मध्यप्रदेश सहित देश भर में रबी की फसलों के लिए बोवनी शुरू हो गई है। इसके साथ ही यूरिया-डीएपी जैसे रासायनिक उर्वरकों की अनुपलब्धता का मुद्दा फिर उठ रहा है। गुरूवार, 5 दिसंबर को मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री ऐंदल सिंह कंषाना ने एक विवादित बयान देते हुए कहा कि खाद की उपलब्धता उनके विभाग का मुद्दा नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में खाद की कमी नहीं है और सरकार किसानों को इसे मुहैया करवाने के लिए उचित प्रबंध कर रही है।
मगर सीहोर ज़िला के थूना गांव की सहकारी समिति के बाहर लाइन में खड़े हुए मनोहर पटेल परेशान नजर आते हैं। डीएपी के लिए अपनी बारी का इन्तेजार करते हुए वह कहते हैं,
“अगर हमें 10 दिन के अन्दर डीएपी नहीं मिलती है तो पूरी फ़सल बर्बाद हो जाएगी, खाद डालने का समय निकल रहा है।”
वह हर सीजन में होने वाली खाद की समस्या के बारे में कहते हैं कि समय पर खाद के न मिलने का प्रमुख कारण सोसाइटी में खाद के स्टॉक में कमी होना है। इस बात पर खजूरी गांव के छतरसिंह मेवाड़ा भी सहमत हैं। वह कहते हैं,
“खाद अभी सोसाइटी में आई नहीं है। मैं पहले गांव का सरपंच रहा हूं इसलिए मिल जाती है, बाकियों को नहीं मिल रही।”
2023-24 में देश में सबसे ज़्यादा यूरिया और डीएपी का इस्तेमाल करने के मामले में मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर था। इस दौरान देश में कुल 253.71 लाख मीट्रिक टन (LMT) यूरिया और 93.74 एलएमटी डीएपी का उपयोग किया गया। जबकि यहां क्रमशः 27.36 एलएमटी (10.78%) और 14.33 एलएमटी (15.28%) यूरिया और डीएपी का उपयोग हुआ।
पहले समझते हैं कि किसानों को खाद कैसे मिलती है?
छतरपुर ज़िले की एक सहकारी समिति में खाद के वितरण का काम देखने वाले बबलू चौहान बताते हैं,
“ज़िला प्रशासन आगामी सीजन से पहले ही बोवनी का एक अनुमान लगाकर राज्य सरकार के पास भेजता है। इन आंकड़ों की मदद से राज्य सरकारें केंद्र सरकार को खाद की ‘रिक्वायरमेंट’ भेजती हैं। इसके अनुसार ही केंद्र सरकार खाद आवंटित करती है।”
यह खाद सबसे पहले राज्यों के डीपो में आती है। यहां से रेल के माध्यम से माल ज़िले के तय रेलवे स्टेशन में पहुंचता है। रेल्वे स्टेशन में पहुंचे हुए कुल खाद को ज़िला प्रशासन सहकारी समिति (सोसाइटी) और लाइसेंस लिए हुए प्राइवेट वेंडर्स को भेजता है।
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं?
बुधवार 4 दिसंबर को केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि वैश्विक अस्थिरताओं के चलते देश में रासायनिक उर्वरकों की उपलब्धता प्रभावित हुई है। उन्होंने साथ ही कहा कि केंद्र सरकार ने उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित की है।
लोकसभा में 29 नवम्बर को एक सवाल का जवाब देते हुए राज्य मंत्री पटेल ने मौजूदा रबी सीजन 2024-25 में रासायनिक उर्वरकों की उपलब्धता से सम्बंधित आंकड़े पेश किए। इनके अनुसार मध्य प्रदेश को आवश्यकता से कम उर्वरक मिला है।
आंकड़ों के अनुसार इस सीजन में 20 लाख मीट्रिक टन (LMT) यूरिया की ज़रूरत थी। जबकि सरकार द्वारा 12.96 एलएमटी यूरिया ही उपलब्ध करवाया गया। हालांकि इसमें से 8.64 एलएमटी यूरिया की ही ख़रीद हुई है।
वहीं प्रदेश में 8 एलएमटी डीएपी की आवश्यकता थी। जबकि केवल 4.43 एलएमटी डीएपी ही उपलब्ध हो सका। इसके बाद भी 3.32 एलएमटी डीएपी की बिक्री ही दर्ज की गई।
उर्वरकों की उपलब्धता और बिक्री के बीच के अंतर का कारण बताते हुए प्राइमरी एग्रीकल्चर कोपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी (PACS) के राष्ट्रिय अध्यक्ष अशोक मिश्रा कहते हैं,
“अभी खाद लेते हुए किसानों को अंगूठा लगाकर बायोमीट्रिक ऑथेंटीफिकेशन देना होता है। इसमें गड़बड़ी के चलते पूरी बिक्री दर्ज नहीं होती।”
मिश्रा बताते हैं कि बहुत बार ऑथेंटीफिकेशन के दौरान अंगूठा लगाने पर मशीन फिंगर प्रिंट स्कैन नहीं करती है जिससे डाटा इंट्री नहीं हो पाती।
जानबूझकर रोकी जा रही आपूर्ति?
