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साल 2019 में देवास जिले में स्थित खिवनी अभ्यारण में लगे नाईट विशन कैमरा में पहली बार 5 टाईगर्स कैप्चर किये गए थे, जिसमें दो एडल्ट फीमेल एक मेल और 2 कब्स को देखा गया था। तभी से खिवनी अभ्यारण को राज्य की अन्य वाईल्डलाईफ सैंक्चुरीज़ की तरह विकसित करने और यहां पर्यटन बढ़ाने की बात होने लगी।
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हाल ही में 5 फरवरी 2023 को ग्राउंड रिपोर्ट की टीम जब खिवनी गई तो हमें भी टाईगर दिखाई दिया।
खिवनी वाईल्ड लाईफ सैंक्चुरी के सुप्रीटेंडेंट राजेश मंडावलिया ने ग्राउंड रिपोर्ट को बताया कि “मालवा के पठार और विंध्याचल पर्वत मालाओ के बीच बसा यह अभ्यारण मध्यप्रदेश के देवास एवं सीहोर जिले में 134.778 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।”
“खिवनी अभ्यारण बहुत ही बायोडायवर्स है, यहां पेड़ों की 69, हर्ब्स और श्रब्स की 25, मैमल्स की 24, बर्ड्स की 21, रेप्टाईल्स की 5 स्पीशीज़ पाई जाती हैं।”
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खिवनी अभ्यारण सतपुड़ा टाईगर रिज़र्व से मेलघाट टाईगर रिज़र्व के बीच कॉरिडोर का काम भी करता है।
अगर यहां के जंगलों की बात करें तो दक्षिणी उष्ण-कटीबंधीय शुष्क पर्णपाती सागौन के वृक्ष यहां मुख्यतः पाए जाते हैं।
नर्मदा की सहायक नदी जामनेर और बालगंगा का उद्गम यहीं से होता है। यही नदी वन्यजीवों के लिए पानी का स्त्रोत है, गर्मियों में पानी की कमी हो जाती है, वन्यजीवों के लिए वन विभाग ने छोटे छोटे तालाब जंगल के अंदर बनाए हैं, जिसमें सोलर पंप के ज़रिए पानी भरने की व्यवस्था की गई है।
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अभ्यारण के अंदर ही शिव का प्रचीन मंदिर है, जहां लोग वार-त्यौहार पूजा अर्चना करने आते हैं।
टूरिज़म
ईको टूरिज़म के तहत जंगल सफारी और ठहरने के लिए कैंप्स और कॉटेज की व्यवस्था की गई है। जिसकी ऑनलाईन बुकिंग मध्य प्रदेश के इको टूरिज़्म डेवलपमेंट बोर्ड की वेबसाईट से की जा सकती है। हालांकि इस अभ्यारण के बारे में लोग ज्यादा जानते नहीं हैं, केवल वीकेंड्स पर ही टूरिस्ट्स यहां आतें हैं, उनकी भी संख्या ज्यादा नहीं होती।
खिवनी अभ्यारण में वन संरक्षण के लिए भी संसाधनों की भारी कमी है, यहां वन्य जीवों पर नज़र रखने के लिए कैमराज़ तो इंस्टॉल किए गए हैं लेकिन उन्हें ट्रैक करने के लिए जीपीएस जैसी तकनीक की व्यवस्था नही हैं।
यहां प्रिडेटर एनीमल्स के लिए प्रे बेस कम हो रहा है। इसे मेंटेंन करना बेहद ज़रुरी है। अप्रेैल 2022 में यहां भोपाल के वन विहार से 45 स्पॉटेड डीयर्स शिफ्ट किए गए थे।
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पेड़ों की अवैध कटाई
खिवनी अभ्यारण के सुप्रीटेंडेंट राजेश मंडावलिया बताते हैं कि यहां जंगलों की अवैध कटाई सबसे बड़ी चुनौती है, जंगल पूरी तरह से खुला हुआ है, सुरक्षा के लिए स्टाफ की कमी है, ऐसे में पेड़ काटने वालों को रोक पाना मुश्किल है।
जंगल सफारी के दौरान लगातार घट रहे वनक्षेत्र को देखा जा सकता है।
इको सेंसिटिव ज़ोन को लेकर विवाद
साल 2018 में एक अफवाह फैली कि खिवनी अभ्यारण के आसपास के 40 गांवों को खाली कराया जाएगा। इस बात का आधार नैशनल वाईल्ड लाईफ एक्शन प्लान 2002-16 था जिसके तहत सभी प्रोटेक्टेड एरिया के 10 किलोमीटर के एरिया में इको सेंसिटिव ज़ोन बनाया जाना था। खिवनी अभ्यारण के 10 किलोमीटर की पेरिफेरी में 40 गांवों की बसाहट थी। यह मान लिया गया कि इन सभी 40 गांवों को विस्थापित होना होगा।
जब इको सेंसिटिव ज़ाोन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 10 किलोमीटर की बाध्यता हटा दी गई और परिस्थिती अनुसार 1-10 किलोमीटर के दायरे में इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने का आदेश दिया, जिसके बाद खिवनी के 2 किलोमीटर पेरिफेरी में ईको सेंसिटिव ज़ोन बना। बार बार बदले इको सेंसिटिव ज़ोन के दायरे ने ही अफवाह को जन्म दिया।
यहां से केवल एक गांव खिवनी को ही विस्थापित किया गया है, क्योंकि प्रोटेक्टेड एरिया होने की वजह से खिवनी के लोगों के लिए विकास के संसाधन यहां उपलब्ध नहीं थे। यहां से विस्थापित हुए लोगों का पास के ही ओंकार गांव में पुनर्वास करवाया गया था। लेकिन अब ज्यादातर लोग पुनर्वास में मिली ज़मीन छोड़कर आसपास के कस्बों में जाकर बस चुकी हैं। क्योंकि ओंकार गांव की ज़मीन खेती करने योग्य नहीं थी।
खिवनी अभ्यारण को बांधवगढ़ की तरह डेवलप करने का प्लान है, लेकिन उससे पहले यहां वन्य जीव और फॉरेस्ट के कंज़रवेशन के काम पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
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