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गांधी सागर से तेंदुओं का स्‍थानांतरण: चीतों को बसाने की तैयारी या जंगल के संतुलन को खतरा!

गांधी सागर अभयारण्य में चीतों को बसाने के लिए तेंदुओं का स्थानांतरण किया जा रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञ इसे पारिस्थितिक संतुलन के लिए खतरा मानते हैं। उनके अनुसार तेंदुओं को हटाने के बजाए प्रशासन को शिकार आधार बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।

By Sanavver Shafi
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Leopards kheoni gandhi sagar wildlife senctury

चीतों के लिए नए घर को शिकारी मुक्‍त-क्षेत्र बनाने के लिए अभयारण्‍य में मौजूद तेंदुओं को दूसरे स्‍थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। Photograph: (Pallav Jain/Ground Report)

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मध्‍य प्रदेश के मंदसौर (Mandsaur) जिले में स्थित गांधी सागर वन्‍यजीव अभयारण्‍य (जीएसडब्ल्यू) को चीतों का दूसरा घर बनाया जा रहा है। यह काम चीता परियोजना के तहत किया जा रहा है। चीतों के लिए नए घर को शिकारी मुक्‍त-क्षेत्र बनाने के लिए अभयारण्‍य में मौजूद तेंदुओं को दूसरे स्‍थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। अभी तक अभयारण्‍य से 17 तेंदुओं को अलग-अलग (खंडवा का ओंकारेश्वर और देवास का खिवनी वन्यजीव अभयारण्य) क्षेत्रों में स्‍थानांतरित किया जा चुका है।

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वन विभाग का यह फैसला उस समय विवादों में आ गया, जब स्‍थानांतरण के दो से चार महीने के अंदर ही तीन तेंदुओं की क्षेत्रीय संघर्ष में मृत्‍यु हो गई। इसके बाद प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) वन्यजीव एल. कृष्णमूर्ति ने डीएफओ से स्‍पष्‍टीकरण मांगा है। डीएफओ को एक सप्‍ताह के भीतर जवाब देना होगा। यह नोटिस नितिन सिंघवी के शिकायत के बाद जारी किया गया है। 

हालांकि गांधी सागर में चीतों के लिए 150 हेक्‍टेयर का बाड़ा और 64 वर्ग किलोमीटर का शिकारी-मुक्‍त क्षेत्र तैयार किया जा रहा है। विभाग का मानना है कि तेंदुओं को हटाकर और सैकड़ों शिकार जानवरों को लाकर चीतों के लिए पर्याप्‍त भोजन सुनिश्चित किया जा सकता है।

परंतु, वन्‍य जीव विशेषज्ञों ने इस कदम की आलोचना की है। उनका कहना है कि इससे जंगल के पारिस्थितिक संतुलन पर असर पड़ेगा, जबकि पर्याप्‍त शिकार उपलब्‍ध होने पर चीते और तेंदुए सह-अस्तित्‍व में रह सकते हैं। इसकी पुष्टि भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान (WII) द्वारा तैयार की गई चीता एक्‍शन प्‍लान रिपोर्ट से भी होती है। 

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पर्यावरण कार्यकर्ता की शिकायत

छत्तीसगढ़ के पर्यावरण कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और मध्य प्रदेश वन विभाग को पत्र लिखकर इस स्थानांतरण की आलोचना की। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि तेंदुओं के स्थानांतरण को रोका जाना चाहिए। अपने पत्र में उन्होंने 3 बिंदु मुख्यरूप से रखे हैं:

  • तेंदुओं को जीएसडब्ल्यू में चीता परियोजना के लिए जगह बनाने के लिए स्थानांतरित किया गया, लेकिन यह कदम तेंदुओं के कल्याण के खिलाफ है।