सीहोर के थूना कलां के सोसाइटी संचालक रामनारायण बताते हैं कि उनके गांव में डीएपी की सबसे ज्यादा किल्लत है। वह कहते हैं,
“3 दिन पहले गाड़ी आई थी, किसानों को दो-दो बोरी मिली है। अब अगली गाड़ी कब आएगी नहीं पता।”
इसी तरह झऱखेड़ा गांव की सोसाईटी के संचालक गणेश उपाध्याय ने 25 दिन पहले डीएपी और यूरिया का ऑर्डर दिया था मगर ग्राउंड रिपोर्ट ने जिस दिन उनके गांव का दौरा किया तब तक डीएपी और यूरिया नहीं पहुंचा था।
खरगोन के किसान संदीप यादव कहते हैं कि सोसाइटी में जानबूझकर खाद की आपूर्ति रोकी जाती है ताकि कालाबाजारी को बढ़ावा दिया जा सके। वह कहते हैं कि जब सोसाइटी में खाद नहीं होती है तब भी अनाधिकृत व्यापारियों के पास यह उपलब्ध होता है।
यादव बताते हैं,
“बोवनी लेट होने से फ़सल प्रभावित होती है इसलिए किसान कालाबाजारी का शिकार हो जाता है।”
वह इसे समझाते हुए कहते हैं कि सोसाइटी वाले जब खाद का ऑर्डर लगाते हैं तो ऊपर से इसे भेजने में देरी की जाती है। ऐसे में बोवनी में देरी को देखते हुए किसान प्राइवेट व्यापारियों से खाद खरीदता है। यह व्यापारी अनाधिकृत रूप से महंगे दाम पर खाद बेचते हैं। इस तरह खाद के स्टॉक में होने वाली देरी कालाबाजारी को बढ़ावा देती है।
सब्सिडी पर पैसा खर्चती सरकार
किसानों को कम दरों पर उर्वरक उपलब्ध करवाने के लिए 2010 में न्यूट्रीयंट बेस्ड सब्सिडी (NBS) स्कीम अपनाई गई थी। 2023-24 के अलावा बीते पाँच सालों में उर्वरकों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का बजट बढ़ा है। 2019-20 में यह कुल बजट का 0.89% था। 2022-23 में यह बढ़कर 2.17% हो गया।
मगर भोपाल जिले के खजूरी सड़क गांव के जितेंद्र पटेल को डीएपी और यूरिया नहीं मिल पा रहा है। वह बीते 3 दिन से सोसाइटी के चक्कर काट रहे हैं। कहते हैं,
“मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं अपनी खेती का काम देखूं या सोसाईटी के चक्कर लगाउं। सोसाईटी वाले कहते हैं आज आएगा कल आएगा, मजबूरन हमें प्राईवेट दुकानों से खरीदना पड़ेगा।”
सरकार खाद की आपूर्ति के दावे भले ही कर रही हो मगर ज़मीन पर हकीकत यही है कि किसानों को खाद नहीं मिल रहा है। केंद्र सरकार वैश्विक अस्थिरता में भी आपूर्ति सुनिश्चित करने के दावों के साथ अपनी पीठ कितनी भी थपथापा ले मगर असल बात यही है कि आवश्यकता के अनुरूप खाद नहीं भेजी गई है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सितम्बर में ही कहा था कि रासायनिक खाद की मांग बढ़ने पर कालाबाजारी का ख़तरा भी बढ़ जाता है। उस दौरान उन्होंने इसे रोकने के लिए प्रशासन को आदेश भी दिए थे। मगर हमसे बातचीत करते हुए किसान बताते हैं कि कालाबाजारी की जा रही है। उनसे बात करते हुए यह स्पष्ट होता है कि इसका प्रमुख कारण खाद की आपूर्ति में हो रही देरी है।
ऐसे में सरकार भले ही फर्टेलाइजर के लिए अपना बजट बढ़ा ले मगर सच यही है कि किसान के हाथ अब भी खाली हैं।
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