Bhopal Tree Cutting: भोपाल में सरकारी बंगलों को बनाने के लिए लगभग 29 हज़ार पेड़ों को काटा जाना है. मंत्रियों और अधिकारियों के यह बंगले शहर के शिवाजी नगर और तुलसी नगर में बनने है. यह वही इलाकें हैं जहाँ पहले स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत निर्माण कार्य होना था. मगर पेड़ों की कटाई के चलते ही बाद में इसे टीटी नगर में स्थानांतरित कर दिया गया था. अब एक बार फिर प्रशासन इस इलाके को 'समतल' करना चाहता है.
ग्राउंड रिपोर्ट ने इस मौके पर सूचना के अधिकार के ज़रिए स्मार्ट सिटी और मेट्रो जैसे 2 महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए काटे गए पेड़ों का आँकड़ा निकाला. साथ ही हमने विशेषज्ञों के ज़रिए इन कटते हुए पेड़ों के प्रभाव का भी आकलन किया.
शहर में कटते हुए इन पेड़ों का सीधा असर यहाँ के तापमान पर हुआ है. भोपाल के मौसमी तापमान (air tempreture) में वृद्धि हुई है. ऐसे में पेड़ों की संख्या घटने से शहर में अर्बन हीट आइलैंड (UHI) प्रभाव बढ़ा है. साथ ही इसके चलते यहाँ के भूमि की सतह के तापमान (land surphase tempreture) में भी वृद्धि हुई है. इन कारकों ने भोपाल में गर्मी को और असहनीय और घातक बना दिया है.
स्मार्ट सिटी के लिए कहाँ कितने पेड़ कटे?
साल 2015 के स्मार्ट सिटी मिशन के तहत मध्यप्रदेश के 7 शहरों को स्मार्ट सिटी की तरह विकसित करना था. भोपाल भी (bhopal smart city) इन सात शहरों में से एक है. ग्राउंड रिपोर्ट को प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार इस योजना के लिए अधिकृत टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स द्वारा 6080 वृक्ष काटने के लिए चिन्हित किए गए थे. हालाँकि भोपाल स्मार्ट सिटी के अंतर्गत आने वाले 4 सब-प्रोजेक्ट्स के लिए कुल 2 हज़ार 884 पेड़ काटे गए हैं.
मगर दस्तावेज़ों का अवलोकन करने पर हमें पता चला कि स्मार्ट सिटी अथोरिटी द्वारा जितने वृक्षों को काटने के लिए अनुमति माँगी गई थी असल में उससे ज़्यादा ही वृक्ष काटे गए.
उदाहरण के लिए इस मिशन के तहत शहर के टीटी नगर में 34 करोड़ 34 लाख 16 हज़ार 984 रूपए की लागत से बने हाट बाज़ार के लिए स्मार्ट सिटी डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा 66 पेड़ों को काटने का अनुमान लगाया गया था. मगर असल में इस सब-प्रोजेक्ट के लिए 147 पेड़ काटे गए. वहीँ टीटी नगर में (एबीडी एरिया) आवास निर्माण के लिए सबसे ज़्यादा 1308 पेड़ काटे गए.
मेट्रो के लिए कटने वाले पेड़
मेट्रो रेल परियोजना (Bhopal Metro) के लिए अब तक कुल 3 हज़ार 101 पेड़ काटे गए हैं. मेट्रो प्रोजेक्ट के अंतर्गत 7 सब-प्रोजेक्ट जिनमें मेट्रो के लिए रेल लाइन, मेट्रो स्टेशन, डीपो निर्माण और इलेक्ट्रिक सब-स्टेशन का निर्माण शामिल है, के लिए कुल 1877 पेड़ों के कटने का अनुमान था. मगर असल में इसके लिए 3 हज़ार 101 पेड़ काटे गए.
इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे ज़्यादा पेड़ (1555) एम्स से सुभाष नगर फाटक तक मेट्रो रेल लाइन बिछाने के लिए काटे गए हैं. यानि अगर पर्यावरणीय लिहाज़ से देखें तो भोपाल में मेट्रो का आना इसके स्मार्ट सिटी बनने से ज़्यादा महँगा है.
