशिया में भीषण गर्मी बढ़ती जा रही है।
लगातार गर्म होता एशिया
2023 में, औसत वार्षिक सरफेस टेंप्रेचर 1961-1990 के औसत से 1.87 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1991-2020 के औसत से 0.91 डिग्री सेल्सियस अधिक था। अगर बात सीधे-सीधे कही जाए तो दुनिया पूर्व-औद्योगिक औसत (1850-1900) की तुलना में कम से कम 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गई है। हालंकि इस रिपोर्ट में यह माना गया है कि, तापमान में अंतर की गणना करने के लिए, एशिया और दुनिया में अलग-अलग रेफरेंस पीरियड हैं क्योंकि एशिया और दुनिया में 1900 के दशक से पहले का डेटा अपर्याप्त है। अधिक चिंता की बात यह है कि एशिया में तापमान वृद्धि की दर तेज़ हो रही है। हाल के दशकों में यूरोप को छोड़कर अन्य क्षेत्रों की तुलना में एशिया अधिक गर्म हो गया है।
ग्लेशियर को लेकर क्या कहती है रिपोर्ट
साल 2022-2023 में, 22 में से 20 में हाई माउंटेन एशिया (HMA) क्षेत्र में ग्लेशियर (Glacier) देखे गए थे। इनमें से तिब्बती पठार पर केंद्रित एक उच्च ऊंचाई वाला क्षेत्र, जिसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर बर्फ की सबसे बड़ी मात्रा होती हैउसका द्रव्यमान लगातार गिरता आ रहा है। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा मुख्य रूप से पूर्वी हिमालय में रिकॉर्ड तोड़ उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों के कारण हुआ। पिछले 40 वर्षों में, एचएमए क्षेत्र के ग्लेशियरों में बड़े पैमाने पर नुकसान दर्ज किया गया है। इस क्षेत्र में 1990 के दशक के मध्य से बड़े पैमाने पर नुकसान की दर में वृद्धि हुई है।
लगातार कम होती वर्षा है चिंता का विषय
2023 में तुर्कमेनिस्तान, पाकिस्तान और म्यांमार जैसे देशों के बड़े हिस्से में बारिश सामान्य से कम थी। भारत में, जून से सितंबर तक ग्रीष्मकालीन मानसून सीज़न की वर्षा, 1971-2000 के औसत से लगभग 6% कम थी। रिपोर्ट के अनुसार, "लगातार दूसरे वर्ष, दक्षिण-पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों, गंगा जलग्रहण क्षेत्र और ब्रह्मपुत्र के निचले हिस्से में सामान्य से कम वर्षा हुई।"
क्यों हो रहा है एशिया में बड़े पैमाने पर क्लाइमेटिक अनरेस्ट
एशिया में विपरीत जलवायवीय परिस्थितियों के कारण सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक हैं। एशिया जाहिर तौर पर एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र है। एशिया में एक और विशाल हिमालयी ग्लेशियर है वहीं दूसरी और बड़े गर्म और शुष्क मरुस्थल भी हैं। इस महाद्वीप का बड़ा हिस्सा समुद्र के किनारे है दूसरी तरफ एशिया के कई देशों से भूमध्य रेखा भी गुजरती है। ये सभी भौगलाकि स्थितयां अपनी प्रकृति के अनुसार लाभ देती हैं, और संतुलन बिगड़ने पर चरम मौसमी घटनाओं से सामना भी कराती हैं।
एशिया विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है। एशिया के अधिकांश देश विकासशील हैं और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। एशिया में औद्योगीकरण और नगरीकरण काफी देर से शुरू हुआ और अभी तक जारी है। ये स्थितियां इन देशों को विकास और पर्यावरण के दोराहे पर ला छोड़ती हैं। आर्थिक रूप से पर्याप्त सक्षम न होने के कारण इन देशों के लिए जलवायु परिवर्तन के मापदंडों का पालन करना कुछ हद तक कठिन भी होता है।
एशिया के बड़े क्षेत्र का कोलोनियल इतिहास रहा है, इन देशों ने खुद को मुश्किल हालत से खड़ा किया और उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल आ रही है, जलवायु परिवर्तन की। ऐसे में बड़ा प्रश्न उठता है की वैश्विक मंचों और विकसित देशों ने इस दिशा में कितना गंभीर प्रयास किया है। अगर ओज़ोन के ऊपर हुए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपवाद के तौर छोड़ दें तो भी अधिकांश जलवायु संबंधी समझौते या तो आकार नहीं ले पाए या जमीन पर असर नहीं छोड़ पाए। ऐसे मोड़ पर यह बात यद् रखनी जरूरी है की जलवायवीय घटना कभी क्षेत्रीय नहीं होती हैं। इन घटनाओं के प्रभाव वैश्विक होते है, और इनसे निपटने के लिए एक साझा प्रयास अपेक्षित है।
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