नवंबर की शुरुआत से ही मध्यप्रदेश के किसान अगली फसल की बुआई की तैयारियों के सिलसिले में धान की कटाई के बाद बचे डंठल (पराली) जलाना शुरू कर दिया था। इससे प्रदेश की हवा ख़राब हो रही थी और राजधानी भोपाल का एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) बिगड़ता जा रहा था। ग्राउंड रिपोर्ट ने इन मुद्दों की ग्राउंड जीरो से कवरेज की थी। हमारे इस प्रयास का असर देर से ही सही मगर दिखा जब भोपाल के जिला दंडाधिकारी, कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने पराली जलाने के संबंध में एक आदेश जारी किया है।
इस ताजा आदेश में पराली जलाने मिट्टी, हवा और पर्यावरण की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तार से चर्चा की गई है, साथ ही पराई जलाने वालों पर कड़े दंड का भी जिक्र किया गया है। लेकिन यहां सवाल फिर भी मौजूद है कि कहीं यह कदम उठाने में देर तो नहीं हो गई है।
दीवाली और ठंड की आमद के बाद ही बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण और घटते AQI को देखते को हुए पराली जलाने वाले किसानों पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि को दोगुना कर दिया गया था। 2 एकड़ से कम भूमि के किसानों 5000, 2 एकड़ से 5 एकड़ तक की भूमि वालों पर 10,000, और 5 एकड़ से अधिक भू स्वामियों पर 30,000 के जुर्माने का दंड निर्धारित किया गया था।
यह भारी दंड दिल्ली से सटे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों पर बाध्य था लेकिन मध्यप्रदेश में इसकी कोई बाध्यता नहीं थी। जबकि नवंबर के पहले सप्ताह तक मध्यप्रदेश पराली जलाने के मामले में पंजाब को पीछे छोड़ चुका था, एक्यूआई इंडेक्स भी खतरे के निशान की ओर बढ़ रहा था। लेकिन प्रशाशन ने प्रदेश में ये कड़े प्रावधान सुनिश्चित नहीं किये और परालियों के जलने का इन्तजार करते रहे।
यह आदेश आने के 2 सप्ताह पहले जब ग्राउंड रिपोर्ट की टीम सीहोर और भोपाल के कुछ गांवों में पहुंची तब वहां किसान अपने खेतों की पराली जला रहे थे। अब जब की मध्यप्रदेश की पराली जल कर यहां की आबो हवा बिगाड़ चुकी हैं उसके 2 सप्ताह बाद सरकार ने वायु और मृदा प्रदूषण की चिंता जताते हुए अपना फरमान जारी किया है।
ग्राउंड रिपोर्ट ने पराली और इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तृत ग्राउंड रिपोर्टिंग की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।
मध्य प्रदेश में पराली जलाने पर सख्ती नहीं, दम घोंटू धुंए से पटे गांव
भोपाल कलेक्टर द्वारा जारी इस हालिया आदेश में कहा गया है कि, वे भोपाल जिले की राजस्व सीमा के अंतर्गत जन सामान्य के हित, सार्वजनिक संपत्ति, पर्यावरण और लोक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाते हैं। आदेश में आगे कहा गया है कि, इस आदेश के उल्लंघन किये जाने पर मध्यप्रदेश शासन पर्यावरण विभाग, भोपाल और एनजीटी के वायु (प्रदूषण बचाव एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत निर्धारित दंड आरोपित किया जाएगा।
भोपाल कलेक्टर का यह आदेश भोपाल की राजस्व सीमा में, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (2023) की धारा 163 के तहत तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। यह आदेश गुरुवार 21 नवंबर 2024 से आने वाले 2 महीनों तक कायम रहेगा।
भोपाल कलेक्टर के इस आदेश पर किसानों ने नाराजगी भी दिखाई है। भारतीय किसान संघ के मध्य भारत प्रांत के अध्यक्ष सर्वज्ञ दीवान ने इस आदेश के बाद सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि,
सरकार बताए कि किसान पराली का क्या करे। किसान को अगली फसल की तैयारी करनी है, वह पराली का खेत से कैसे निस्तारण करे कि प्रदूषण न हो।
दीवान ने कहा कि सरकार के सभी शोध संस्थान, कृषि वैज्ञानिक व कृषि विश्वविद्यालयों को किसान के समक्ष पराली के निस्तारण की विधि, संसाधन व प्रशिक्षण की व्यवस्था तत्काल होनी चाहिए। साथ ही किसानों को संसाधन तुरंत उपलब्ध कराना चाहिए। ताकि पराली जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। किसान प्रदूषण के रोकथाम की दिशा में किए जा रहे सरकार के सभी प्रयासों के साथ हैं।
दूसरी ओर किसान संघ के मोहन मिश्र ने प्रदूषण की समस्या को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करने की बात कही। मोहन आगे कहते हैं,
किसान पराली न जलाने के लिए तैयार है। उसके साथ ही मध्यप्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसियेशन के वकीलों को भी प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में निजी कार की बजाय साइकिल से कोर्ट तक जाने की पहल कर आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। इसके साथ ही थर्मल पावर प्लांट से बनने वाली बिजली का उपयोग कम करने के लिए एयर कंडीशन का उपयोग आधा करना चाहिए। कोर्ट परिसर में भी धूम्रपान को पूर्ण प्रतिबंध करने के नियम बनाने चाहिए। इससे समाज का जागरण होगा और प्रदूषण रोकथाम में मदद मिलेगी।
इन सब के साथ ही किसान संघ ने जिला प्रशासन से मांग की कि प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में शहर में भी कचरा जलाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। पराली जलाने के समान ही कचरा जलाने वालों के ऊपर भी मामला दर्ज कर कार्यवाही की
हालांकि भोपाल कलेक्टर द्वारा जारी इस आदेश के बाद पराली जलाने के कितने मामले दर्ज होंगे और इससे वायु प्रदूषण कितना कम होगा यह वक्त आने पर पता लगेगा। मगर इतनी देरी के बाद भी यह कड़ा कदम सिर्फ भोपाल जिले में ही लागू किये गए हैं। राज्य प्रशाशन द्वारा प्रदेश के बाकी जिलों पर वायु प्रदूषण को लेकर कोई ठोस तात्कालिक कदम नहीं उठाए गए हैं, जो कि विवेचना का विषय है।
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