कटते पेड़ बढ़ता तापमान
भोपाल में आमतौर पर मई में अधिकतम तापमान 40 से 41 डिग्री तक होता था. मगर बीती 26 मई को यहाँ का तापमान 45.4 डिग्री सेल्सियस था. दुर्गा साल्वे (55) भोपाल के शाहपुरा और त्रिलंगा इलाके में घरों में काम करके अपना जीवन-यापन करती हैं. बीते 35 साल से भोपाल में रह रहीं दुर्गा कहती हैं,
“इतनी गर्मी भोपाल में पहली बार पड़ रही है. पहले इतना गर्म नही होता था”
नगर निगम द्वारा स्मार्ट सिटी के अंतर्गत जिन पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई वह घने और छायादार पेड़ थे. उदाहरण के लिए स्मार्ट सिटी के अंतर्गत शहर के रौशनपुरा चौराहे से लेकर दक्षिण टीटी नगर तक रोड का निर्माण किया गया. इसके लिए 356 पेड़ों को काटने की अनुमति स्मार्ट सिटी अथोरिटी ने मांगी थी.
इनमें से 102 पेड़ सतपर्णी (alstonia scholaris) के थे. इसके अलावा 2 अन्य छायादार पेड़ आम और अशोक क्रमशः 48 और 42 की संख्या में काटे गए थे. यह पेड़ घने होने के कारण छाया प्रदान करते हैं साथ ही यह मधुमक्खियों सहित अन्य जीवों को आश्रय भी प्रदान करते हैं. नगर निगम के ही एक कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं,
“शहर में जहाँ भी पेड़ हैं सरकार उसे खाली ज़मीन मानती है. इसलिए वहां पेड़ काटकर सड़क या बिल्डिंग बना देना उन्हें कोई नुकसान नहीं लगता.”
मगर इन छायादार पेड़ों का ख़त्म होना और वहां कंक्रीट संरचना का बनना शहर को और गर्म बनाता है. मौसम विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक डॉ. दिव्या ई सुरेन्द्रन समझाती हैं,
“पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने और छाया देने के लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं. यही दोनों गुण शहर में अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव को कम करने और यहाँ के भूमि सतह के तापमान (land surface temperature) को कम करने में भी सहायता करते हैं.”
भूमि सतह का बढ़ता तापमान
दुर्गा हर दोपहर भरत नगर में स्थित अपने घर से त्रिलंगा तक लगभग एक घंटे चलकर आती हैं. मगर रास्ते में पेड़ों की अनुपस्थिती और बढ़ता तापमान इस रास्ते को दुर्गम बना देता है. वह बताती हैं कि गर्मी के चलते बीते 10 दिनों में वह 2 बार बीमार पड़ चुकी हैं.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार शहरों में मौसमी तापमान, भूमि के सतह का तापमान और आद्रता (humidity) के बढ़ने से शहरों में गर्मियां और जानलेवा हुई हैं. भोपाल के छायादार पेड़ यहाँ की भूमि की सतह के तापमान को बढ़ने से रोकते थे. मगर इनके कट जाने से शहर की भूमि की सतह का तापमान भी बढ़ा है.
मौसम वैज्ञानिक मोहम्मद हुसैन मीर ने हमें बताया कि किसी भी शहर के भूमि की सतह के तापमान के बढ़ने से पैदल चलने वालों पर हीटवेव (heatwaves) का ख़तरा बढ़ जाता है.
“पैदल चलने वाले यात्री ज़मीन की सतह से होकर आने वाली हवा के सीधे संपर्क में होते हैं. यानि सतह का तापमान बढ़ने से इन पर हीट वेव का ख़तरा भी बढ़ जाता है.”
एक अध्ययन के अनुसार 2014 से 2019 के बीच भोपाल में घने वानस्पतिक क्षेत्र (dense vegetation) 22 प्रतिशत तक कम हुआ है. इसके चलते 2014 से 2019 के बीच यहाँ का अधिकतम तापमान 6.81 डिग्री और न्यूनतम तापमान 9.91 डिग्री बढ़ा है. मीर इन तथ्यों को जोड़ते हुए समझाते हैं कि वानस्पतिक क्षेत्र होने से ज़मीन सूर्य के प्रत्यक्ष रेडियेशन (direct rediation) से बच जाती है जिससे मौसमी तापमान में 2 से 6 डिग्री तक का फर्क आ सकता है.
रात में बढ़ता तापमान
दिनभर काम करने के बाद दुर्गा अब रात में भी अच्छे से नहीं सो पाती हैं. वह कहती हैं कि रात में भी गर्मी से राहत मिलना मुश्किल हो गया है. गौरतलब है कि 19-20 मई की रात भोपाल में बीते 2 सालों की सबसे गर्म रात थी. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन के अनुसार अर्बन हीट आईलैंड (UHI) प्रभाव मौसमी तापमान (air temperature) को 2 डिग्री और बढ़ा देता है.
