26 नवंबर को पूरा देश संविधान दिवस(Constitution Day) के तौर पर मनाता है। हमारे संविधान में नागरिकों के हितों के लिए कई प्रावधान हैं। एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते संविधान में दिए गए इन प्रावधानों को जानना हमारे लिए आवश्यक है। आरक्षण(Reservation) एक ऐसा ही प्रावधान है जो हमेशा एक बड़ी बहस का मुद्दा रहा है। संविधान में आरक्षण(Reservation) की आवश्यकता पर इसलिए ज़ोर दिया गया है ताकि शिक्षा, रोजगार ,सरकारी सेवाओं में ना के बराबर प्रतिनिधित्व रखने वाले समाज के अति पिछड़े ,अल्पसंख्यक और गरीब तबके को मुख्यधारा में लाया जा सके। इसका उद्देश्य संविधान में दिए गए समानता के वादे को पूरा करना भी है। इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 सरकार को यह अधिकार देते हैं कि सार्वजनिक रुप से किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रुप से पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के लिए कोटा अर्थात आरक्षण सुनिश्चित करें।
Constitution Day: Necessity of Reservation in Today’s India
आरक्षण(Reservation) मुख्यत समाज़ के 3 वर्गों अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्गOBC) को दिया जाता है। ये ऐसे वर्ग हैं जिन्हें अतीत और वर्तमान दोनों में सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है संविधान में आरक्षण मूल रुप से एससी और एसटी को ही दिया गया था लेकिन 1987 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद ओबीसी को भी आरक्षण में शामिल कर दिया गया। आर्थिक रुप से पिछड़े और ओबीसी को आय के आधार पर जबकि एससी और एसटी के कोई आय सीमा निर्धारित नही है।
Constitution Day: भारतीय संविधान में क्या हैं मौलिक अधिकार(Fundamental Rights) और उनका महत्त्व?
हजारों वर्षों से हमारे देश में अधिकांश आबादी को जन्म के आधार पर न केवल शिक्षा बल्कि नौकरी से भी वंचित रखा जाता था। जी हां, भारत में ऐसी कई जातियां है जिनके आधार पर लोगों को नौकरी और शिक्षा से दूर रखा जाता था और आरक्षण(Reservation) अपनी जाति और जन्म के आधार पर दलितों और पिछड़ों को शिक्षा और रोजगार देने का एक तंत्र है।
ग्रामीण भारत में दलितों और पिछड़ो से उनके हालात और भेद-भाव के बारे में पूछने पर शायद ही आपको कुछ अच्छा सुनने को मिल जाए। तथाकथित उच्च वर्गों द्वारा अलग अलग व्यवहार किया जाता है। यह जानकर बहुत पीड़ा होती है कि आज हम जब विकसित देशों के कतार में खड़े होने वाले है तब हमारे लोगों की सोच ऐसी हो रही है।
भारतीय संविधान के बारे में 10 अज्ञात तथ्य
Reservation: आज के भारत में भेदभाव
आज भी गांवों में एससी और एसटी को चाय डिस्पोजल की गिलास में दी जाती है , बैठने के लिए अलग बेंच दी जाती है लेकिन क्या वे किसी से उसकी जाति का प्रमाण मांगते है। दरअसल होता ये है कि वो व्यक्ति जहां पैदा होता है या रहता है वो स्थान पहले से ही जाति के आधार पर विभाजित होता है ब्राह्मणों के लिए विशेष बस्तियां अग्रहारों, वहीं दलितों के लिए यहूदी बस्ती बाकी अन्य हिन्दू जातियों के लिए। यहां तक गलियों सड़कों के नाम भी जातियों के आधार पर किए जाते है। आये दिन दलितों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आती रहती है एक दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने के लिए तथाकथित उच्च वर्ग के लोगों के द्वारा मारा पीटा गया, 2015 में यह दावा किया गया था कि एक खाप पंचायत ने 2 दलित बहनों के बलात्कार आदेश इसलिए दिया क्योंकि उनका भाई गांव की एक विवाहित जाट लड़की के साथ रहता था।
19-year-old Dalit teen, gang-raped in UP’s Hathras, passes away
दलितों से भेदभाव केवल शिक्षा और नौकरी में ही नहीं होता है बल्कि पोषण और स्वास्थ सेवाओं में भी देखने को मिलता है। 2014 में एक्शनएड ने वित्त पोषित दलितों का एक सर्वे किया और पाया कि स्वास्थ कर्मी 65 प्रतिशत दलित बस्तियों में गए ही नही। 47 प्रतिशत दलितों को सरकारी राशन की दुकान में जाने ही नही दिया जाता है। हरियाणा में दलित समाज के 49 प्रतिशत 5 साल से कम उम्र के बच्चे कुपोषित थे। और 2015 में 80 प्रतिशत बच्चे एनिमीया(Anemia) के शिकार थे। मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 88 प्रतिशत दलित बच्चे भेदभाव का शिकार हुए हैं और 79 प्रतिशत बच्चे मिड-डे-मिल में भोजन नही मिलता। भारत में विभिन्न विभागों और शिक्षण संस्थानों में उच्च जाति के अधिकारियों और छात्रों द्वारा दलित प्रोफेसरों और अधिकारियों को प्रताड़ित करने की घटनाएं सामने आती रहती है ।
उत्तर प्रदेश:तीन दलित बच्चियों पर फेंका एसिड, एक की हालत गंभीर
अब एक सवाल आता है कि क्या एससी एसटी को सिविल सेवा, पुलिस, न्यायिक सेवा में प्रतिनिधित्व का मौका मिलता है, क्या समाज से जाति भेदभाव पूरी तरह मिट गया है? तो इन सवालों का एक बड़ा सा ज़वाब है नही। एक दशक बाद दलित जज की नियुक्ति और आरक्षण पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के बेंच में दलित जज की अनुपस्थिति संपन्नता और प्रतिनिधित्व का दुख बता रही है किस तरह हमारे देश के लगभग सभी संस्थान जातियों में बंटे हुए हैं और एक बेहद डरावनी जाति व्यवस्था का प्रमाण देते हैं।
यह लेख ग्राउंड रिपोर्ट के संस्थापक ललित कुमार सिंह द्वारा लिखा गया है।
You can connect with Ground Report on Facebook, Twitter and Whatsapp, and mail us at [email protected] to send us your suggestions and writeups.