यमुना नदी (Yamuna River) को लेकर एनजीटी (NGT) का एक हालिया फैसला आया है। इस फैसले में एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने आगरा (Agara) और मथुरा-वृंदावन नगर निगम पर भारी जुर्माना लगाया है। आइये जानते हैं क्या है ये मामला और क्यों एनजीटी ने नगर निगमों पर ये जुर्माना लगाया है।
दरअसल मामला यमुना नदी नालों का दूषित जल छोड़े जाने का है। जिस कारण यमुना नदी की हालत बदतर होती जा रही है।
आगरा की बात करें तो शहर की एसटीपी (Sewage Treatment Plant) की क्षमता 220.75 एमएलडी है। लेकिन आगरा के सभी 9 नाले यमुना नदी में 286 एमएलडी सीवेज का निर्वहन कर रहे हैं। इस तरह से, आगरा में 65.25 एमएलडी स्पष्ट अंतर है, जो दर्शाता है की अनुपचारित सीवेज यमुना में छोड़ा जा रहा है। वहीं मथुरा में एसटीपी की स्थापित क्षमता और मथुरा के सभी 23 नालों द्वारा सीवेज के कुल निर्वहन में 1.25 एमएलडी यानी 1250000 लीटर का अंतर है। ये सभी तथ्य अदालत के सामने रखे गए थे।
अपने 200 पन्नों के फैसले में, न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि "जब प्रदूषित सीवेज को यमुना नदी में छोड़ा जा रहा है और नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है, तो उल्लंघनकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और इसके लिए पर्यावरणीय मुआवजा देना चाहिए।"
इसके साथ ही एनजीटी ने आगरा नगर निगम को निर्देश दिया कि 58,39,20,000 रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है और यह राशि 3 महीने के भीतर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) के पास जमा करनी होगी। वहीं एनजीटी ने कहा कि मथुरा-वृंदावन नगर निगम 7,20,10,000 रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है।
न्यायालय ने कहा है की सी मुआवजे की राशि का उपयोग मथुरा-वृन्दावन क्षेत्र में पर्यवरण में सुधर के लिए किया जाना चाहिए। इस मुआवजे के पर्यावरणीय हित में उपयोग की योजना बनाने की जिम्मेदारी न्यायालय ने सीपीसीबी, यूपीपीसीबी और संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों को मिलाकर बनी एक संयुक्त समिति को दी है।
एक ओर सरकारें यमुना की सफाई को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर इस तरह की लापरवाहियां यह संकेत देती हैं की यमुना की सफाई को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यह कोई ताजा मसला नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही समस्या है, जिसका जिक्र याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में भी किया था। इतने लंबे समय तक स्थिति में कोई सुधार न आ पाना पर्यावरण की दृष्टि से चिंता का विषय है।
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