मेघालय (Meghalaya) राज्य में कोयला खनन से संबंधित मुद्दों की निगरानी के लिए मेघालय हाईकोर्ट ने, हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति ब्रोजेंद्र प्रसाद कटेकी की अध्यक्षता में एक सिंगल मेंबर पैनल गठित किया था। इस पैनल ने अपनी 22वीं अंतरिम रिपोर्ट पिछले सप्ताह हाईकोर्ट में पेश की।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि, पिछले 10 साल से प्रतिबंधित रैट-होल माइनिंग (Rat Hole Mining) अभी भी राज्य में चल रही है। राज्य ने पर्यावरण की बहाली के लिए आवंटित धनराशि और संसाधनों का अब तक पर्याप्त उपयोग नहीं किया है। और सबसे गंभीर बात कि इससे खदानों के इर्द गिर्द बसी आबादी को गंभीर समस्याएं भी झेलनी पड़ रहीं हैं। आइये जानते हैं क्या है ये पूरा मामला।
न्यायलय के आदेश की अनदेखी से परेशान आबादी
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मेघालय के पूर्वी जैंतिया हिल्स क्षेत्र में 26,000 कोयला खदानें चालू हैं, जबकि इन पर 10 साले पहले ही प्रतिबंध लग चुका है। इसके कारण मनुष्यों के साथ-साथ पशुधन का जीवन भी प्रभावित हो रहा है।
इस रिपोर्ट में इन खदानों के पास रहने वाली आबादी दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यहां की आबादी को अपर्याप्त तरीके से बंद गड्ढों में से निकल रहे एसिड माइन ड्रेनेज के प्रतिकूल प्रभावों को सहन करना पड़ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति लापरवाह और ढुलमुल रवैय्या
इस रिपोर्ट में कोयले के उपयोग को लेकर विसंगतियां भी पाई गईं हैं। रिपोर्ट बताती है 2 कोक संयंत्रों के रॉयल्टी और सेस का 2.24 करोड़ रूपये का भुगतान अभी तक शेष है। इसके अलावा 14 लाख मीट्रिक टन निकाला गया कोयला अभी तक अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचाया गया है। इस कोयले के ठिकाने तक न पहुंच पाने के कारण पैनल का सर्वेक्षण बाधित हो रहा है। पैनल, क्षेत्र की खनन गतिविधियों का ड्रोन सर्वेक्षण करना चाहता है जिसका उद्देश्य अवैध रूप से किये गए कोयला खनन की पहचान करना है।
इसके अलावा मेघालय पर्यावरण संरक्षण और पुनर्स्थापन कोष (MEPRF) को आवंटित ₹400 करोड़ की बड़ी राशि, और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की ₹100 करोड़ की बड़ी राशि का भी उपयोग अब तक नहीं हुआ है। रिपोर्ट ने इन संसाधनों के पर्यावरण के संरक्षण में उचित उपयोग की सिफारिश भी की है।
क्या है रैट-होल माइनिंग
शब्द "रैट-होल माइनिंग" जमीन में खोदे गए संकीर्ण गड्ढों को संदर्भित करता है, जो आम तौर पर इतना बड़ा होता है कि एक व्यक्ति उसमें उतर सके और कोयला निकाल सके। कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का उपयोग करके मैन्युअल रूप से निकाला जाता है।
रैट-होल खनन काफी हद तक अनियमित है, और खनन मजदूरों को उचित वेंटिलेशन, सुरक्षा गियर और किसी सपोर्ट के बिना काम करना पड़ता है। गड्ढों की संकरी और लंबी संरचना के कारण उनके ढहने का खतरा रहता है, जिससे दुर्घटनाएं और मौतें होती हैं। इन्ही कारणों को ध्यान में रखकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया, हालांकि यह प्रथा अब भी जारी है।
क्षेत्र में कोयले को लेकर पैनल का ऑडिट जारी
पैनल ने न्यायालय को बताया है कि, विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं को लेकर ऑडिट एक ऑडिट भी कर रहा है। इस ऑडिट में कोक ओवन, फेरोलॉय और सीमेंट कारखानों के कैप्टिव बिजली संयंत्रों में कोयले के उपयोग को लेकर ऑब्ज़र्वेशन शामिल होंगे।
इस ऑडिट का उद्देश्य रेगुलेटरी गाइडलाइंस का अनुपालन और संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित करना है। पैनल ने बताया कि इस ऑडिट का तीन सप्ताह के भीतर समाप्त होने की उम्मीद है। ऑडिट के बाद इस पूरे प्रकरण की तस्वीर और साफ हो सकती है।
हालांकि यह मामला अभी न्यायलय के संज्ञान में है, लेकिन एनजीटी के आदेश के 10 साल बाद तक ऐसी खतरनाक खनन प्रक्रिया का चलना, और नियमों की अनदेखी 'पर्यावरण संरक्ष्ण ' की दूसरी ही तस्वीर पेश करता है।
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