  • केंद्र सरकार के 'मानव-तेंदुआ संघर्ष प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश (2011)' में साफ कहा गया है कि तेंदुए मजबूत घरेलू प्रवृत्ति (होमिंग इंस्टिंक्ट) रखते हैं। इसलिए, उन्हें उनके प्राकृतिक आवास के आसपास ही छोड़ा जाना चाहिए, यानी उनकी घरेलू सीमा के भीतर। दिशा-निर्देशों के मुताबिक, पकड़े गए तेंदुओं को पकड़ने की जगह से 10 किलोमीटर के दायरे में छोड़ना चाहिए।

  • चीतों को आयात करने की मूल योजना में यह कभी नहीं कहा गया था कि इसके लिए देशी बिल्लियों (तेंदुओं) को विस्थापित किया जाएगा या उन्हें नुकसान पहुंचेगा।

सिंघवी का आरोप है कि इस स्थानांतरण से तेंदुओं की जान खतरे में पड़ रही है, जिसके सबूत के तौर पर तीन तेंदुओं की मृत्यु को देखा जा सकता है।

तेंदुए की अनुपस्थिति से वनस्‍पति पर बढ़ेगा दवाब 

वन्यजीव विशेषज्ञ अजय दुबे भी इस कदम को जंगल के पारिस्थितिक संतुलन के लिए हानिकारक मानते हैं। वे कहते हैं,

"चीते और तेंदुए पर्याप्त शिकार आधार होने पर सहअस्तित्व कर सकते हैं। तेंदुओं को हटाने के बजाय, शिकार की आबादी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।"

वन्‍यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि तेंदुए जंगल में शाकाहारी जानवरों की संख्या को नियंत्रित करते हैं और उनकी बड़ी संख्या में अनुपस्थिति से वनस्पति पर दबाव बढ़ सकता है। उनके अनुसार यह कदम संरक्षण के सिद्धांतों के खिलाफ है।

पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान कहते हैं कि तेंदुए जैसे शीर्ष शिकारी को हटाने से खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। यदि शाकाहारी जानवरों की संख्या अनियंत्रित बढ़ती है, तो वनस्पति को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे जैव विविधता पर असर पड़ सकता है। 

वे चिंता जाहिर करते हुए आगे कहते हैं,

''चीतों की स्थापना के लिए तेंदुओं का बलिदान लंबे समय में जंगल के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है।'' 

चंबल नदी तैरकर पार करके लौटा अपने मूल क्षेत्र में 

मंदसौर डीएफओ संजय रायखेड़े से बात करते हुए एक चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि एक स्थानांतरित तेंदुआ चंबल नदी को तैरकर पार करके अपने मूल क्षेत्र में लौट आया। इसके बाद वन विभाग ने तेंदुओं को 350-400 किलोमीटर दूर, जैसे खिवनी और ओंकारेश्वर, भेजने का निर्णय लिया ताकि वे वापस न लौट सकें। यह घटना तेंदुओं की क्षेत्रीय वफादारी और स्थानांतरण की जटिलताओं को दर्शाती है।

एपीसीसीएफ एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि चीता परियोजना के तहत सरकार केन्या, दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना से चीतों को लाने की तैयारी कर रही है। कुनो और गांधी सागर के बीच 2,500 वर्ग किलोमीटर का गलियारा विकसित करने की योजना है, ताकि अगले 25 वर्षों में चीतों की स्थायी आबादी स्थापित की जा सके। यह एक महत्वाकांक्षी कदम है, जिसे सावधानीपूर्वक लागू करना होगा।

गांधी सागर से तेंदुओं का स्थानांतरण चीतों के लिए जगह बनाने की कोशिश है, लेकिन तीन तेंदुओं की मृत्यु और विशेषज्ञों की आलोचना इसे विवादास्पद बनाती है। वन विभाग शिकार आधार बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, परंतु तेंदुओं को हटाने से जंगल का संतुलन बिगड़ने की चिंता बनी हुई है। इस परियोजना की सफलता के लिए संतुलित दृष्टिकोण और निरंतर निगरानी जरूरी है, ताकि चीतों के साथ-साथ अन्‍य वन्यजीवों का संरक्षण भी सुनिश्चित हो सके।

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