देश के 6 शहरों में किए गए इस अध्ययन के अनुसार बढ़ता हुआ शहरीकरण इन शहरों को रात में भी ठण्डा होने से रोकता है. यानि दुर्गा रात में भी जिस बढ़ी हुई गर्मी को महसूस कर रही हैं उसके लिए मौसमी तापमान में बढ़ोत्री के साथ ही शक्तिशाली होता यूएचआई प्रभाव भी ज़िम्मेदार है. रिपोर्ट के अनुसार रात में बढ़ता हुआ तापमान मानव शरीर को ‘हीटस्ट्रेस’ से राहत पाने से रोकता है. इससे गर्मी के कारण मौत का ख़तरा और भी बढ़ जाता है.
कितना हुआ क्षतिपूरक वृक्षारोपण?
मध्यप्रदेश वृक्षों का परिरक्षण (नगरीय क्षेत्र) अधिनियम 2001 के तहत जितने पेड़ काटे जाते हैं उससे चार गुना क्षतिपूरक वृक्षारोपण किया जाना अनिवार्य है. यदि कोई भी व्यक्ति जगह के आभाव के चलते या किसी भी अन्य कारण से ऐसा नहीं कर सकता तो उसे क्षतिपूर्ति राशि देनी पड़ती है.
वहीँ भोपाल नगर निगम के नियमों के अनुसार 30 सेमी से कम गोलाई के पेड़ काटने पर कुल पेड़ों का दो गुना और इससे अधिक गोलाई के पेड़ काटने पर चार गुना पेड़ों की संख्या का आकलन किया जाता है. फिर 1450 रूपए प्रति पेड़ के हिसाब से क्षतिपूर्ति राशि वसूल की जाती है. इस रक़म के वसूल हो जाने पर ही पेड़ काटने की अनुमति दी जाती है.
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत कुल 2 हज़ार 884 पेड़ काटे गए थे. इसके लिए 1 करोड़ 41 लाख 60 हज़ार 700 रूपए बतौर क्षतिपूर्ति राशि जमा की गई थी. वहीँ मेट्रो प्रोजेक्ट में अब तक 3 हज़ार 101 पेड़ कटे हैं. इसके लिए कुल 1 करोड़ 92 लाख 77 हज़ार रूपए क्षतिपूर्ति राशि जमा की गई.
ग्राउंड रिपोर्ट को निगम के एक कर्मचारी ने बताया कि किसी भी प्रोजेक्ट के तहत काटे गए पेड़ों के बदले अलग से क्षतिपूरक वृक्षारोपण नहीं किया जाता. इसे निगम के उद्यान विभाग द्वारा किए गए पौधारोपण से ही कवर किया जाता है. हमें प्राप्त आँकड़ों के अनुसार बीते 3 साल में 16 अलग-अलग जगहों में उद्यान विभाग द्वारा कुल 1 लाख 9 हज़ार 338 पेड़ लगाए गए हैं. हालाँकि इनमें से कितने पेड़ अब तक जीवित हैं इसका कोई भी आँकड़ा निगम के पास नहीं है.
मगर दस्तावेज़ों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि हर विकास कार्य के लिए पेड़ काटने के बाद उसके बदले क्षतिपूरक वृक्षारोपण करने की जगह क्षतिपूर्ति राशि ही दी जाती है. भोपाल के पर्यावरणविद राशिद नूर खान इस पर नीतिगत सवाल उठाते हैं,
"यदि कोई भी प्रोजेक्ट आ रहा है तो उसकी कुल ज़मीन के एक हिस्से पर वृक्षारोपण करना अनिवार्य होना चाहिए. लगातार पेड़ के बदले पैसे देने से शहर का 'ट्री-कवर' घट रहा है."
वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी आरएस भदौरिया भी मानते हैं कि हमारे शहरों के विकास के लिए योजना बनाते हुए पर्यावरण का ख्याल नहीं रखा जाता है. इस बीच बढ़ते तापमान के कारण दुर्गा की तबियत अक्सर ख़राब हो जाती है. इसके चलते वह अक्सर काम पर नहीं जा पातीं. इससे चिंतित वह कहती हैं,
“अगर ऐसे ही बीमार होती रही तो घर के मालिक लोग काम से निकाल देंगे. फिर कहाँ से कमाएँगे-खाएँगे?”
पर्यावरणीय अनदेखी के चलते शहरों में कंक्रीट के ढांचे भले ही बड़े हो रहे हों मगर पर्यावरण के लिहाज़ से शहर पिछड़ता जा रहा है. हमारे शहर में तापमान लगातार बढ़ रहा है इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव दुर्गा जैसे हाशिए पर रहने वाले लोगों पर पड़ता है.
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