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2 April 2018: SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला जिसके बाद देश में हुआ सबसे बड़ा दलित आंदोलन, जानिए कैसे भड़की हिंसा और कैसे झुकी मोदी सरकार?

SC/ST Act Dalit Protest Bharat Bandh: 2 अप्रैल 2018 को हुए दलित आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पलट दिया था. इस दौरान हिंसा भी हुई

By Ground Report Desk
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SC/ST Act Dalit Protest Bharat Bandh: 2 अप्रैल 2018, भारतीय राजनीति के इतिहास में दलित आंदोलन, दलित हिंसा, भारत बंद के नाम से दर्ज हो चुका है. आज ही के दिन तमाम दलित संगठनों ने भारत बंद (SC/ST Act Dalit Protest Bharat Bandh) का आह्वान किया था. इस दौरान कई जगह शांतिपूर्ण आंदोलन जबकी कई राज्यों में हिंसक घटनाएं देखने को मिली थी. पुलिस ने कई बेकसूरों पर बर्बर कार्रवाई की. हिंसा के दौरान 9 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित देश के अलग-अलग इलाकों से हिंसा की कई तस्वीरें भी सामने आई थी. क्यों हुआ दलित आंदोलन (SC/ST Act Dalit Protest Bharat Bandh), कैसे भड़की हिंसा और क्या था सुप्रिम कोर्ट का वो फैसला जिससे के बाद सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए लाखों दलित. पढ़िए इस खबर में.

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2nd April 2018 Dalit Protest: क्यों हुआ इतना बड़ा दलित आंदोलन?

20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट से जुड़े कानून पर एक आदेश दिया. इसे दलितों के सुरक्षा अधिकार के कमजोर होने के रूप में देखा गया था. इससे पहले गुजरात के ऊना में दलित युवकों के साथ हुई मारपीट और आरोपियों पर कार्रवाई न हो से दलित पहले ही आक्रोशित थे और ऐसे वक्त में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने "आग में घी" डालने का काम किया. दलितों के रक्षाकवच कहे जाने वाले एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ दलितों ने लोकतांत्रिक तरीके से 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आह्वान किया था। इसमें देश भर के दलितों और उनसे जुड़े तमाम संगठनों ने हिस्सा लिया.इस आंदोलन के बाद मोदी सरकार को झुकना पड़ा. संसद में कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट से जुड़े निर्णयों को निष्प्रभावी किया गया.

20 March 2018: SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा था?

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि, इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी.

2nd April Bharat Band: दलित आंदोलन के दौरान कैसे भड़की हिंसा?

एससी-एसटी एक्ट पर दलितों ने भारत बंद का आह्वान किया. शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ ये आंदोलन देखते-देखते हिंसक रूप लेने लगा. दलित नेता और जिग्नेश मेवाणी की माने तो आंदोलन में कई असामाजिक तत्व शामिल हुए जिन्होंने हिंसा को भड़काया. उन्होंने खुले तौर बीजेपी आरएसएस के नेताओं पर इसका आरोप लगाया. मध्य प्रदेश के चंबल क्षेत्र में सबसे ज्यादा हिंसक घटनाए हुई. अकेले भिंड-मुरैना जिले में 10 लोगों की मौत हुई. जबकी, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र ऐसे इलाके रहे जहां से हिंसा की कई तस्वीरें सामने आई. बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस प्रशासन द्वारा दलितों पर एकतरफा और बर्बर कार्रवाई देखने को मिली. हिंसा फैलाने के आरोप में हजारों दलितों पर झूठे मुकदमने दर्ज किए गए. कई अब भी इस आरोप में जेल में बंद है.

SC/ST Act: दलितों की सुरक्षा के लिए क्या कानून है?

देश में दलितों की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 मौजूद है. इस कानून के तहत एससी-एसटी वर्ग के लोगों खिलाफ किए गए अपराधों, अत्याचारों का निपटारा किया जाता है. इस कानून के तहत न सिर्फ अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने, दंड देने बल्की दलित पीड़ितों को राहत और पुनर्वास देने का भी प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही ऐसे मामलों जल्द निपटारा हो सके, इसके लिए विशेष अदालतों का गठन भी किया जाता है.वहीं अस्पृश्यता यानी छुआछूत जैसी सामाजिक कुप्रथा पर पर रोक लगाने के लिए अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 बनाया गया. इसे बाद में बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कर दिया गया है. इसमें छुआछूत के प्रयोग, उसे बढ़ावा देने वाले मामलों में दंड का प्रावधान है. मीडिया सामाजितक संगठन और नेताओं के चलते दलितों के खिलाफ होने वाले कुछ एक मामले सामने आ जाते हैं. जिसके चलते कार्रवाई जल्दी हो जाती है लेकिन अधिकतर मामले ऐसे हैं जो दबकर रह जाते हैं.

दलितों के खिलाफ हिंसा और क्या कहता है NCRB का डेटा?

NCRB डेटा के अनुसार वर्ष 2014 के बाद दलितों के खिलाफ हिंसा और अत्याचार तेजी से बढ़े हैं। वर्ष 2016 के अंत तक दलितों पर अत्याचार के 90 फीसदी मामलों में ट्रायल शुरू ही नहीं हुआ. दलित संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ये फैसला सच में स्तब्ध कर देने वाला है क्योंकि इस तरह के मामलों में दोषी साबित होने का आंकड़ा साल दर साल घटा ही है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में दलितों द्वारा दर्ज 10 केस में कुछेक मामले ही गलत साबित हुए हैं।

मीडिया में दलितों पर अत्याचार की कुछ प्रमुख खबरें कौन सी हैं?

  • रोहित वेमुला की आत्महत्या की खबर जनवरी 2016 में अखबारों की सुर्खियां बनी. इसके खिलाफ देश के विभिन्न स्थानों पर विरोध-प्रदर्शन हुए.
  • जुलाई 2016 में गुजरात के उना में गौरक्षकों द्वारा दलित युवाओं की पिटाई का विडियो वायरल हुआ. इस घटना से पूरा देश स्तब्ध हो था. इस घटना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों का नेतृत्व दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने किया. बाद में मेवाणी ने 2017 में गुजरात विधानसभा का चुनाव बडगाम से लड़ा और विधायक बने.
  • मई 2017 में भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद गिरफ्तार. NSA लगाया गया. पुलिस ने चंद्रशेखर पर यूपी के सहारनपुर में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया. हाई कोर्ट से चंद्रशेखर को जमानत मिली.
  • जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में दलित उत्सव के दौरान हिंसा. एक युवक की मौत.
  • 2 अप्रैल 2018, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दलितों के आह्वान पर भारत बंद, देश भर में हिंसक घटनाएं.
    • वर्ष 2021 में नई दिल्ली स्थित आईआईएमसी के पूर्व छात्र और युवा नेता विकास दयाल ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख दलितों पर लगे झूठे मुकदमे खत्म करने की मांग की.

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