आज दुनिया भर में विश्व दूध दिवस (world milk day) मनाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) द्वारा इसकी शुरुआत साल 2001 में की गई थी. इसका उद्देश्य दूध को ग्लोबल फ़ूड के रूप में महत्व दिलवाना और डेयरी का हमारे जीवन में महत्त्व को बढ़ाना है. इस बार इस दिन की ख़ास थीम के तहत डेयरी द्वार हमारे घरों में पोषण पहुंचाने के प्रयास को रेखांकित किया जा रहा है. मगर कुपोषण भारत सहित दुनिया भर के लिए एक बड़ा मसला है. दूध कैल्शियम, विटामिन बी2 और प्रोटीन प्रदान करता है. ऐसे में सवाल है कि क्या दूध इस कुपोषण से निजात दिला सकता है?
पोषण के मामले में विश्व की स्थिति
एफ़एओ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 3 बिलियन से भी ज़्यादा लोग एक पोषण युक्त आहार से संपन्न थाली नहीं ख़रीद सकते. आम तौर पर दुनिया भर में पोषण का सीधा अर्थ केवल कैलोरी से लगा लिया जाता है. यानि जो व्यक्ति ज़्यादा कैलोरी खा रहा है वह सही पोषण ले रहा है. एफ़एओ द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार दुनिया के ज़्यादातर लोग इस तरह के खाने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं जुटा पाते हैं. इसी प्रकार विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2022 में दुनिया भर के 390 मिलियन लोग पोषण के पैमाने के बरक्स कम वज़न वाले हैं.
क्या भारत में दूध कुपोषण से निजात दिला सकता है?
भारत में भी करीब 74.1 प्रतिशत लोग हर रोज़ पर्याप्त पौष्टिक आहार कमा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे में दूध को पोषण की इस रिक्तता को पूर्ण करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. मगर बढ़ती महंगाई के चलते हर व्यक्ति तक दूध का सही मात्रा में पहुँचना एक अलग चुनौती है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि भारत अपनी ज़रूरत को पूरा करने लायक दूध उत्पादित नहीं कर पा रहा है. हम अब भी दूध की सम्पूर्ण आपूर्ति के लिए आयात पर निर्भर हैं.
हालाँकि मध्यप्रदेश राज्य सहकारी डेयरी संघ ने हाल ही में कहा कि प्रदेश में 30 प्रतिशत अतिरिक्त दूध उत्पादित हो रहा है. संघ ने इसी दौरान दूध को प्रदेश के मिड डे मील में शामिल करने की मांग भी रखी थी. देश भर में इसे मिड डे मील में शामिल करने की मांग होती भी रहती है. मगर देश में दूध की उपलब्धता को देखते हुए मिड डे मील में इसे शामिल करना कठिन दिखाई देता है.
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