बुधवार 21 फ़रवरी को भोपाल की भदभदा कॉलोनी के क़रीब 386 मकानों को भोपाल नगर निगम (BMC) द्वारा ज़मिदोज़ कर दिया गया। नगर निगम द्वारा की गई यह कार्यवाही जुलाई 2023 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा दिए गए एक फैसले का पालन करते हुए की गई है। आईये सिलसिले वार ढंग से समझते हैं कि भोपाल झील संरक्षण के लिए एनजीटी में हुई सुनवाई में क्या-क्या कहा गया और उसे अमल करने के लिए प्रशासन ने अब तक क्या किया है।
क्या है भोपाल झील संरक्षण मामला?
दरअसल 08 सितम्बर 2020 को कानून की एक छात्र आर्या श्रीवास्तव द्वारा अपर लेक के संरक्षण को लेकर एक जनहित याचिका एनजीटी के समक्ष दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया कि भोपाल की अपर लेक (बड़ा तालाब) के किनारे से 50 मीटर दूर तक, जो कैचमेंट एरिया है, में कंक्रीट स्ट्रक्चर के रूप में अतिक्रमण हैं। इसमें कुछ पक्के और कुछ कच्चे निर्माण कार्य शामिल हैं। मामले को संज्ञान में लेते हुए ट्रिब्यूनल ने सम्बंधित सरकारी संस्थानों को नोटिस भेजा। हालाँकि इस ऑर्डर में एजेंसियों का ज़िक्र नहीं है।
घटनाक्रम: भोपाल झील संरक्षण मामले पर एनजीटी का आदेश
10 जून 2021 को हुई अगली सुनवाई में मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि अपर लेक के दक्षिणी हिस्से में भदभदा ब्रिज के पास एक झुग्गी बस्ती (भदभदा कॉलोनी) है, जो लेक के कैचमेंट एरिया में आती है। इस पर ट्रिब्यूनल द्वारा 2 अलग-अलग कमिटियों के गठन का आदेश दिया गया। इसमें से एक कमिटी के गठन का आदेश भोपाल कलेक्टर को दिया गया। कलेक्टर द्वारा गठित इस कमिटी में राजस्व, बीएमसी और स्टेट वेटलैंड अथोरिटी के एक-एक सदस्यों को लेक का डीमार्केशन करने और कब्ज़ों की पहचान करने को कहा गया।
वहीं ट्रिब्यूनल द्वारा गठित दूसरी जॉइंट कमिटी में कलेक्टर, कमिश्नर (BMC) और मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को शामिल किया गया। इसका उद्देश्य भोपाल के सभी जलाशयों को प्रदूषित करने वालों को चिन्हित करना था। साथ ही नगर निगम को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कुल संख्या, शहर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पानी की मात्रा, कुल ट्रीटेड पानी की मात्रा सहित (जलाशयों) भोपाल झील संरक्षण से सम्बंधित कुल 8 बिन्दुओं पर रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया।
15 जुलाई 2021 को हुई सुनवाई में कहा गया कि सुनवाई से 3 दिन पहले कमिटी द्वारा भदभदा कॉलोनी का दौरा किया गया था। मौके पर पाए गए अतिक्रमण को लेकर स्थानीय लोगों को बीएमसी द्वारा नोटिस भी दिया गया था। साथ ही इस सुनवाई के दौरान कमिटी ने अन्य 8 बिन्दुओं पर अपने जवाब भी दायर किए।
16 फ़रवरी 2022 को हुई अगली सुनवाई में बीएमसी का पक्ष रख रहे वकील द्वारा ट्रिब्यूनल को बताया गया कि लेक के कैचमेंट एरिया में कुल 227 अतिक्रमण हैं। मगर इन अतिक्रमण को हटाने के लिए प्रशासन जिसमें ज़िला कलेक्टर और बीएमसी दोनों शामिल हैं, द्वारा कोई भी कदम नहीं उठाए गए। बल्कि हर विभाग ने अपनी ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने का प्रयास किया।
28 फ़रवरी 2022 को यह मामला 6 सदस्यों वाली बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया। अब इस केस में भोज वेटलैंड के अलावा नवाब सिद्धिकी हसन खान तालाब, मोतिया तालाब और मुंशी हसन तालाब के संरक्षण का मामला भी जोड़ दिया गया. इस दौरान कहा गया कि इन सभी जलाशयों में बायोमेडिकल वेस्ट और सीवेज का अनट्रीटेड पानी छोड़ा जा रहा है। अतः ट्रिब्यूनल द्वारा प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदूषण करने वालों पर पर्यावरणीय मुआवज़ा (environmental compensation) प्रस्तावित करने का आदेश दिया गया। इसके अलावा ट्रिब्यूनल के आदेश पर कार्यवाही करते हुए बीएमसी ने भी 41 अस्पतालों पर पैनाल्टी लगाई गई थी। इसे निगम अब तक नहीं वसूल पाया है।
कब्ज़ा हटाने में असहाय प्रशासन
ट्रिब्यूनल द्वारा अवैध कब्ज़े को लेकर बीएमसी से कई बार एक्शन टेकन रिपोर्ट मांगी गई। बीएमसी के वकील द्वारा कई बार यह माना गया कि निगम द्वारा कब्ज़ा हटाने को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। 28 फ़रवरी 2022 को ट्रिब्यूनल द्वारा प्रदेश के मुख्य सचिव को सभी सम्बंधित विभागों के साथ बैठक करके जलाशयों को संरक्षित करने और उन्हें कब्ज़े से मुक्त कराने के लिए विस्तृत नीति बनाने का आदेश दिया गया।
6 दिसंबर 2023 को इस पर टिप्पणी करते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा,
“यदि राज्य की संपत्ति पर हुए कब्ज़े को हटाने में प्रशासन असमर्थ है तो हम उस दिन का इंतज़ार करेंगे जब भीड़ प्रशासन के आधिकारिक निवास और ऑफ़िस पर कब्ज़ा कर लेगी. क्योंकि उनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है.”
गौरतलब है कि, इस बीच प्रशासन द्वारा कब्ज़ा न हटा पाने के लिए स्थानीय समूह द्वारा किए गए प्रदर्शन को ज़िम्मेदार ठहराया गया था। मगर ट्रिब्यूनल ने इस तर्क को ‘आईवाश’ करार दिया था।
पिछली सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल द्वारा कब्ज़ा न हटा पाने की असमर्थता पर की गई टिप्पणी के बाद बीते सोमवार 19 फरवरी को भदभदा कॉलोनी के इन रहवासियों को बीएमसी द्वारा मंगलवार की शाम तक जगह खाली करने का नोटिस दिया गया था। ऐसा न करने पर बुधवार से बलपूर्वक कब्ज़ा हटाने की कार्यवाही शुरु भी कर दी गई।
बुधवार से शनिवार तक चले अभियान में बीएमसी ने एक मस्जिद और मंदिर को छोड़कर सभी घर गिरा दिए. स्थानीय प्रशासन द्वारा विस्थापित परिवारों के लिए भदभदा कॉलोनी से क़रीब 4.5 किमी दूर जवाहर चौक के पास बने पुनर्वास केंद्र पर इंतज़ाम किया गया।
टीटी नगर के सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) मुनव्वर खान ने कहा
“स्थानीय लोगों को पुनर्वास के लिए 3 विकल्प दिए गए हैं। ज़्यादातर लोगों को 1 लाख रूपए की सहायता राशि दी गई है। इसके अलावा चाँदपुर में प्लॉट देने का विकल्प है और शेष लोगों को पीएम आवास के तहत मालीखेड़ी और कल खेड़ा में आवास दिया जाएगा।”
झीलों के संरक्षण के लिए अब तक क्या किया गया?
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा झीलों के संरक्षण के लिए साल 1989 में ‘सरोवर हमारी धरोहर’ के माध्यम से झीलों से खरपतवार हटाने से शुरूआत की गई थी। झीलों के संरक्षण और व्यवस्था के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एक इंटिग्रेटेड प्लान भी बनाया था। साल 1989 से 1992 तक सरकार ने अनुदान के रूप में (grants in aid) इसमें 16.5 मिलियन रूपए भी खर्च किए। बाद में एक्सटर्नल फंडिंग के रूप में जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन (JBIC) द्वारा 7.055 बिलियन येन का सॉफ्ट लोन भी लिया गया।
मगर स्टेट वेटलैंड से जुड़े हुए एक पूर्व सदस्य इस प्रोजेक्ट को याद करते हुए कहते हैं कि प्रशासन द्वारा संरक्षण के नाम पर केवल ‘आईवाश’ किया गया था। वह कहते हैं,
“इस प्रोजेक्ट में डी-सिल्टिंग, डी-वीडिंग, सीवेज मैनेजमेंट, डिमार्केशन और कैचमेंट एरिया प्रोटेक्शन जैसी चीजें शामिल थीं। मगर इनमें से कुछ भी अच्छे से नहीं किया गया। साथ ही इनका पोस्ट-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ख़राब था जिसके चलते आज भी यह समस्या बनी हुई है।”
सरकारी ख़ामियाँ
रशीद नूर की बातों से सहमत, नेशनल सेंटर फॉर ह्यूमन सेटलमेंट एंड एनवायरनमेंट (NCHSE) के डायरेक्टर जनरल डॉ. प्रदीप नंदी कहते हैं,
“झुग्गियों में लोग आकर बसते हैं फिर बाद में उनको पट्टा दिया जाता है। मगर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग को बनाने के से पहले बीएमसी और कंट्री टाउनप्लानिंग की मंज़ूरी लगती है। तब सवाल अधिकारियों से होना चाहिए कि उन्होंने कैचमेंट एरिया में निर्माण की अनुमति कैसे दी?”
एक अनुमान के अनुसार भोपाल के अपर लेक में 14 नालों से हर रोज़ 15 मिलियन लीटर सीवेज दाखिल होता है। यह ना सिर्फ इसे प्रदूषित करता है बल्कि यहाँ की बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी को भी प्रभावित करता है। ऐसे में लेक के संरक्षण के लिए एक व्यवस्थित प्लान का बनना और उसका प्रभावी तरीके से लागू करना बहुत ज़रूरी है।
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